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उन्नाव रेप केस: 'बिना संरक्षण के कोई MLA या MP इतना ताकतवर नहीं होता'

उन्नाव रेप कांड पर फ़र्स्टपोस्ट से उन्नाव की पूर्व कांग्रेस सांसद अन्नु टंडन से एक्सक्लूसिव बातचीत

Updated On: Apr 14, 2018 06:06 PM IST

Ankita Virmani Ankita Virmani

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उन्नाव रेप केस: 'बिना संरक्षण के कोई MLA या MP इतना ताकतवर नहीं होता'

कठुआ गैंगरेप और उन्नाव रेप केस में न्याय के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में गुरुवार देर रात कैंडल मार्च निकाला. ट्विटर, फेसबुक पर कुछ लोगों ने इसे सराहा भी और कुछ ने इसे राजनीति भी कहा. लोगों ने पूछा, रेप के मामले हर रोज अखबार की सुर्खियां बनते हैं फिर न्याय के लिए मार्च सिर्फ कठुआ और उन्नाव रेप केस में क्यों?

कुछ लोगों ने ये भी कहा कि कांग्रेस के शासन वाले कर्नाटक में हर साल सैंकड़ों रेप के मामले आते है फिर वहां कैंडल मार्च क्यों नहीं?

स्वाभाविक है ऐसे मामलों पर राजनीति होना लेकिन सवाल ये कि क्या इन मामलों को राजनीति से उपर उठकर नहीं देखा जाना चाहिए, सवाल ये भी कि क्यों निर्भया रेपकांड के बाद भी देश में कुछ नहीं बदला.

फ़र्स्टपोस्ट ने इन सब मुद्दों पर उन्नाव से पूर्व कांग्रेस सांसद अन्नु टंडन से बातचीत की.

उन्नाव में या फिर कठुआ में जो भी हुआ उस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया?

किसी भी बच्ची, किसी भी महिला बल्कि किसी भी इंसान पर इस तरह का उत्पीड़न होता है तो बहुत कष्ट होता है. खास तौर से जो कठुआ में एक छोटी बच्ची के साथ हुआ उससे मुझे काफी तकलीफ हुई है.

सीएम योगी ने अपराध को लोकर जीरो टॉलरेंस की बात कही थी, आप इस पर क्या कहना चाहेंगी?

एक चीज तो साफ नजर आ रही है पिछले एक साल में जब से ये सरकार आई है महिलाओं पर जो उत्पीड़न है वो बढ़ रहा है. किसी ने मुझे शुक्रवार को जो आंकड़े दिए हैं उसके मुताबिक आधिकारिक तौर पर रेप के मामलों में 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. प्रदेश की कानून व्यवस्था चरमरा चुकी है. हम तो उन्नाव में आए दिन सुनते है जो चीजें नहीं होती थी वो बढ़ गई है, दबंगई बढ़ गई है. सिस्टम फेल होता हुआ नजर आ रहा है. लोग कहते है दोषी यहां का डीएम, वहां का एसपी, वहां का अधिकारी है. लेकिन मैं कहती हूं कि किसी अधिकारी, किसी एसपी का व्यक्तिगत खामी कहीं पर दिखाई दे तो बात अलग है लेकिन सिस्टम में ही गड़बड़ी है तो वो क्या कर सकते है? वो उतने ही अधिकृत होंगे जितना अधिकृत उन्हें किया जाए. जो नीति उन्हें बताई जाएगी उसी नीति को उनको मानना होता है. जिस तरह की कानून व्यवस्था शीर्ष नेतृत्व चाहता है, प्रदेश के अफसरों को उसी के हिसाब से काम करना होता है.

कहीं ना कहीं ये साबित हो चुका है कि ये सरकार नहीं चला पा रहें है, कानून व्यवस्था नहीं संभाल पा रहे है. तभी इसी तरह के मामले चाहे रेप हो, चोरी हो, हत्या हो, अपहरण हो और फिर चाहे ऑफिशियल एनकाउंटर हो, लगातार बढ़ रहे हैं. ये चुप करना जानते हैं, आवाज दबाना जानते हैं.

