ये डराने वाली नहीं ठहरकर सोचने वाली बात है. यूपी में बीजेपी की शानदार जीत का जश्न अभी थमा भी नहीं था कि खबर आई कि बरेली के एक गांव में रातोंरात पोस्टर लग गए हैं. पोस्टर में गांव के मुसलमानों से एक साल के भीतर गांव छोड़ने की धमकी दी गई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक बरेली से 70 किलोमीटर दूर जियांगला गांव की ढाई हजार की आबादी में करीब दो सौ मुसलमानों के घर हैं. उन्हें चेतावनी दी गई है कि एक साल के भीतर गांव खाली कर दें वर्ना ठीक नहीं होगा. पोस्टर में लिखा है कि जैसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने छह देशों के नागरिकों पर बैन लगाया है, वैसे ही बीजेपी की सरकार आने के बाद यहां होगा.
हो सकता है इसमें इलाके के कुछ शरारती तत्वों का हाथ हो. पुलिस ने गांव के कुछ लड़कों को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया है. लेकिन ऐसी खबरें एक भय का माहौल तो बना ही देती है.
यूपी चुनाव के नतीजों के बाद बनती तस्वीर में मुसलमानों को भरोसे में लेने की जरूरत है. बीजेपी के धाकड़ चुनावी रणनीतिकारों की बदौलत जैसे चुनावी नतीजे सामने आए हैं उसने मुसलमानों को हाशिए पर ला दिया है. गुजरात के प्रयोग को यूपी में दोहराते हुए बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिए.
गुजरात के 2012 के चुनावों में भी बीजेपी ने ऐसा ही किया था. नतीजा ये रहा कि गुजरात में सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवार चुनकर आए. चारों कांग्रेस के थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी ने यूपी में किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया. इसके बावजूद उसने 80 में से 71 सीटें झटक ली.
बीजेपी ने अपने इस प्रयोग को मध्यप्रदेश और हरियाणा में भी दोहराया. प्रयोग कामयाब रहा. इसी प्रयोग के तहत इस बार यूपी में बीजेपी ने मुसलमानों को सिर्फ 25 सीटों पर समेट दिया है. 19 सपा कांग्रेस गठबंधन से हैं और 6 बीएसपी से.
प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी चुनावों की जीत के ठीक बाद अपने संबोधन में कहा था कि लोकतंत्र में चुनाव का काम बहुमत हासिल करने का है लेकिन कामकाज सर्वमत से चलता है. ये बेहतरीन सोच है लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई कितनी होगी?
यूपी के नतीजों के बाद बीजेपी की तरफ से ये बार-बार कहा गया है कि पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को तोड़ते हुए मुसलमानों की भलाई के लिए काम करेगी. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि 2019 के चुनावों में भी बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
ये अच्छा है. सत्ता में बिना हिस्सेदारी दिए भलाई का ठेका लेना भी नया प्रयोग है. सवाल है इस पर कितना भरोसा किया जाए. ये तो वही बात हो गई कि महिला कल्याण के लिए कमेटी बना ली जाए लेकिन उसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व ही न हो. पिछड़ों के उत्थान के लिए प्रकोष्ठ बना लिए जाएं लेकिन उसमें पिछड़ी जातियों के लोग शामिल ही न हो. दलित चिंतन दल में दलितों को हिस्सेदारी देने से रोक दिया जाए.
ऐसा होता भी है. पाकिस्तान में महिला उत्थान समितियां बन जाती हैं बिना किसी औरत को शामिल किए हुए. महिलाओं के हक की आवाज उठाने के लिए सड़कों पर रैलियां निकल जाती हैं लेकिन उसमें महिलाएं शामिल नहीं होंती. इसका ठेका मर्दों के हाथों में होता है.
सोचिए कि ऐसी ही तस्वीर भारत के मुसलमानों के लिए यहां बनती दिख रही है. बिना सत्ता में भागीदारी दिए उन्हें सशक्त किए जाने के दावे पर यकीन करना मुश्किल है.
पूरे उत्तर और पश्चिम भारत के राज्यों में मुसलमानों की सत्ता में भागीदारी कम हुई है. भाजपा के शासन वाले राज्यों में सिर्फ राजस्थान ही है जहां कोई मुस्लिम मंत्री है. यहां से यूनुस खान कैबिनेट मंत्री है.
इन राज्यों की करीब डेढ़ हजार से ज्यादा विधानसभा सीटों में बीजेपी के केवल दो मुस्लिम विधायक हैं. मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से बीजेपी का कोई मुस्लिम विधायक नहीं है.
ऐसा संभव है कि यूपी में बनने वाली बीजेपी की मजबूत सरकार में एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं हो. हालांकि यूपी चुनाव के नतीजों के बाद केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू ने कहा है कि यूपी की बीजेपी सरकार में कोई न कोई मुस्लिम चेहरा होगा. एकाध चेहरे विधान परिषद से लेकर मुसलमानों को उनके हित में कुछ किए जाने का अहसास करवाया जाएगा.
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