समाजवादी पार्टी भले ही सेक्यूलरिज्म की सबसे बड़ी प्रतीक हो मगर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बगैर उसकी वोट की राजनीति एक कदम नहीं चल पाती...क्योंकि भाजपा हिंदुत्व की राजनीति करती है तो सपा मुसलमानों की.
मुस्लिम वोटर तो सपा की राजनीति की जान है. आखिर क्यों न हो? उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक 9 फीसदी है, जबकि मुस्लिम वोटर 17 से 18 फीसदी. इन मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए जरूरी है एक अदद मुस्लिम चेहरे की जो सपा की तरफ से मुसलमानों को गारंटी दे सके कि तुम्हारे हित नेताजी और अखिलेश के हाथों में सुरक्षित हैं.
लेकिन इस सेक्यूलरिज्म की झंडाबरदार पार्टी में आजम के अलावा कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है. इसलिए बाप-बेटे दोनों को चाहिए रामपुर वाले आजम खान- यानि विवादों के बादशाह. जो अपनी समाजवादी सोच से कम और सांप्रदायिकता के जहर बुझे बाणों के कारण ज्यादा जाने जाते हैं.
ये भी पढ़ें: गुड़ से मीठा, इमली से खट्टा है पश्चिमी यूपी
आजम खान लंबे समय से समाजवादी राजनीति करते रहे हैं मगर वो रोटी विवादों की ही खाते हैं. विवाद और उनका चोली दामन का साथ है. विवाद ही ओढ़ते बिछाते हैं. जब मुंह खोलते हैं, विवाद उगलते है. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि जिस दिन कोई विवाद न पैदा करें उन्हें खाना हजम नहीं होता.
लोग बिल्कुल ठीक ही कहते हैं, तिलमिला देनेवाली, तंज कसनेवाली भाषा को वे अपनी बातचीत और भाषण में तड़के की तरह इस्तेमाल करते हैं. आपको यकीन नहीं हो रहा तो ये लीजिए मिसाल. हाथ कंगन को आरसी क्या.
मोदी विरोधी आजम
आजम खान नरेन्द्र मोदी के खिलाफ भड़ास निकालने का कोई भी मौका छोड़ते नहीं हैं. व्यक्तिगत आलोचना से परहेज करना तो उनके स्वभाव में ही नहीं है. बोलते समय वे सभ्यता और शालीनता को भूल ही जाते हैं.
हाल ही में मेरठ में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने मोदी पर तीखा हमला किया और तंज कसते हुए कहा 'वो 131 करोड़ हिन्दुस्तानियों का बादशाह है, रावण जलाने लखनऊ जाता है लेकिन ये भूल जाता है कि सबसे बड़ा रावण लखनऊ में नहीं दिल्ली में रहता है.'
अपने राजनीतिक विरोधियों की इस स्तर पर जाकर आलोचना करना आजम का शगल है. उन्होंने पीएम मोदी के कपड़ों को लेकर भी बयान दिया. 'एक चाय बेचने वाले के पास कहां से आए महंगे कपड़े.' आजम खान ने आरोप लगाया कि मोदी जी ने दो साल में 80 करोड़ रुपये के कपड़े बनवाए हैं. इसका मतलब आने वाले 5 साल में 200 करोड़ के कपड़े बनवाए जाएंगे.
आजम के इस भाषण को सुनकर लोगों के दिमाग में सवाल उठता है कि आजम खान के पास यह आंकड़े आए कहां से? मगर इसका जवाब देना वे जरूरी नहीं समझते क्योंकि उनका मकसद तो केवल विवाद गढ़ना या लोगों को भड़काना होता है.
आजम खान को मोदी इसलिए नापसंद है क्योंकि उनकी नजर में वह मुस्लिम विरोधी हैं. उनके खिलाफ बोलने से मुसलमान खुश होंगे. अपनी राजनीति चमकाने के लिए अक्सर मुस्लिमों से नाइंसाफी, अन्याय का रोना भी उनका स्टाइल है. आजम ने कहा, 'मुस्लिमों के बगैर यूपी में कोई बादशाह नहीं बन सकता और हमें गाली देकर हिंदुस्तान खुशहाल नहीं हो सकता, अल्पसंख्यकों को अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है.'
