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यूपी चुनाव 2017: यूपी में हिंदू-मुसलमान कौन ज्यादा चिल्ला रहा है?

अचानक यूपी चुनाव का मुद्दा विकास से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तरफ जाता दिख रहा है.

Updated On: Feb 10, 2017 08:09 AM IST

Harshvardhan Tripathi

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यूपी चुनाव 2017: यूपी में हिंदू-मुसलमान कौन ज्यादा चिल्ला रहा है?

अचानक उत्तर प्रदेश का चुनावी मुद्दा विकास से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की तरफ जाता दिखने लगा है. बीजेपी के ठंडे बक्से से निकलकर विनय कटियार जोश में राममंदिर निर्माण की बात करने लगे हैं. वो विनय कटियार जिनको 2012 से 2017 विधानसभा चुनाव के बीच शायद बीजेपी भी भूल सी गई थी.

योगी आदित्यनाथ की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जोशीली सभाएं जमकर होने लगीं हैं. दिखने ऐसा लगा कि जैसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने भड़काऊ बयान देने वाले नेताओं को आगे कर दिया है.

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी एक सभा में कह दिया कि बीजेपी की सरकार आने के बाद एंटी रोमियो दल समाजवादी पार्टी के गुंडों को उल्टा लटकाकर सीधा कर देगा.

क्या सिर्फ बीजेपी ही सांप्रदायिक है?

तो क्या सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही हिंदू-हिंदू चिल्लाती है? क्या भारतीय राजनीति के सांप्रदायिक बनाने का पूरा जिम्मा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी पर ही जाता है?

लंबे समय से भारतीय राजनीति में सलीके से एकतरफा आरोप सिद्ध होने से लगता है कि जैसे दूसरी सभी पार्टियां बहुत पाक साफ हैं और वो सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के आतंक से मुसलमानों को बचाने के प्रयास में जी जान से लगी हैं.

BJP Supporters

(फोटो: पीटीआई)

भारतीय जनता पार्टी के कई बड़बोले, विवादित बयान के आधार पर ही बड़े हो गए नेताओं ने इस आरोप को सलीके से साबित भी किया है. लेकिन इस निष्कर्ष पर आम मुहर लगना दरअसल भारतीय जनता पार्टी के साथ अन्याय भी होगा.

इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के साथ दूसरे दलों के नेताओं के भी बयानों का सलीके से अध्ययन करना जरूरी हो जाता है.

अभी राजनीति के सांप्रदायिक एजेंडे की ओर जाने की बात करने की वजह उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव है. इसलिए चुनावी गरमाहट के पिछले कुछ महीनों का ही उदाहरण लेते हैं.

मुस्लिम वोटों के लिए एसपी-बीएसपी की आपसी खींचतान 

पिछले साल अक्टूबर महीने से उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में गरमाहट आनी शुरू हो गई थी. उस समय यादव परिवार का झगड़ा खुलकर सामने आ गया था. खबरें आ रही थीं कि पार्टी टूट सकती है. पिछले साल के अक्टूबर महीने में हर दिन समाजवादी पार्टी की राजनीति उलटती-पलटती नजर आ रही थी.

10 अक्टूबर को अखिलेश यादव को लखनऊ में समाजवादी पार्टी का स्मार्टफोन योजना के पंजीकरण के लिए वेबपोर्टल की शुरुआत करनी थी. उस मौके पर अखिलेश यादव ने कहा कि मायावती कहती हैं कि समाजवादी पार्टी के लोगों में बंटवारा है. लेकिन समाजवादी मुस्लिम भाई जानते हैं कि समाजवादी पार्टी उनके कितने करीब है.

हम लोग भूले नहीं हैं अभी. वह रक्षाबंधन वाला त्यौहार कोई नहीं भूला है कि किसने किसको राखी बांधी थी. वह गुजरात वाली बातें नहीं भूले हैं कि कौन किसके लिए वोट मांगकर आया था.

एक नौजवान मुख्यमंत्री स्मार्टफोन देने के लिए पंजीकरण के वेबपोर्टल के शुभारम्भ पर सबसे ज्यादा जोर देकर ये बताता है कि मुसलमानों को बीएसपी को मत क्यों नहीं देना चाहिए.

Akhilesh Mayawati Muslim

अखिलेश मुसलमानों को याद दिलाना चाहते हैं कि बीजेपी के समर्थन से बीएसपी ने सरकार बनाई थी और ये भी मायावती ने बीजेपी नेताओं को राखी बांधी थी. मुसलमानों को ये याद दिलाने के पीछ अखिलेश यादव की मुसलमानों को मायावती की तरफ जाने से रोकने की कोशिश थी.

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दरअसल 9 अक्टूबर 2016 को मायावती ने समाजवादी पार्टी पर हमला तेज करते हुए कहा था कि मुसलमानों को इस बार अपना वोट बंटने नहीं देना चाहिए. इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.

