जब रॉबर्ट वाड्रा, ब्रिटेन में कुछ संपत्तियां खरीदने में मनी लॉन्डरिंग के आरोपों का जवाब देने प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर पहुंचे, तो कांग्रेस की रणनीति काफी दिलचस्प नजर आई. ये पहला मौका था जब प्रियंका गांधी के पति को किसी केंद्रीय एजेंसी की पूछताछ का सामना करना पड़ा था. प्रवर्तन निदेशालय ने रॉबर्ट वाड्रा से बुधवार को करीब पांच घंटे और गुरुवार को भी कई घंटे तक पूछताछ की.
प्रवर्तन निदेशालय रॉबर्ट वाड्रा के पास विदेश में अवैध संपत्ति के मामले की जांच कर रहा है. ये पूछताछ उसी तफ्तीश का हिस्सा थी. ये जांच, सवाल-जवाब और कोर्ट की प्रक्रिया तो अपनी रफ्तार से चलेगी. लेकिन, इस वक्त ज्यादा अहम ये है कि इस पूछताछ का सियासी असर क्या होगा.
रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ का राजनीतिक असर बहुत कुछ इसके समय पर निर्भर करेगा. राजनीति में वक्त बहुत अहम होता है. रॉबर्ट वाड्रा के रियल एस्टेट में अवैध संपत्तियां खरीदने और बेचने के कारोबार में अनियमितताओं की चर्चा 2014 में शुरू हुई थी. उस वक्त बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की अगुवाई में इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था.
मोदी ने कई बार रैलियों में सोनिया गांधी के दामाद पर वार किए और उनके विवादित जमीन सौदों का बार-बार चुनाव प्रचार में जिक्र किया. उसके बाद से रॉबर्ट वाड्रा को पूछताछ के लिए बुलाने में पांच साल लग गए. वो भी तब जब दिल्ली की एक निचली अदालत ने वाड्रा को तफ्तीश के लिए तलब करने का निर्देश दिया.
पिछले पांच सालों में अगर कुछ बदला है, तो वो है रॉबर्ट वाड्रा को लेकर कांग्रेस की रणनीति. इस पर करीब से नजर डालें तो पता चलता है कि वाड्रा को पूछताछ के लिए तलब करने के इर्द-गिर्द किस तरह एक बड़ा सियासी खेल खेला जा रहा है. जब यूपीए सरकार के दौरान राजस्थान और हरियाणा में वाड्रा के विवादित जमीन सौदे करने का शोर उठा था.
तब कांग्रेस ने मामले को टालने की कोशिश की और खुद को इस विवाद से दूर ही रखना बेहतर समझा. कांग्रेस का हाई कमान (यानी गांधी परिवार) इस मामले पर खामोश ही रहा. वहीं, कांग्रेस पार्टी बार-बार यही दोहराती रही कि रॉबर्ट वाड्रा एक आम नागरिक हैं. उनका कारोबार, जो कि बिल्कुल सही और वैध तरीके से चलाया जा रहा है, वो वाड्रा की ही जवाबदेही है. पार्टी का इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है.
वाड्रा का जो कारोबार विवादों, सियासत और मीडिया के दायरे में आया था, उससे कांग्रेस का दूरी बनाना, पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा था. शायद इसके पीछे ये सोच थी कि कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली यानी गांधी परिवार को हर हाल में भ्रष्टाचार के आरोपों से दूर ही रखना है.
ये आरोप कांग्रेस के विरोधी जैसे कि अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण की अगुवाई वाले संगठन, इंडिया अगेंस्ट करप्शन की तरफ से लगाए जा रहे थे कि अक्टूबर 2012 में रॉबर्ट वाड्रा ने रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के साथ जमीन का जो सौदा किया था, वो सियासी फायदा पहुंचाने के एवज में किया गया था.
वहां से आगे बढ़ते हैं और आते हैं 6 फरवरी 2019 की तारीख तक. जब ताजा-ताजा कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनी प्रियंका गांधी वाड्रा अपने पति को पूछताछ के लिए खुद प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर छोड़ने गईं. वहां उन्होंने मीडिया से कहा कि, 'पूरी दुनिया को पता है कि क्या हो रहा है.'
इस बार कांग्रेस की रणनीति एकदम अलग है. और ये सही भी लगती है. 2016 में बीजेपी ने वाड्रा के बचाव में दिए गए सोनिया गांधी के बयान को बड़ा मुद्दा बनाया था. सोनिया गांधी उस वक्त कांग्रेस की अध्यक्ष थीं. तब बीजेपी के एक प्रवक्ता ने आरोप लगाया था कि सोनिया गांधी का वाड्रा की वित्तीय अनियमितताओं के बचाव में दिया गया बयान, उनके एक 'सामान्य नागरिक' होने की पोल खोलता है. बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि सोनिया के बयान से ये साबित हो गया है कि वाड्रा गांधी परिवार से हैं और गांधी परिवार उनके बचाव में खड़ा है.
अपने पति को प्रवर्तन निदेशालय के दरवाजे पर छोड़कर प्रियंका ने जब ये कहा कि वो अपने पति के साथ हैं, तो वो एक साथ कई संदेश दे रही थीं. एक तरफ प्रियंका के बयान से ये बात साफ हो गई कि अब गांधी परिवार वाड्रा पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बचाव की मुद्रा में नहीं है. इस आक्रामक रणनीति का मकसद बीजेपी के प्रचार अभियान की हवा निकालना है. असल में ये बीजेपी को चुनौती है कि वो वाड्रा को निशाना बनाने के लिए जो भी करना है कर ले.