सेक्यूलर या कम्यूनल
दरअसल, जब हम बार-बार भारतीय या हिन्दुस्तानी के बजाय केवल मुसलमान की बात सुनते हैं तो यकीन नहीं होता कि हम किसी समाजवादी या सेक्यूलर नेता को सुन रहे हैं बल्कि किसी मुस्लिम लीगी नेता का भाषण सुन रहे हैं. इस मामले में ओवैसी और उनमें कोई खास फर्क नजर नहीं आता.
उनकी इसी खासियत के कारण मुलायम ने अखिलेश को करारा जवाब देने के लिए आजम खान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का मन बना लिया था ताकि, मुसलमान उनकी पार्टी के साथ बने रहें. मगर पता नहीं बिल्ली कब रास्ता काट गई या आजम-मुलायम की घटती लोकप्रियता के बारे में जान गए थे इसलिए दोनों के बीच बात नहीं बनी.
वैसे, आजम खान अखिलेश के भी करीबी हैं क्योंकि आजम खान अखिलेश की भी मजबूरी हैं. साल 2012 में सरकार बनाने के बाद आजम को पुरानी पीढ़ी का मानते हुए अखिलेश ने कोशिश की थी कि वो आजम के टक्कर में कोई मुस्लिम चेहरा खड़ा कर सकें. उन्होंने कुछ नेताओं को आगे भी बढ़ाया, लेकिन वो मजबूती से उन्हें उभर नहीं सके. आखिरकार, अखिलेश ने सोचा कि आजम ही बेहतर हैं और धीरे-धीरे दोनों में बनने लगी.
ये भी पढ़ें: तीन तलाक, राजनीतिक खेल या महिलाओं का सशक्तिकरण
अपने तीखे बयानों के कारण विवादों में रहना मंत्री आजम खान का पसंदीदा शगल है. इससे पहले भी वे अपने इन बयानों के कारण सुर्खियां बटोर चुके हैं. कुछ समय पहले पेरिस हमले को लेकर अपनी टिप्पणी से आजम विवादों का मुद्दा बन गए थे.
उन्होंने कहा था- पेरिस हमला एक्शन का रिएक्शन है. अमेरिका को समझना होगा कि जब उसके बम गिरते हैं तो गरीबों की बस्ती उजड़ती है. इसके अलावा आजम खान ने पेरिस को नाच-गाने और शराब का शहर बताया है.
करगिल पर भी बयानबाजी
करगिल युद्ध को लेकर भी वे सांप्रदायिक बयान दे चुके हैं. उन्होंने कहा था, 'करगिल युद्ध में भारत को जीत हिंदू नहीं, मुस्लिम सैनिकों ने दिलाई थी.'
बीफ मुद्दे पर भी आजम ने गोभक्तों को चुनौती दे डाली थी. उन्होंने कहा था, 'हर गौभक्त आज के बाद किसी भी होटल के मेन्यू में बीफ की कीमत न लिखने दें. अगर ऐसा हो, तो ऐसे सभी पांच सितारा होटलों की उसी तरह ईंट से ईंट बजा दें, जिस तरह बाबरी मस्जिद की बजाई थी.'
रामपुर में जन्मे आजम खान ने छात्र राजनीति से अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. नेताजी के साथ शुरूआत से ही समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे मगर उन्होंने राजनीति सांप्रदायिकता की ही की. उनकी बातों से कभी लगा नहीं कि समाजवाद से उनका दूर-दूर तक कोई ताल्लुक है.
आजम डा.अंबेडकर को भी निशाना बनाने से नहीं चूके. उन्होंने कहा- 'समूचे उत्तरप्रदेश में अंबेडकर की मूर्तियां जिस तरह से लगी हैं, उन सभी में उनके खड़े हाथ और इशारा करती अंगुली बसपा के 'मूल उद्देश्य' को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि अंबेडकर की उठी हुई अंगुली इशारा करती है कि 'यह जमीन तो मेरी है ही, वह सामने वाला प्लॉट जो खाली है, वहां भी मैं जल्दी ही आऊंगा.'
