उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के राज में इटावा बहुत ही अहम जिले में गिना जाता रहा है. अखिलेश यादव के राज में भी इटावा का ये रुतबा कायम रहा.
ऐसा सुख शायद ही देश में किसी जिले को हासिल हो. मुलायम राज में इटावा के लोग खुद को सबसे ऊपर समझते रहे हैं. वीआईपी होने की इसी चाहत में इटावा के लोगों ने आंख मूंदकर मुलायम सिंह यादव का समर्थन किया है.
इसी जिले की जसवंतनगर सीट से मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और उसके बाद ये शिवपाल की सीट हो गई. मुलायम सिंह यादव ने जसवंतनगर में भाई शिवपाल यादव के समर्थन में कहा कि अखिलेश जिद्दी हैं. कई बार वो बात सुन लेता है, कई बार नहीं सुनता.
1967 में पहली बार मुलायम यहां से चुनकर विधानसभा में पहुंचे. उसके तुरंत बाद 1969 में हुए चुनाव में उन्हें बिशंभर सिंह यादव ने हरा दिया और एक बार 1980 में बलराम सिंह यादव ने हराया.
इसके अलावा 67 से 93 तक ये सीट मुलायम सिंह को विधायक बनाती रही. 1996 से अभी तक यहां से शिवपाल सिंह यादव विधायक चुने जा रहे हैं. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने बीएसपी से पिछला चुनाव लड़े मनीष यादव पर भरोसा जताया है.
चाचा-भतीजे के समर्थक
बीएसपी से दरवेश कुमार शाक्य और आरएलडी से जगपाल सिंह यादव लड़ रहे हैं. सीधे तौर पर शिवपाल को यहां खास चुनौती नहीं दिखती है.
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लेकिन, अंदरखाने अखिलेश यादव के समर्थक शिवपाल को चुनाव हराने की कोशिश में लगे हैं ये बात जसवंतनगर की सड़कों पर कोई आम आदमी भी बता देगा.
जसवंत नगर सीट पर भले ही चाचा का टिकट काटने का साहस अखिलेश भले न कर पाए हों. क्योंकि चाचा शिवपाल को यहां हराना असंभव न सही लेकिन, बहुत मुश्किल जरूर है.
लेकिन, बगल की इटावा की सीट पर अखिलेश वाली समाजवादी पार्टी ने मुलायम के खासमखास मौजूदा विधायक रघुराज शाक्य का टिकट काट दिया है. 2012 में रघुराज सिंह शाक्य ने बीएसपी के महेंद्र सिंह राजपूत को हराया था.
हालांकि, राजपूत भी पुराने सपाई हैं. 2002 और 2007 के चुनाव में साइकिल की सवारी करके ही विधानसभा पहुंचे थे. शाक्य का टिकट काटकर रामगोपाल के नजदीकी कुलदीप गुप्ता को लड़ाया जा रहा है.
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कुलदीप गुप्ता इटावा नगर पालिका चेयरमैन हैं. भाजपा ने यहां से सरिता भदौरिया और बीएसपी ने नरेंद्र चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया है. यादव, मुसलमान और शाक्य के मजबूत आधार मतों पर यहां समजावादी पार्टी का किला बहुत मजबूत रहा है.
इस सीट पर 40 हजार मुसलमान वोट है और नगरपालिका के चुनाव में कुलदीप गुप्ता ने नफीसुल आलम को हराया था. कमाल की बात ये कि कुलदीप ने हिन्दू ध्रुवीकरण को अपने पक्ष में करके पालिका चेयरमैन की कुर्सी हथियाई.
मुसलमानों का मानना है कि नफीसुल आलम को हराने में रामगोपाल यादव की बड़ी भूमिका रही है. नफीसुल को मुलायम-शिवपाल का नजदीकी माना जाता है. सवाल ये है, कि क्या नगर पालिका की हार का बदला लेने के लिए इटावा के मुसलमान समाजवादी पार्टी के खिलाफ मत डाल सकते हैं?
शिवपाल का जनाधार
वैसे भी ये सीट तय करेगी कि इटावा में शिवपाल का अधिकार कुछ बचा हुआ है या रामगोपाल ने उसे लगभग खत्म कर दिया है. हालांकि, रामगोपाल यादव ने नफीसुल अंसारी को नगर पालिका चेयरमैन फिर से बनाने का वादा करके उन्हें कुलदीप के साथ लगा दिया है.
इटावा और जसवंतनगर के अलावा समाजवादी पार्टी की तीसरी बुनियादी आधार सीट है भरथना. 1989 में जनता दल और उसके बाद 1991 में जनता पार्टी. फिर जब मुलायम सिंह यादव ने अपनी समाजवादी पार्टी 1992 में बना ली तो उसके बाद से ये सीट समाजवादी पार्टी की परम्परागत सीट हो गई.
साल 2007 मे मुलायम सिंह यादव खुद इस सीट से चुने गए और जब 2009 में मुलायम लोकसभा के लिए चुन लिए गए तो बीएसपी के शिव प्रसाद यादव ने उपचुनाव में इस सीट पर कब्जा जमाया. लेकिन, 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर से ये सीट समाजवादी पार्टी के खाते में आ गई.
यहां से समाजवादी पार्टी ने कमलेश कुमार कठेरिया को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी से सावित्री कठेरिया और बीएसपी से राघवेंद्र गौतम प्रत्याशी हैं. राघवेंद्र गौतम के लिए प्रचार करने आई मायावती ने भरथना की रैली में कहा कि- ये दोनों एक दूसरे को हराएंगे. इसलिए सपा-कांग्रेस गठबंधन भी गया काम से.
मायावती के 'ये दोनों' दरअसल अखिलेश और शिवपाल हैं. इटावा जिले की हर विधानसभा सीट पर अखिलेश-रामगोपाल के समर्थक मुलायम-शिवपाल के समर्थकों को चिढ़ाते नजर आ रहे हैं.
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इसीलिए मायावती का ये कहना कि ये दोनों एक दूसरे को हराएंगे, अगर मुसलमानों को समझ में आ गया तो समाजवादी पार्टी की सबसे मजबूत बुनियादी ईंट इटावा में दरार पड़ सकती है.
हो सकता है कि इस चुनाव में तीनों ही सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में आ जाएं लेकिन, लंबे समय के लिए समाजवादी राजनीति का तगड़ा नुकसान होता साफ दिख रहा है.
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