राजनीति बड़ी रूखी होती है. इसमें भावनाओं का इस्तेमाल सिर्फ जनता को भरमाने के लिए किया जाता है. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में भावनाओं की कोई जगह नहीं होती. कोई नेता भावनाओं के आधार पर राजनीतिक फैसला नहीं लेता. लेकिन मुलायम सिंह यादव जब सब जतन करके हार गए तो अब चाहते हैं कि अखिलेश अपना फैसला भावनाओं के स्तर पर करें.
वो लगातार कोशिश कर रहे हैं कि जो काम सियासी गुणा-भाग के जरिए नहीं हो सका वो अब बाप-बेटे के रिश्तों की कीमत पर हो जाए. पिछले तीन दिनों से वो रिश्तों की दुहाई देकर अखिलेश गुट को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं.
निशाने पर हैं रामगोपाल
मुलायम सिंह यादव तीन दिनों में इस झगड़े को इस रूप में लेकर आ गए हैं कि झगड़े के केंद्र में अब रामगोपाल यादव आ गए हैं. मुलायम सिंह यादव की कोशिश है कि समाजवादी पार्टी के झगड़े को रामगोपाल यादव तक समेट कर अखिलेश यादव को साथ ले लिया जाए. लेकिन ये इतना आसान नहीं है.
बुधवार को मुलायम सिंह यादव के निशाने पर सिर्फ रामगोपाल यादव थे. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से बेहद भावुक होते हुए कहा, ‘मैं जानता हूं कि एक विपक्षी पार्टी के प्रेसिडेंट के साथ किसने मुलाकात की. वो अपने बेटे और बहू को बचाना चाहता है. उसे मुझसे मिलना चाहिए था. मैं उसे बचा लेता.’ मुलायम का ये बयान रामगोपाल के लिए था, जो अखिलेश गुट के मुख्य रणनीतिकार हैं.
उन्होंने रामगोपाल की आगे की रणनीति का खुलासा करते हुए कहा, ‘मैं जानता हूं कि कौन अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी बना रहा है और किसने मोटरसाइकिल का चुनाव चिन्ह मांगा है?’
मुलायम सिंह यादव अपने भाई रामगोपाल यादव के नाम पर सख्त हो जाते हैं लेकिन अखिलेश के नाम पर उनका दिल भर आता है. उन्होंने कहा , ‘मैंने वो सब दे दिया है जो मेरे पास था. मेरे पास बचा ही क्या है? मेरे पास सिर्फ आप सब हैं. अखिलेश यादव सीएम हैं और आगे भी रहेंगे. आप (अखिलेश) उनलोगों के पास क्यों जा रहे हैं. आप अपनेआप को झगड़े में मत घसीटो. हमें पार्टी में किसी भी तरह से एकता चाहिए.’
आखिरी कोशिश में लगे मुलायम
मुलायम सिंह यादव आखिरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी तरह से इस झगड़े को रामगोपाल यादव तक समेट कर नुकसान को कम से कम किया जाए. लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है.
अखिलेश यादव पिता के सम्मान में जीत का भरोसा दिलाकर चुनावों की तैयारी में लग गए हैं. खबर है कि अखिलेश यादव ने अपना घोषणापत्र तक बनवा लिया है. घोषणापत्र में मुलायम का जिक्र तक नहीं है. जेपी लोहिया और चरण सिंह का नाम लेकर अपनी समाजवादी राजनीति को आगे बढ़ाने जा रहे हैं.
समाजवादी पार्टी में अब एका मुमकिन नहीं दिख रहा है. एक बाप की भावनाओं का हवाला देकर राजनीतिक नुकसान की भरपाई करने की मुलायम की कोशिश भी चूकती दिख रही है. क्योंकि कहीं न कहीं अखिलेश को लगता है कि बाप की भावनाएं भले ही उनके साथ नहीं हैं जनता की भावनाओं में ऊपर चल रहे हैं. तमाम सर्वे भी तो यही कह रहे हैं.
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