जाति, अंडरवर्ल्ड और राजनीति का मकड़जाल पश्चिम उत्तप्रदेश की सियासत की नियति तय करने में निर्णायक भूमिका निभाता आया है. और, 1994 के अप्रैल में बुलंदशहर की पुलिस ने अपने कारनामों के लिए दुर्दांत एक गुर्जर को जब मार गिराया तो यह बात बिल्कुल साफ हो गई.
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जो हुआ वह सचमुच बड़ा हैरतअंगेज था. एक ऐसे इलाके में जहां अपने जातिगत जुड़ाव के दम पर गैंगस्टर दबदबा जमाने की जंग छेड़े रहते हैं, महेन्द्र फौजी ने अपना आतंक कायम कर रखा था. फौजी गुर्जर जाति का था और यादव तथा त्यागी जाति के गैंगस्टरों की आंख में खटक रहा था.
एक एनकाउंटर ने एसपी-बीएसपी के रिश्तों में खटास डाली
बाबरी-मस्जिद के विध्वंस के बाद के दिनों में सियासत ने एक नई करवट ली थी. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज के बीच गठबंधन कामयाब रहा और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. मायावती बीएसपी की महासचिव थीं और हर सियासी फैसले पर कद्दावर कांशीराम के असर की छाया थी. बीएसपी का दावा था कि गुर्जरों के बीच उसे अच्छा-खासा समर्थन है.
एक संयोग यह भी रहा कि बुलंदशहर पुलिस ने गैंगस्टर को जिस वक्त मार गिराया उस समय हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर यूपी-चुनाव होने वाले थे. बीएसपी वह चुनाव हार गई, जीत बीजेपी को मिली. गुर्जरों ने बीएसपी के उम्मीदवार सिद्धार्थ को वोट नहीं डाला और शायद मायावती को यही बात नागवार गुजरी.
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गैंगस्टर के एनकाउंटर से लखनऊ में तूफान मच गया. कांशीराम और मायावती ने एसएसपी(तत्कालीन) ओपी सिंह को हटाने की मांग कर दी. आरोप लगाया कि एनकाउंटर फर्जी था और गलत वक्त पर हुआ. कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव पर एसपी को हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया लेकिन मुख्यमंत्री टस से मस नहीं हुए. इस जोर-आजमाइश से एसपी-बीएसपी के रिश्तों में तनातनी आई.
खैर, गठबंधन जारी रहा लेकिन कुछ ही दिन बाद एसपी-बीएसपी के रिश्तों पर एक बार फिर से आंच आई. बुलंदशहर के एक राजपूत-बहुल गांव में आपराधिक पृष्ठभूमि के चार दलितों को गांववालों ने मार डाला.
इस घटना के बाद कांशीराम और मायावती ने एक प्रेस-कांफ्रेस की और कहा कि जिले का पुलिस प्रमुख दलित विरोधी है. कांशीराम की मांग थी 'ओपी सिंह को तुरंत हटाया जाए.' आखिरकार, मुलायम सिंह को झुकना पड़ा, पुलिस-अधिकारी का तबादला हुआ लेकिन मुलायम सिंह ने उसके निलंबन की बात नहीं मानी.
लेकिन यही वक्त एसपी-बीएसपी के मजबूत जान पड़ रहे सामाजिक आधार के बिखराव का भी था. बुलंदशहर की घटना के चंद रोज के भीतर इलाहाबाद के एक गांव दौना में कुर्मी जाति के गुंडों ने एक दलित महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया.
कांशीराम ने इस घटना को सीधे अपने ऊपर हमला मानते हुए इलाहाबाद की एक जनसभा में मुलायम सिंह को सरेआम खरी-खोटी सुनायी. कांशीराम ने चेताया कि 'हम गठबंधन को इस तरह तो नहीं चलने देंगे.' बार-बार की घुड़की से तंग आए मुलायम सिंह को अब लगने लगा था कि बात बर्दाश्त के बाहर जा रही है.
लखनऊ की फिजां में परेशानियों की सुगबुगाहट थी. माहौल सियासी साजिश और सेंधमारी का बन रहा था. हवा में यह आरोप तैर रहा था कि मुलायम सिंह यादव बीएसपी को तोड़ने की फिराक में हैं और जल्दी ही बीएसपी का एक बड़ा धड़ा दलबदल करेगा.
मायावती ने मुख्यमंत्री बनते ही ओपी सिंह को निलंबित कर दिया
2 जून 1995 को मायावती ने मुलायम सिंह यादव के पांव के नीचे से सत्ता की कालीन खींचते हुए समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद ही स्टेट गेस्ट हाउस में ठहरी मायावती पर समाजवादी पार्टी के गुंडों के धावा बोलने की घटना हुई. यह प्रकरण सभी जानते हैं.
लेकिन यह बात अनजानी रह जाती है कि स्टेट गेस्ट हाउस पर हुए हमले का एक रिश्ता बुलंदशहर में हुई एन्काउंटर की घटना से भी है. ओपी सिंह को कांशीराम और मायावती के दबाव में बुलंदशहर से हटाकर लखनऊ में एसएसपी(सीनियर सुपरिटेन्डेन्ट ऑफ पुलिस) बनाया गया था. ओपी सिंह की तैनाती से बीएसपी के इस भय की पुष्टी हुई कि मायावती को नुकसान पहुंचाने के लिए उसे जान-बूझकर लाया गया था.
हालात जब काबू में आए और मायावती मुख्यमंत्री बनी तो पहला काम उन्होंने ओपी सिंह को निलंबित करने का किया. मजे की बात यह भी है कि ओपी सिंह की कानूनी लड़ाई अदालत में एक ब्राह्मण वकील सतीश मिश्र की अगुवाई में लड़ी गई.
यही सतीश मिश्र बाद में बीएसपी सुप्रीमो के खासम-खास बने. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि महेन्द्र फौजी के पुलिस एन्काउन्टर की घटना का असर दूरगामी साबित हुआ और इसने सूबे की सियासत को एक खास शक्ल दी. ऐसी मिसाल सूबे में शायद ही कोई दूसरी हो.
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