उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान शुरू हो गया है. इस बार 12 जिलों की 69 सीटों पर मतदान हो रहा है. ये 12 जिले सत्ताधारी समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाते हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां क्लीन स्वीप किया था.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को इन 12 जिलों में 55 सीटें मिली थीं. वहीं बसपा को 6, बीजेपी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें और एक सीट निर्दलीय को मिली थी.
तीसरे चरण में फर्रुखाबाद,हरदोई, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, ओरैया, कानपुर देहात,कानपुर नगर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर में वोट डाले जाएंगे.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.
Feb 19, 2017
यूपी में तीसरे चरण का मतदान खत्म हो गया है. इस चरण में भी वोटिंग तेज रही. इस चरण की वोटिंग में क्या रहा खास. जानिए वरिष्ठ पत्रकार Ambikanand Sahay से.
अपनी ही प्रतिध्वनि को सुनने की प्रवृति शायद सबसे ज्यादा भ्रमात्मक होती है. लगता है पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी इसी प्रवृति के पाश में बंधती जा रही है. याद रहे ये वही इलाका है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सियासी कद दांव पर है. मार्क ट्वेन ने कभी बनारस के लिए लिखा था कि यह 'इतिहास से पुराना, परंपराओं से प्राचीन, पौराणिक कथाओं से भी पहले का और यहां तक कि इन्हें एक साथ मिला दिया जाए तो उससे भी दोगुना पुराना दिखता है.'
विस्तार से पढ़ें : यूपी चुनाव 2017: बनारस के गढ़ में हिल सकती है बीजेपी की बुनियाद
पार्थ एनएन सोमवार से यूपी में युवा वोटरों की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर एक रिपोर्ट सीरीज करेंगे. साथ ही वह हमारी लाइव कॉमेंट्री में भी इस आयु वर्ग के लोगों की राय देते रहेंगे.
प्रदेश में युवा वोटरों के बीच राहुल गांधी कोई फैक्टर नहीं हैं. गठबंधन से एसपी को कोई नुकसान नहीं है. जो अब भी कांग्रेस के साथ हैं, वह कभी कांग्रेस को नहीं छोड़ने वाले हैं. अखिलेश का युवा समर्थक गठबंधन को लेकर अति उत्साहित भले न हो लेकिन नाराज भी नहीं है.
हालांकि महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर अखिलेश को नुकसान उठाना पड़ सकता है. लड़कियों के लिए 1090 हेल्पलाइन नंबर के ठीक से काम न करने की शिकायत है. युवा मानते हैं कि मायावती के समय कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर थी.
युवाओं के बीच रोजगार का मुद्दा भी अहम है. पूर्वी यूपी में उद्योगीकरण न के बराबक है और लखनऊ के लोग यहां सही से जीवनयापन चला पाने को लेकर विश्वस्त नहीं हैं. अधिकतर बेहतर नौकरी के लिए बाहर जाने की सोच रहे हैं. लेकिन इसका ठीकरा पुरानी पीढ़ी पर फूटता है. अखिलेश इस एंटी-इंकंबेंसी को सफलापूर्वक खुद से हटा पिता और चाचा की ओर मोड़ दिया है.
युवा लड़कियों को मिला योजना का फायदा
अखिलेश यादव का समर्थन करने के लिए युवा लड़कियां कन्या विद्याधन योजना का जिक्र करती हैं. ये यूपी में गरीब परवारों की लड़कियों के लिए एक स्कॉलरशिप योजना थी. इस स्कॉलरशिप को लड़कियां 12वीं पास करने के बाद ले सकती थीं. लखनऊ युनिवर्सिटी के अध्यापक भी कहते हैं इस योजना की वजह से गरीब परिवार की लड़कियों की शिक्षा में मदद की है. इस स्कीम की शुरुआत 2004 में मुलायम सिंह यादव ने की थी लेकिन उस समय इसे लागू करने को लेकर सवाल खड़े किए गए थे. मायावती ने इस योजना को बंद कर दिया था. अखिलेश यादव ने 2012 में इसे फिर से स्टार्ट किया.
इस योजना से फायदा पाने वाली लड़कियों में नाजिया खान भी हैं. अभी वो 24 साल की हैं और नौकरी की तलाश कर रही हैं लेकिन 2014 में इस योजना की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने में मदद मिली थी.