आप उन्नाव से सांसद रह चुकी हैं. क्या कोई भी एमएलए या एमपी इतना ताकतवर होता है कि पूरी कानून व्यवस्था पूरे सिस्टम को प्रभावित कर सकता है?

कोई भी एमएलए या एमपी इतना ताकतवर इतना ताकतवर नहीं होता. इतना ताकतवर वो तब दिखाई पड़ता है जब उसे ऊपर से समर्थन और संरक्षण मिला हो. बिना संरक्षण के मुमकिन ही नहीं है. मैं सिर्फ इस केस की बात नहीं करूंगी.एमएलए की अपनी सरकार है तो उसका रवैया अलग होता है, जिसकी अपनी सरकार ना हो उसका रवैया अलग होता है. जैसे उदाहरण के तौर पर मैं सांसद थी लेकिन राज्य में मेरी सरकार नहीं थी. तो अधिकारी मुझे सम्मान देता था क्योंकि मैं चुनी हुई प्रतिनिधि थी.

जहां मैं देखती थी कि कुछ गलत हो रहा है तो मैं आवाज उठाती थी एक प्रतिनिधि होने के नाते और उम्मीद करती थी कि कार्रवाई होगी. लेकिन मैं संवैधानिक तौर पर किसी अधिकारी को डायरेक्शन नहीं दे सकती थी. इस संविधान के तहत जो निर्वाचित प्रतिनिधि होता है अगर उसकी अपनी भी सरकार है तो भी उसके पास एक्जिक्यूटिव पावर नहीं होते लेकिन अगर संरक्षण मिला हुआ है तो स्वाभाविक है कि तंत्र भी उसकी बात सुनता है.

उन्नाव रेप मामले में पहले खबर मिली कि सीबीआई ने विधायक को हिरासत में लिया है लेकिन सेंगर ने कहा कि मैं खुद चलकर आया हूं. इस विरोधी बयानों को लेकर सीबीआई के रोल पर आप क्या कहना चाहेंगी?

सिर्फ सीबीआई क्यों? इस देश में एक गलत और मनगढ़ंत सीएजी की रिपोर्ट बनाई गई. और उस गलत रिपोर्ट के ऊपर एक पार्टी दूसरी पार्टी पर इतनी हावी हो गई और जनता ने भी इसे सही मान भी लिया. हम भारतीय हैं, हम बार-बार अपने अधिकारों के बारे में तो पूछते है लेकिन हम अपने कर्तव्य भूल जाते हैं. क्या उस कैग रिपोर्ट को बनाने वाले का कर्तव्य एक मनगढ़ंत, संवेदनात्मक रिपोर्ट बनाने का था.

फिर आप नीचे तक आइए सीबीआई हो, क्राइम ब्रांच हो, पुलिस हो चाहे फिर एक कोई इंस्पेक्टर जो रिपोर्ट दर्ज करता हो, एफआइआर लिखता हो. हम सबको अपनी भारतीयता और कर्तव्य का खयाल करके काम करना चाहिए और इसमें गिरावट आई है. पिछले चार सालों में गिरावट का जो स्तर है वो बढ़ गया है क्योंकि ऐसे लोगों को संरक्षण मिल रहा है. तंत्र चलाने वाले पर बहुत जिम्मेदारी होती है. शीर्ष नेतृत्व का सही वक्त पर बोलना और सही डायरेक्शन दिखाना जरूरी है.

उन्नाव, कटुआ या निर्भया ये वो मामले है जो सामने आ जाते हैं. लेकिन रिपार्ट कहती है कि हर 20 मिनट में एक महिला के साथ रेप होता है. आप एक नेता होने के साथ एक महिला भी हैं. आपको मुताबिक बुनियादी समस्या कहां है?

दो दायित्व होते हैं एक सामाजिक और एक राजनीतिक. राजनीति में तो आरोप-प्रत्यारोप सरकारें एक-दूसरे पर लगाती हैं लेकिन सामाजिक तौर पर मुझे लगता है कि ज्ञान के अभाव में, सिर्फ पढ़ाई-लिखाई वाला ज्ञान नहीं, समाज का स्तर गिर रहा है और उसके गिरने की कई वजहें हो सकती हैं. जो सबसे पहला काम इस सरकार में होना चाहिए था वो बेरोजगारी पर काम करना था. जैसे हमारी सरकार में हुआ मनरेगा ताकि व्यवसाय हो और आय हो. लेकिन बेरोजगारी हो तो स्वाभाविक है जुर्म बढ़ेगा.