अक्टूबर महीने में ही बीएसपी की एक पत्रिका भी तेजी से बंटनी शुरू हुई थी जिसमें बताया गया था कि समाजवादी पार्टी किस तरह से मुसलमान विरोधी है. बहुजन समाज पार्टी की तरफ से एक 8 पन्ने की पत्रिका बंटवाई गई. 'मुस्लिम समाज का सच्चा हितैषी कौन' शीर्षक से छपी इस पत्रिका में मुलायम सिंह यादव को मुसलमानों का दुश्मन साबित करने की कोशिश की गई.

इसमें कहा गया है कि साल 2012 में मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी की सरकार बनवा दी और 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में हजारों मुसलमानों को बेघर होना पड़ा. इसी बुकलेट में लिखा है कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार में 400 से ज्यादा दंगे हुए.

लगभग हर रैली और प्रेस कांफ्रेंस में मायावती मुसलमानों को चेताती हैं कि बीजेपी को हराने के लिए मुसलमानों को बीएसपी के साथ आना चाहिए. वो बार-बार ये बताती हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का संभावित गठजोड़ दरअसल मुस्लिम मतों को बांटने की साजिश है.

मुस्लिम वोटों के लिए मायावती की माया  

मायावती ने 2002 के गुजरात दंगों और 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे को एक बराबर बताया था. ये कोशिश थी किसी भी तरह से मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से बहुजन समाज पार्टी के पाले में लाने की.

Mayawati

मायावती ने मुसलमानों को अपने पाले में लाने की कोशिश के तहत ही 99 सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी उतारे हैं. इनमें से करीब 50 सीटें तो ऐसी हैं जहां बीएसपी के मुसलमान प्रत्याशी के सामने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठजोड़ के हिन्दू प्रत्याशी ही हैं. जाहिर है ऐसी सीटों पर मुसलमान बीएसपी की तरफ स्वाभाविक तौर पर झुक सकते हैं.

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5 फरवरी 2017 को गाजियाबाद के कैला भट्टा इलाके में एक जनसभा में कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा कि काश! बीएसपी भी समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठजोड़ का हिस्सा होती तो, तीनों दल मिलकर उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी का सफाया कर देते.

इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने मुसलमानों से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठजोड़ के हिन्दू प्रत्याशी को मत देने की अपील की. गुलाम नबी आजाद मुसलमानों को गठजोड़ के प्रत्याशी के पक्ष में मत डालने के लिए कह रहे हैं लेकिन मायावती पर नरम हैं.

हालांकि, मायावती अपनी रैलियों में किसी पर कोई नरमी नहीं दिखातीं. लेकिन वो कहती हैं कि अल्पसंख्यक समाज के लोग अगर एसपी को वोट देते हैं तो, उनका वोट न केवल पूरी तरह से बेकार चला जाएगा. साथ ही इसका सीधा फायदा यहां बीजेपी को ही पहुंच सकता है.

मेरठ दक्षिण से बीएसपी के प्रत्याशी हाजी याकूब कुरैशी ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी सरकार में आई तो नमाज बंद करवा देगी. बगल की मेरठ शहर सीट से ही भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी चुनाव लड़ रहे हैं. वाजपेयी पिछले 4 चुनावों से लगातार जीत रहे हैं.

उन्हीं के प्रदेश अध्यक्ष रहते बीजेपी को यूपी में 71 लोकसभा सीटें मिलीं. लक्ष्मीकांत वाजपेयी इस बार जिस नारे के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं, वो है हिंदुत्व का लाल है, इज्जत का सवाल है.

कमाल की बात ये है कि मेरठ की इन्हीं दोनों सीटों पर इन नेताओं के पक्ष में परिणाम पहले से तय माना रहा है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं दिया है.

कौन कितना डरा रहा है हिंदुओं और मुसलमानों को 

बीजेपी नरेंद्र मोदी के ही चेहरे पर लड़ रही है. मुकाबले की बात होती है तो बीजेपी की तरफ से मोदी का ही चेहरा सामने आता है. समाजवादी पार्टी की तरफ से अखिलेश यादव और बीएसपी की तरफ से मायावती का चेहरा है.

अब अगर रैलियों में इन तीनों नेताओं के बयानों का अध्ययन किया जाए तो शायद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी भी रैली या सभा में हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ डराकर वोट मांगा हो.

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योगी आदित्यनाथ, सुरेश राणा, संगीत सोम अपने-अपने इलाके में ये काम करते भले नजर आते हैं. लेकिन, समाजवादी पार्टी और बीएसपी में दूसरी पांत के नेताओं को छोड़िए, अखिलेश यादव और मायावती की रैलियों को सुनने पर सबसे ज्यादा जो तेज आवाज सुनाई देती है, वो है- मुसलमानों अपना वोट मुझे दो नहीं तो बीजेपी तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी.

अब यह समझने की जरूरत है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में हिंदू-मुसलमान कौन ज्यादा चिल्ला रहा है. और क्या भारतीय जनता पार्टी इस देश की अकेली सांप्रदायिक पार्टी है?

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए इस सवाल की सही जवाब जनता जितनी जल्दी जान लेगी, उतना अच्छा.

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