युवाओं में सबसे लोकप्रिय हैं अखिलेश
सीएम अखिलेश यादव की युवाओं में लोकप्रियता निर्विवाद है. युवा अखिलेश यादव के साथ खुद को जोड़ते हैं और मानते भी हैं कि उन्हें दूसरा चांस मिलना चाहिए. प्रदेश के युवा अखिलेश को अपनी ही तरह पाते हैं. यहां तक कि बीजेपी की तरफ रुझान रखने वाले युवा भी अखिलेश की ज्यादा आलोचना नहीं करते. बीजेपी की तरफ झुकाव रखने वाले मोदी को अखिलेश से ज्यादा पसंद करते हैं. आलोचनाओं से परे और नोटबंदी को फेल मानने वालों के बीच भी मोदी सबसे बड़े लीडर हैं.
अखिलेश यादव के विकास के बारे में पूछने पर युवा मेट्रो और आगरा-उखनऊ एक्सप्रेसवे का जिक्र करते हैं. वे कहते है कि हाई वे बेहतरीन है और ये मात्र 22 महीने में बनाया गया है. कुछ ही दिनों पहले लखनऊ-बलिया लिंक की भी शुरुआत हुई जिससे पूर्वी यूपी तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा.
कॉल्विन तालुकदार कॉलेज लखनऊ में बॉयोलोजी के स्टूडेंट मोहम्मद अस्कानी रज़ा कहते हैं कि विकास का काम करने की वजह से वे अखिलेश को ही वोट करेंगे.
यूपी में तीसरे चरण में 53 फीसदी मतदान
फ़र्स्टपोस्ट ने ‘गूगल के पार’ नाम से एक विशेष सीरीज़ शुरू की है. एक्जीक्यूटिव एडिटर अजय सिंह अपने लंबे अनुभव के साथ उन दिलचस्प घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने देश की सियासत पर असर छोड़ा. अनकही और अनसुनी वो बातें जिनकी आज भी अहमियत कम नहीं है. देखते रहिए ये विशेष सीरीज़ – गूगल के पार, अजय सिंह के साथ.
झांसी में राहुल - अखिलेश की चुनावी रैली
' सपा- कांग्रेस का अलायंस सिर्फ दो परिवारों का अलायंस नहीं है बल्कि यूपी में बदलाव लाने के लिये दो युवा राजनीतिज्ञों का मेल है.'
युवाओं में सबसे लोकप्रिय हैं अखिलेश
सीएम अखिलेश यादव की युवाओं में लोकप्रियता निर्विवाद है. युवा अखिलेश यादव के साथ खुद को जोड़ते हैं और मानते भी हैं कि उन्हें दूसरा चांस मिलना चाहिए. प्रदेश के युवा अखिलेश को अपनी ही तरह पाते हैं. यहां तक कि बीजेपी की तरफ रुझान रखने वाले युवा भी अखिलेश की ज्यादा आलोचना नहीं करते. बीजेपी की तरफ झुकाव रखने वाले मोदी को अखिलेश से ज्यादा पसंद करते हैं. आलोचनाओं से परे और नोटबंदी को फेल मानने वालों के बीच भी मोदी सबसे बड़े लीडर हैं.
अखिलेश यादव के विकास के बारे में पूछने पर युवा मेट्रो और आगरा-उखनऊ एक्सप्रेसवे का जिक्र करते हैं. वे कहते है कि हाई वे बेहतरीन है और ये मात्र 22 महीने में बनाया गया है. कुछ ही दिनों पहले लखनऊ-बलिया लिंक की भी शुरुआत हुई जिससे पूर्वी यूपी तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा.
कॉल्विन तालुकदार कॉलेज लखनऊ में बॉयोलोजी के स्टूडेंट मोहम्मद अस्कानी रज़ा कहते हैं कि विकास का काम करने की वजह से वे अखिलेश को ही वोट करेंगे.
लखनऊ में कौन करेगा राज ?
लखनऊ में कौन करेगा राज ?
