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यूपी लोकसभा उपचुनाव: गोरखपुर को रास न आया बीजेपी का नया योगी

करीब तीन दशक बाद गोरखनाथ मंदिर के महंत नहीं होंगे गोरखपुर के सांसद, नए सांसद एसपी के प्रवीण कुमार निषाद हैं जिन्हें करीब 22 हजार वोटों से जीत मिली है

Updated On: Mar 14, 2018 08:38 PM IST

Ranjib

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यूपी लोकसभा उपचुनाव: गोरखपुर को रास न आया बीजेपी का नया योगी

गोरखपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी की हार से इस सीट पर पिछले तीन दशक से गोरक्ष पीठ के दबदबे का सिलसिला भी टूट गया. बीते 28 साल से गोरखपुर मंदिर के महंत ही इस लोकसभा सीट के सांसद चुने जाते रहे. मंदिर के मौजूदा महंत और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ल को टिकट दिया. तीन दशक में पहली बार मठ के बाहर का कोई व्यक्ति प्रत्याशी बना तो गोरखपुर के वोटरों ने उपचुनावों में उसे नकार दिया.

गोरखपुर लोकसभा सीट पर गोरक्ष पीठ के आधिपत्य को यूं समझा जा सकता है कि इस मंदिर के महंत एक-दो बार नहीं बल्कि दस बार यहां से सांसद रहे. जिनमें अकेले योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने गए. योगी आदित्यनाथ के गुरु के गुरु यानी गोरक्ष पीठ के महंत दिग्विजयनाथ 1967 में गोरखपुर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत कर सांसद बने थे. इसके बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर से चार बार लोकसभा के लिए चुने गए.

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वे पहली बार 1970 में निर्दलीय जीत कर सांसद बने. उसके बाद के चुनावों में गोरखपुर की सीट पर एक बार लोक दल और लगातार दो बार कांग्रेस की जीत हुई लेकिन अस्सी-नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन से उपजी सियासी बयार में महंत अवैद्यनाथ 1989 में हिन्दू महासभा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत गए. 1991 और 1996 में वे बीजेपी के टिकट पर लड़े और सांसद बने. बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास ले लिया और युवा योगी आदित्यनाथ उनके उत्तराधिकारी बनाए गए.

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26 साल की उम्र में योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ के बदले गोरखपुर से 1998 में पहली बार चुनाव लड़ा. योगी इस चुनाव में 26 हजार वोटों से ही जीत पाए. 1999 में लोकसभा का चुनाव फिर हुआ तो कांटे के मुकाबले में योगी बमुश्किल साढ़े सात हजार वोटों से जीत पाए. लेकिन इसके बाद उनकी जीत का अंतर लगातार बढ़ता रहा. साल 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ की जीत आसान रही. जिनमें पिछले लोकसभा चुनाव में योगी तीन लाख से भी अधिक वोटों से जीते थे.

गोरक्ष पीठ का ही सांसद होने का वह सिलसिला इस उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी की जीत से भी टूटता पर न केवल बीजेपी हार गई बल्कि गोरक्ष पीठ के मुखिया योगी की बात उनके ही गढ़ में लोगों ने नकार दी. बतौर अपने सांसद जिस योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर संसदीय सीट की जनता ने बीते पांच चुनावों से सर आंखों पर उठाए रखा उसने सीएम योगी की बात नहीं सुनी.

क्या है इस हार के मायने?

बीजेपी की इस हार के कई प्रतीकात्मक मायने भी हैं. अव्वल तो यह संदेश कि गोरखपुर के वोटर बीजेपी के ऊपर मठ को तवज्जो देते हैं. मठ से बाहर का बीजेपी प्रत्याशी उन्हें रास नहीं आया. मायने यह भी कि भले ही मठ का सबसे प्रमख चेहरा मठ से बाहर के बीजेपी प्रत्याशी को वोट देने की अपील करे पर जनता को वह भी गवारा नहीं. गोरखपुर उपचुनाव में यही हुआ. योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी प्रत्याशी की जीत के लिए दर्जनों सभाएं की. यह उनकी निजी प्रतिष्ठा का उपचुनाव भी था. आखिर उनके इस्तीफे से ही यह सीट खाली हुई थी. दूसरे यह कि अब वे यूपी की मुख्यमंत्री हैं. लिहाजा इन नतीजों को उनकी इस नई भूमिका की कसौटी पर कसा ही जाना था.

उनकी सरकार 19  मार्च को एक साल पूरा कर रही है. उपचुनाव के नतीजों से साफ है कि इन सभी कसौटियों पर योगी आदित्यनाथ खरे नहीं उतर पाए. गोरखपुर उनका गढ़ है. वे यूपी के सीएम हैं. यह सीट उनके इस्तीफे से खाली हुई. इन सबके बाद भी बीजेपी जीत नहीं सकी. ये सभी फैक्टर एसपी और बीएसपी के तालमेल और उसे कई अन्य छोटे दलों के समर्थन के आगे कमजोर साबित हो गए. जाहिर तौर पर गोरखपुर की यह हार प्रत्यक्ष तौर पर योगी आदित्यनाथ और परोक्ष रूप से गोरखपुर में मठ के सियासी आधिपत्य को बड़ी चुनौती है. इसकी धमक दूर तक जाना तय है और लोकसभा के अगले चुनाव में यूपी में गैर बीजेपी दलों के बड़े गठबंधन के रूप में इसकी आहट सुनाई भी देने लगी है.

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