फिर अपनी बात को साप्रदायिक रंग देते हुए मुस्लिमों की तरफ इशारा करते हुए वे पूछते हैं, 'बसपा के लोग आप सबके नाम पर सरकार बनाने की बात करते हैं, लेकिन इन लोगों ने क्या एक भी पार्क आपके पूर्वजों के नाम से बनाया है?'
मुसलमानों के रहनुमा
यह तरीका उनका मुसलमानों को यह बताने का तरीका है कि उनके साथ जुल्म हो रहा है. मगर उन्हें कभी मुसलमानों को यह बताने की जरूरत महसूस नहीं होती कि उन्हें पढ़-लिखकर पिछड़ेपन से मुक्ति पानी चाहिए, उन्हें रुढ़ीवाद और कट्टरतावाद को छोड़ देना चाहिए.
समाजवादी पार्टी की सरकारों में कई बार मंत्री रह चुके आजम खान की सारी आदतें सामंतवादी है. एक बार उनकी सात भैंसे चोरी हो गईं तो समाजवादी सरकार की पुलिस कानून-व्यवस्था की रक्षा करने के बजाय भैंसों को खोजने में लग गई थी.
अंत में, चोरी हुई सात भैंसों में से पांच भैंसे तो मिल गईं लेकिन दो भैंस नहीं मिली तो तीन पुलिसवालों को लाइन हाजिर होना पड़ा. यह किस्सा उत्तरप्रदेश में हरेक की जुबान पर आ गया था. आजम मुसलमानों के पिछड़ेपन का रोना रोते हैं, लेकिन जब किसी को विधान परिषद का सदस्य बनाने की बात आती है तो अपनी पत्नी को ही भेज देते हैं.
ये भी पढ़ें: यूपी चुनाव, थोड़ा फिल्मी...थोड़ा निराला
तब वह यह नहीं सोचते हैं किसी और मुसलमान को विधान परिषद का सदस्य बना दिया जाये. एक साथ दो पदों पर बने रहने का मामला भी उनके खिलाफ चला. अब तो उन्होंने अपने बेटे को भी विधानसभा चुनाव का टिकट दिला दिया है. आखिरकार, मुलायम के लिए परिवारवाद ही तो असली समाजवाद है.
सामंतवादी स्वभाव
आजम बात गरीबों की करते हैं लेकिन उनके रामपुर में उनकी शह पर वाल्मिकी बस्ती को उजाड़ने की कोशिश होती है. रामपुर में समाजवादी मुलायम सिंह को उनके जन्मदिन पर लाखों खर्च करके विदेश से आई बग्घी पर घुमाया जाता है.
मुलायम समाजवादी से कार्पोरेटवादी हो गए मगर आजम ने उनके खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला. वे जानते हैं कि नरेंद्र मोदी और राज्यपाल राम नाईक को लताड़ना एक बात है और मुलायम के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब समाजवादी पार्टी से बाहर जाने का रास्ता चुनना. एक बार आजम यह गलती कर चुके हैं अब वह शायद दुबारा ऐसा नहीं करना चाहेंगे.
लेकिन, ऐसे आजम खान का एक सपना है प्रधानमंत्री बनने का. एक बार उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि, ‘मैं चाय बना सकता हूं, ड्रम बजा सकता हू तो प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकता.'
उन्होंने मीडिया से पूछा था, 'मुसलमान प्रधानमंत्री क्यों नहीं होना चाहिए. मैं भी प्रधानमंत्री होना चाहता हूं.' मुसलमान के प्रधानमंत्री बनने पर किसी को एतराज नहीं हो सकता मगर क्या कोई इस विवादों के बादशाह को प्रधानमंत्री रूप में देखना पसंद करेगा?
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.