लखनऊ में विधानसभा की 9 सीटें हैं. साल 2012 में सपा ने 7 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को केवल 1 सीट मिली थी. कांग्रेस को भी एकमात्र सीट लखनऊ कैंट की मिली थी. लखनऊ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 5 बार सासंद रहे. राजनाथ सिंह और लालजी टंडन की विरासत वाले लखनऊ में बीजेपी धीरे धीरे कमजोर होती चली गई. इस बार यहां सबने जोर लगा दिया है. लखनऊ की सरोजिनी नगर से स्वाति सिंह बीजेपी के टिकट से उम्मीदवार हैं. उनके खिलाफ अखिलेश यादव के चचेरे भाई अनुराग यादव मैदान में हैं. वहीं लखनऊ कैंट की सीट से बीजेपी उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी के सामने मुलायम परिवार की बहू अपर्णा यादव खड़ी है. जबकि लखनऊ पूर्व की सीट से लालजी टंडन के बेटे बीजेपी उम्मीदवार हैं तो अभिषेक मिश्रा लखनऊ उत्तर से सपा के टिकट से चुनाव में खड़े हैं. अखिलेश मिश्रा को अखिलेश का करीबी माना जाता है . अभिषेक मिश्रा पहले आईआईएम में फ्रोफेसर थे और उसके बाद राजनीति से जुड़ गए.
इटावा में सपा की अंतर्कलह बिगाड़ न दे खेल ?
इटावा में विधानसभा की 3 सीटें हैं. ये निर्विवाद रूप से समाजवादी पार्टी का गढ़ हैं. साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने सभी 3 सीट जीती थीं. जसवंत नगर से शिवपाल सिंह यादव लगातार चुनाव जीतते आए हैं. साल 2002 में मुलायम सिंह ने ये सीट शिवपाल सिंह यादव के लिये छोड़ी थी.
लेकिन मुलायम परिवार में हुई कलह का असर जसवंत नगर सीट पर दिखाई पड़ सकता है. हाल ही में शिवपाल सिंह यादव ने ये तक कह दिया था कि चुनाव बाद वो नई पार्टी बनाने के बारे में सोच सकते हैं. जिस पर पलटवार करते हुए अखिलेश ने कहा था कि आरोप उन पर लग रहे थे नई पार्टी बनाने के लेकिन बना कोई और रहा है. ऐसे में पारिवारिक कलह थमने के आसार नहीं दिख रहे हैं. खुद अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव भी ये बयान दे चुकी हैं कि लोगों ने यही कोशिश की थी कि केवल भैया के पास चाबी और भाभी रह जाएं. जाहिर तौर पर ऐसे में इटावा में मतदाता क्या सोचकर फैसला करता है वो देखने वाली बात होगी. पारिवारिक कलह की वजह से इस बार इटावा में सपा पर पुरानी जीत बरकरार रखने की चुनौती है.
मैनपुरी में विधानसभा की 4 सीट
साल 2012 समाजवादी पार्टी ने सभी 4 सीटें जीत ली थीं. लेकिन इस बार यहां शिवपाल फैक्टर अखिलेश के समीकरण बिगाड़ सकता है. वहीं खुद बीजेपी को भी टिकट बांटने की वजह से नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. मैनपुरी की भोगांव सीट पर ममता राजपूत का नाम काटकर राहुल राठौर को टिकट दे दिया गया है. ऐसे में ममता राजपूत बीजेपी के लिये मुश्किल खड़ी कर सकती हैं.
ओरैया में विधानसभा की 3 सीटें
ओरैया पर भी सपा ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सभी सीटें जीत ली थीं.
12 जिलों की हर सीट कुछ कहती है !
बाराबंकी की हैदरगढ़ सीट से राजनाथ सिंह जीतकर सीएम बन चुके हैं. वहीं इसे बेनी प्रसाद वर्मा का भी गढ़ माना जाता है. साल 2012 में यहां भी सपा ने 6 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह गोप बाराबंकी के रामनगर से चुनाव लड़ रहे हैं. बेनी प्रसाद वर्मा के साथ अरविंद सिंह गोप के रिश्तों में तल्खी रही है. इसका इस चुनाव पर भी असर पड़ सकता है. लेकिन बाराबंकी में बेनी प्रसाद वर्मा की अहमियत को देखते हुए ही उनकी सपा में वापसी हुई है. लेकिन उनकी वापसी बेटे को टिकट नहीं दिला सकी.