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वहीं दूसरी तरफ, अपने बयान के जरिए प्रियंका ने ये सियासी संदेश भी दिया कि कांग्रेस को रॉबर्ट वाड्रा की बेगुनाही का यकीन है. और, वाड्रा से पूछताछ या उनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां जो जांच कर रही हैं वो बस सियासी मकसद से गांधी परिवार को परेशान करने के लिए की जा रही हैं. और जांच एजेंसियां ये सब काम सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर कर रही हैं.
इत्तेफाकन, रॉबर्ट वाड्रा ने अपने आप को गिरफ्तारी से बचाने के लिए 16 फरवरी तक के लिए अग्रिम जमानत ले रखी है. कांग्रेस ने निश्चित रूप से ये भी हिसाब-किताब लगाया होगा कि जब प्रियंका अपने पति के साथ प्रवर्तन निदेशालय जाएंगी, तो इससे उन्हें लोगों की सहानुभूति मिलेगी. ये संदेश जाएगा कि इस मुश्किल घड़ी में पूरा परिवार एकजुट है. प्रियंका को लेकर मीडिया में जो उत्साह और दिलचस्पी है, वो बाकी का काम कर देगा.
वहीं दूसरे सियासी ध्रुव पर बीजेपी खड़ी है. बीजेपी को अच्छे से पता है कि रॉबर्ट वाड्रा के मामले में 2014 में माहौल उसके पक्ष में था. तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद पर भ्रष्टाचार के आरोपों से सियासी तूफान खड़ा हो गया था. लेकिन, आज पांच साल बाद ये आरोप कोरी बयानबाजी साबित हुए हैं. लोगों के बीच ये आम राय है कि अगर रॉबर्ट वाड्रा ने कुछ भी गलत किया होता, तो बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार अब तक उन पर शिकंजा कस चुकी होती. उन्हें गिरफ्तार कर चुकी होती.
लेकिन, चुनाव से ऐन पहले जिस तरह जल्दबाजी में प्रवर्तन निदेशालय ने रॉबर्ट वाड्रा को पूछताछ के लिए तलब किया, उसमें निष्पक्ष जांच की कोशिश तो बिल्कुल नहीं दिखती. इसके बजाय ऐसा लगता है कि वाड्रा पर लगे आरोपों की जांच का फायदा उठाने का सियासी मौका तलाशा गया है. समीकरणों में आए इस बदलाव ने ही कांग्रेस के हौसले बढ़ा दिए हैं और पार्टी को वाड्रा पर आरोपों को लेकर आक्रामक रुख अपनाने का मौका दे दिया है.
वाड्रा पर लगे आरोप पुराने हैं. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की 2014 की एक जांच रिपोर्ट ने इस बात को उजागर किया था कि कैसे सोनिया के दामाद ने 2009 में राजस्थान में सिंचाई वाली जमीन को खरीदा था. उन्होंने ये सौदा यूपीए सरकार के सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के एलान से ठीक पहले किया था.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है कि, रॉबर्ट वाड्रा ने 'जमीनों के ये सौदे लगातार जारी रखे. 2011 में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का एलान किया. तीन साल के भीतर ही वाड्रा की खरीदी जमीनों के भाव छह गुना तक बढ़ गए. ये बात राज्य के राजस्व विभाग के दस्तावेजों से प्रमाणित होती है.'
वॉल स्ट्रीट जर्नल की पड़ताल में ये बात सामने आई कि जब एक दशक तक केंद्र में वाड्रा के ससुराल पक्ष की अगुवाई वाली सरकार थी, तो महज हाई स्कूल तक पढ़ाई करने वाले 44 बरस के वाड्रा ने जमीन के सौदों का कोई तजुर्बा न होने के बावजूद बड़ी तादाद में जमीनें खरीदी थीं. वाड्रा की संपत्ति में इस बेतहाशा बढ़ोत्तरी के पीछे अब तक कोई ठोस तर्क नहीं पेश किया जा सका है.
उनके ऊपर लगे आरोपों की जांच में भी अब तक कुछ नहीं निकला है. पुराने आरोपों में कुछ नए आरोप जरूर जुड़ गए हैं कि रॉबर्ट वाड्रा लंदन में कई आलीशान संपत्तियों के मालिक हैं. और ये संपत्तियां हथियारों के भगोड़े दलाल संजय भंडारी के जरिए खरीदी गई थीं.
हो सकता है कि अभी भी प्रियंका के पति के खिलाफ मामला बनता हो. लेकिन, जांच में इतनी देरी और चुनाव से ठीक पहले तफ्तीश में आई तेजी से राजनीतिक साजिश के आरोपों को बल मिलता है. केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अचानक ही एयरसेल-मैक्सिस समझौते की जांच, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ लगे अवैध जमीन सौदों की पड़ताल, वाड्रा के खिलाफ तफ्तीश या फिर सारदा और रोज वैली चिट फंड घोटाले की जांच में अचानक तेजी दिखाई है.
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लेकिन, चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से ये एजेंसियां विपक्षी दलों के खिलाफ सक्रिय हुई हैं, उससे बीजेपी का ये दावा खोखला लगता है कि वो भ्रष्टाचार के मामले के बड़े आरोपियों को भी कानून के शिकंजे में कसने से पीछे नहीं हटेगी. इसके उलट, सियासी फायदे के लिए इन जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप बीजेपी पर मजबूती से लगता है.
अब इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये तो पता नहीं. बड़े सियासी खेल में अब मोर्चे बदल चुके हैं. वाड्रा को लेकर बीजपी की अधकचरी चतुराई इस बार काम नहीं आने वाली.
( इस लेख को अंग्रेजी में यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है. )
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