क्या इन मामलों को राजनीति से हटकर नहीं देख जाना चाहिए?

जब निर्भया कांड हुआ तो हम कांग्रेस पार्टी की सारी महिलाएं एकत्र होकर सोनिया जी के पास गए और सोनिया जी ने भी बहुत मजबूती से बात रखी. शीला दीक्षित जी ने बयान दिया, सोनिया जी ने बयान दिया लेकिन आज बीजेपी के तरफ से काई बयान ही नहीं आ रहा है, कल हम सड़क पर उतरे लेकिन इस सरकार की तरफ से कोई ये तक बोलने को तैयार नहीं कि क्या सही क्या गलत.

निर्भया मामले मे हम सड़क पर नहीं उतरे थे क्योंकि हमारे पास इतनी ताकत थी कि हम सरकार के सामने जाकर अपनी बात रखें. सरकार ने हमारी बात सुनी और एक्शन लिया. आप आज भले ये कह दो कि आम लोग सड़क पर उतरे थे इसलिए न्याय मिला लेकिन मैं ये कहती हूं कि हम महिला सांसद एकत्र हुए इसलिए एक्शन हुआ.

थोड़े दिन और शोर होगा फिर सब शांत हो जाएगा. फिर एक मामला ऐसा आएगा और हम सब शोर मचाएंगे. इसका हल क्या है?

हल दो तरीके के होते है. एक ये कि इस तरह के मामले बिल्कुल बंद हो जाए और दूसरा ये कि जो हुआ है उसमे दोषी को सजा मिले. निर्भया केस में दोषी को सजा मिली, कानून में बदलाव भी किए गए. बहुत मजबूती से हमारी सरकार ने बात रखी थी.

अब दूसरा ये कि ऐसे मामले हो ही ना. तो सरकार का ये दायित्व बनता है कि वो प्रेरणा दे, ऐसा माहौल बनाए कि लोगों को सामाजिक तौर से सोचने का मौका मिले. लेकिन आज की परिस्थितियों में, बेरोजगारी की स्थितियों में, जो जीएसटी और नोटबंदी के बाद हुआ है जहां छोटा व्यापारी भी मर रहा है स्वाभाविक है कि समाज में गंदगी, क्राइम और बुराई बढ़ेगी.

मतलब सामाजिक बुराई को जीएसटी और नोटबंदी से जोड़ना चाहिए?

नहीं, हम इसे जीएसटी और नोटबंदी से डायरेक्ट नहीं जोड़ रहे, इनडायरेक्ट जोड़ रहे है. इस तरह की चीजें तब होती हैं जब सुशासन नहीं होता कुशासन होता है, बेरोजगारी होती है, जब देश के हालात आर्थिक तरीकों से या और भी तरीकों से खराब होते हैं, तो स्तर गिरने लगता है. मैं ये नहीं कह रही हूं कि नोटबंदी हुई इसलिए रेप हो रहे हैं. इसको गहराई में जाकर सोचने की जरूरत है, समस्या की जड़ों तक जाने की जरूरत है. ये सब चीजें समाज पर प्रभाव डालती है.

रेप को लेकर असंवेदनशील बयानों पर आप क्या कहेंगी?

ऐसा हो सकता है कि किसी कांग्रेस लीडर ने भी कभी अनजाने में गलत बयान दे दिया हो, पूरे मामले को बिना समझे कोई बयान दे दिया हो लेकिन इस तरह के घिनौने घटिया बयान ज्यादा बच्चे पैदा करो, तीन बच्चों की मां को कौन रेप करेगा, ये बयान कौन सी पार्टी से आते है. कांग्रेस ने कभी इस तरह के बयान कभी नहीं दिए हैं.

(अंकिता विरमानी से बातचीत पर आधारित)

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