3.00 बजे तक करीब 53 फीसदी मतदान
औरैया: 51.72%
कन्नौज: 54.00%
बाराबंकी: 60.00%
उन्नाव: 50.5%
सीतापुर: 56.2%
फर्रुखाबाद: 51.00%
हरदोई: 55.56%
कानपुर देहात: 56.39%
कानपुर नगर: 51.00%
लखनऊ: 50.01%
मैनपुरी: 50.35%
इटावा: 51.5%
लखनऊ महानगर के डॉ वीरेंद्र स्वरुप कॉलेज में विदाई से पहले दुल्हन परिधि शर्मा ने अपने पति ऋषभ शर्मा के साथ जाकर डाला वोट
मलीहाबाद बिरहिमपुर गांव में मतदान का बहिष्कार, गांव में लकड़ी के पुल से आते जाते हैं लोग.
लखनऊ: मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरि ने भी डाला वोट, लोगों से की मतदान की अपील.
दोपहर 3 बजे तक 51.5 फीसदी मतदान हुआ है.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का पीएम मोदी पर निशाना. कहा - ' चुनाव के बाद मोदी जी दिल्ली जाएंगे और 2019 तक उनके मुंह से उत्तर प्रदेश शब्द नहीं निकलेगा'
यूपी विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं. कई इलाकों में पोलिंग बूथ पर वोटरों की लंबी कतारें हैं. दोपहर एक बजे तक तकरीबन 40 फीसदी वोटिंग हो चुकी है. हालांकि कन्नौज और कानपुर के कुछ पोलिंग बूथ पर वोटरों ने मतदान का बहिष्कार भी किया. इस चरण में कुल 826 उम्मीदवार मैदान में हैं और करीब दो करोड़ 41 लाख मतदाता हैं. वोटिंग के लिए कुल 25 हजार 603 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. इटावा सीट पर सबसे अधिक 21 प्रत्याशी मैदान में हैं जबकि बाराबंकी की हैदरगढ़ सीट पर सबसे कम तीन उम्मीदवार हैं. कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर है. हरदोई से नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल, बाराबंकी से अरविंद सिंह गोप, लखनऊ से रीता बहुगुणा जोशी, अपर्णा यादव, अभिषेक मिश्रा, अनुराग यादव,इरफान सोलंकी, सतीश महाना, गोपाल टंडन और अजय कपूर मैदान में हैं.
फ़र्स्टपोस्ट ने ‘गूगल के पार’ नाम से एक विशेष सीरीज़ शुरू की है. एक्जीक्यूटिव एडिटर अजय सिंह अपने लंबे अनुभव के साथ उन दिलचस्प घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने देश की सियासत पर असर छोड़ा. अनकही और अनसुनी वो बातें जिनकी आज भी अहमियत कम नहीं है. देखते रहिए ये विशेष सीरीज़ – गूगल के पार, अजय सिंह के साथ.
मुलायम सिंह यादव और दूसरी पत्नी साधना गुप्ता (अअ... यादव) एक साथ कभी पब्लिक न नजर आए थे और न कभी कोई राजनीतिक बयान दिया था. यादवों के गढ़ सैफई में रविवार को यादव परिवार के इतिहास का एक नया अध्यास शुरू हुआ. अखिलेश के सैफई में वोट डालने के कुछ देर बाद ही दोनों साथ आए. पत्नी के कहने पर मुलायम ने अपनी उंगली पर लगा इंक का निशान दिखाया और फिर बोले कि सपा सत्ता में अपने दम पर लौटेगी.
भले ही मुलायम ने सबकुछ कहा लेकिन उनके बॉडी लैंग्वेज से साफ था कि उसमें उस जोश, उत्साह और ताकत की कमी है जो अक्सर ऐसे चुनावी दंगल के समय उनमें नजर आती है. दुनिया ने देखा है कि मुलायम इस बार प्रचार में - सिवा भाई शिवपाल और बहू अपर्णा के लिए- मैदान में नहीं उतरे. यह भी तथ्य है कि अधिकतर उम्मीदवारों ने मुलायम को कैंपेन करने के लिए कहा भी नहीं. उन्होंने संन्यास तो नहीं लिया है लेकिन जहां तक पार्टी सदस्यों के लिए उनका समय बीत चुका है.
इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रुखाबाद, जहां तीसरे चरण में वोट डल रहे हैं, में वह बहुत लोकप्रिय हैं. बेटे अखिलेश के साथ राजनीतिक खींचतान में जो-जो हुआ वह इस क्षेत्र की जनता को बहुत रास नहीं आया है.
