अमूमन बुंदेलखंड की चर्चा गरीबी, बेरोजगारी, सूखे के चलते होती है लेकिन चुनाव की सुगबुगाहट होते ही बुंदेलखंड एक रोचक सियासी जंग की जगह बन जाता है.
हर चुनाव से पहले अलग बुंदेलखंड की मांग कॉमन रूप से पार्टियों के एजेंडे में जुड़ी रहती है.
बरसों से सुलग रहे इस मुद्दे को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले फिर हवा दी जाने लगी है. भाजपा खासकर उनकी नेता उमा भारती अभी इसकी अगुवाई कर रही हैं.
हाल ही में ललितपुर के दशहरा मैदान में हुई परिवर्तन सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने बुंदेलखंड राज्य का समर्थन किया.
उन्होंने कहा,'भाजपा हमेशा छोटे राज्यों की पक्षधर रही है. मैं ऐसा मानती हूं कि बुंदेलखंड अलग राज्य बनना ही चाहिए. लेकिन यह मेरा राजनीतिक मुद्दा नहीं है.
बुंदेलखंड राज्य निर्माण के लिए सही नक्शा बनाया जाना जरूरी है. इसके लिए जनता को प्रदेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए. आप सभी भाजपा की सरकार बनाएं तभी बुंदेलखंड राज्य बन सकता है.'
इससे पहले भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने झांसी में हुई पहली कार्यसमिति में इसके लिए प्रस्ताव पारित किया.
यूपी को चार हिस्सों में बांटने की मांग थी
वैसे उत्तर प्रदेश में हो रहे पिछले विधानसभा चुनाव के पहले नवंबर, 2011 में बसपा सरकार ने राज्य को चार हिस्सों में बांटने की मांग की थी.
पश्चिम उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पूर्वांचल राज्य के गठन का प्रस्ताव मायावती सरकार ने पारित किया था.
लेकिन बुंदेलखंड की मांग ने राज्य के बाकी टुकड़ों की मांग से ज्यादा जोर पकड़ा. भाजपा ने इस मांग को जोरदार समर्थन किया.
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वरिष्ठ नेता उमा भारती को महोबा के चरखारी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाकर इस भावना की भुनाने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई.
उसे विधानसभा चुनाव में मात्र 51 सीटें हासिल हो पाईं. उमा भारती जब महोबा की चरखारी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ीं और जीती थीं, तब उन्होंने इस क्षेत्र को 'उत्तर प्रदेश का कश्मीर' बनाने का वादा किया, लेकिन वहां कोई परिवर्तन नहीं हुआ. कश्मीर बनाना तो दूर, वह अक्सर विधानसभा सत्र से गायब ही रहीं.
बाद में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसे खूब भुनाया. 11 अप्रैल 2014 को झांसी में तब की लोकसभा उम्मीदवार उमा भारती ने वादा किया कि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने पर तीन साल के अंदर बुंदेलखंड को अलग राज्य बनवा दिया जाएगा.
लेकिन तीन साल पूरे होने वाले हैं. इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
लोकसभा में एक सवाल पर गृह राज्य मंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी कह चुके हैं कि नए राज्यों के निर्माण के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.
अपने फायदे के लिए
मतलब साफ है कि भाजपा की नेता उमा भारती इस मुद्दे का इस्तेमाल हर चुनाव में सिर्फ अपने फायदे के लिए कर रही है.
बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद सुर्खियों में आईं उमा भारती अपनी गंगा सफाई के मसले में कुछ खास नहीं कर पाई हैं.
ऐसे में उन्हें लगता है कि बुंदेलखंड ही उनके सियासी जीवन को आॅक्सीजन देने का काम करेगा.
गौरतलब है कि उमा भारती पिछले एक दशक से ज्यादा समय से अपने राजनीतिक करियर के सबसे खराब दौर से गुजर रही हैं.
आखिरी बार उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में रहा. उस दौरान उन्होंने बीजेपी को तीन-चौथाई बहुमत दिलाया था और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं थी.
अगस्त 2004 जब उनके खिलाफ 1994 के हुबली दंगों के संबंध में गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ तब उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
फिर राजनीतिक पासा कुछ ऐसा पलट गया कि उमा भारती चाहकर भी दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं.
पार्टी से नाराजगी और वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बयानबाजी करते हुए वे भाजपा से दूर होती गईं.
दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज उमा भारती ने एलके आडवाणी और पार्टी के दूसरे नेताओं की सार्वजनिक आलोचना करनी शुरू कर दी.
भाजपा से की थी बगावत
भाजपा से बगावत करते हुए उमा भारती ने भोपाल से अयोध्या तक पदयात्रा की और भारतीय जन शक्ति पार्टी (बीजेएसपी) के नाम से अपना अलग राजनैतिक दल बनाया.
हालांकि नई पार्टी स्थापित करने के बाद भी उन्हें कुछ खास कामयाबी नहीं मिली.
फिलहाल भाजपा से उनकी दूरी बहुत दिनों तक नहीं चली. भाजपा छोड़ने के छह साल बाद तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने 7 जून 2011 को उमा भारती की पार्टी में वापसी की घोषणा की.
उमा भारती उत्तर प्रदेश के 2012 के चुनाव में चरखारी से चुनाव लड़ी और जीतीं, लेकिन पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा.
फिर 2014 में झांसी से लोकसभा चुनाव जीतीं और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुईं. मोदी सरकार में उन्हें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
दो साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद विश्लेषक जल संसाधन मंत्री के रूप में उमा भारती के कामकाज को अच्छी रेटिंग नहीं दे रहे हैं. इस दौरान उमा भारती सिर्फ दावे करती नजर आईं.
उन्होंने दावा किया है कि गंगा सफाई प्रयासों का असर अक्टूबर 2016 से दिखने लगेगा और वर्ष 2018 तक गंगा पूरी तरह साफ हो जाएगी.
हालांकि गंगा की हकीकत देखने के बाद उनका यह दावा सुनने में अविश्चसनीय ही लगता है. फिलहाल ऐसा ही बुंदेलखंड के मामले में है.
अगर हकीकत देखी जाए तो बुंदेलखंड निर्माण का वादा सिर्फ उमा भारती की सियासी मजबूरी दिखाई पड़ती है.
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