लेकिन मुलायम के समर्थकों के पास कोई विकल्प है? यह अहम सवाल है जो नतीजों पर असर डालेगा.
याद रखिए, कन्नौज में ही पीएम मोदी ने कहा था कि अखिलेश ने उस कांग्रेस के साथ हो गए है जिसने कभी पिता मुलायम को मारने की कोशिश की थी. इटावा और कन्नौज में चाय और पान की दुकानों पर यह चर्चा का हॉट टॉपिक है. कन्नौज के एक वोटर समूह के अनुसार मुझे बताया कि अपने युवा अवस्था में वह इस बारे में नहीं जानते थे और अब 33 साल की पहले की यह घटना के बारे में जानकारी मिली है. जो उस समय जन्मे भी नहीं थे, वे भी इसकी चर्चा कर रहे हैं.
दीपक सिंह की की उम्र 30 से कुछ ऊपर की है. कहते हैं कि वह एक पारंपरिक सपा वोट हैं और चौड़ी सड़क दिखाकर सपा के काम का सबूत देते हैं. लेकिन इस बार वह सपा के लिए वोट देने के मूड में नहीं हैं. इसकी वजह यादव कुनबे का विवाद नहीं है बल्कि वह अखिलेश के राहुल गांधी से हाथ मिलाने से नाराज हैं. 'जब काम बोलता है को एक नाकाम के साथ क्यों हाथ मिला लिया. मुझे और मेरे कुछ साथियों को ये पसंद नहीं है.'
भगवा कपड़ों में सजे एक व्यक्ति कहते हैं यह समाजवादी पार्टी का गढ़ है और वही जीतेगी. वह खुद को सपा का सपोर्टर बताते हैं. वह जोड़ते हैं कि इस इलेक्शन में ऐसे लोग कह रहे हैं कि दूसरी पार्टी (बीजेपी) को मौका दे सकते हैं. उनका तर्क है कि समाजवादियों को बहुत मौका देकर देख लिया, अब देखते हैं कि दूसरी पार्टी क्या कर सकती हैं.
यह दिखाता है कि अखिलेश की सपा के लिए रास्ता इतना आसान नहीं है.
चुनावी रैली में अखिलेश यादव का पीएम मोदी पर पलटवार. अखिलेश ने कहा कि पीएम मोदी ब्लड प्रेशर की बात कर रहे हैं...एक बार चुनाव के नतीजे आ जाएं तो बीजेपी के नेताओं को
ब्लड प्रेशर का चेकअप कराना पड़ेगा.
गोरखपुर शहर में ही अपनी स्टेशनरी की दूकान चलाने वाले बृजभूषण पांडे से जब गोरखपुर में चुनावी माहौल के बारे में सवाल किया तो पांडे ने न किसी पार्टी का नाम लिया और न ही किसी नेता का. बस एक नारे को बार-बार दोहराना शुरू कर दिया. ‘गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है.’
ये नारा काफी पुराना है जिसे गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के समर्थकों की तरफ से कहा जाता रहा है. लेकिन अब ये नारा केवल योगी के एक समर्थक की तरफ से ही नहीं कहा जा रहा है. गोरखपुर में ही एक रिक्शा वाले से हमने पूछा कि क्या माहौल है तो उसने भी बस योगी-योगी कहना शुरू कर दिया.
विस्तार से पढ़ें : यूपी चुनाव 2017: गोरखपुर में योगी का जलवा रहेगा बरकरार?
फतेहपुर में पीएम मोदी की रैली
' गांव में क्रबिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिये...रमजान में बिजली आती है तो दिवाली में भी बिजली आनी चाहिये. भेदभाव नहीं होना चाहिये'
यूपी में दूसरे चरण में दोपहर 1 बजे तक करीब 40 फीसदी मतदान
औरैया: 41%
कन्नौज: 44%
बाराबंकी: 44.8%
उन्नाव: 38%
सीतापुर: 43%
फर्रुखाबाद: 37%
हरदोई: 39.50%
कानपुर देहात: 41.39%
कानपुर नगर: 32%
लखनऊ: 38%
मैनपुरी: 37%
इटावा: 38%
फतेहपुर में पीएम मोदी की रैली
बीजेपी की सरकार बनते ही छोटे किसानों का कर्ज माफ होगा
हमारी सरकार गरीब किसानों की सरकार है
सरकार बनते ही गन्ना किसानों का बकाया दिया जाएगा