त्रिपुरा में तीन मार्च को चुनाव परिणाम आया. वामपंथ का गढ़ भगवामय हो गया. इस दौरान सत्ता के मद में अति उत्साहित होकर सीधी लड़ाई में बड़ी जीत हासिल करने वाले भगवा ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने वामपंथी इतिहास के प्रतीक लेनिन की मूर्ति को तोड़ दिया. वो भी बुल्डोजर लगाकर सरेआम ऐसा किया गया.
अगरतला से लेकर नई दिल्ली तक सियासी विरोध भी हुआ. इस तरह की घटनाओं की निंदा भी की गई थी. प्रतीकात्मक विरोध के नाम पर की गई तोड़-फोड़ ने जब वीभत्स रुप ले लिया तो फिर प्रधानमंत्री को भी इस मुद्दे पर बोलना पड़ा था.
लेकिन, प्रधानमंत्री जब अगरतला में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे तो फिर से एक संदेश देने की कोशिश की. प्रतिमा तोड़-फोड़ की घटना और त्रिपुरा के अलग-अलग भागों में हुई कुछ हिंसक घटनाओं के बाद उन्होंने ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे के जरिए फिर संदेश देने की कोशिश की.
'जिन्होंने वोट नहीं दिया, उनकी भी सरकार'
मोदी ने साफ-साफ शब्दों में कहा ‘जिन्होंने हमें वोट दिया है उनकी भी सरकार है, जिन्होंने वोट नहीं दिए हैं उनकी भी सरकार है.’ मोदी ने साफ कर दिया कि राज्य में हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा. उनकी तरफ से यह संदेश मंच पर बैठे नए नवेले मुख्यमंत्री बिप्लब देब समेत उनकी सरकार के सभी मंत्रियों के लिए था.
त्रिपुरा के वामपंथ के दुर्ग को ढ़हाकर भगवा फहराने के बाद अब वहां के लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना सबसे बड़ी चुनौती है. इस बात को प्रधानमंत्री समझ रहे हैं, तभी वो सबके सहयोग के साथ राज्य के विकास को प्राथमिकता से लागू करने की बात कर रहे हैं.
विपक्ष के सहयोग की बात
त्रिपुरा की 25 साल पुरानी वामपंथी सरकार को लेकर लोगों में गुस्सा था. परिवर्तन की लहर पर सवार होकर त्रिपुरा के लोगों ने चलो पलटाई के नारे को स्वीकार किया. अब बारी बीजेपी की है. लिहाजा इधर-उधर की बातों में उलझने के बजाए प्रधानमंत्री सीधे राज्य के विकास की बात कर रहे हैं और वो भी विपक्षी वामपंथी पार्टी के सहयोग से.
मोदी ने कहा कि ‘सत्ता पक्ष के पास त्रिपुरा के लिए खप जाने की शक्ति है. राज्य को नई उंचाइयों पर ले जाने की युवा शक्ति है, नए-नए सपने हैं, जबकि दूसरी तरफ विपक्ष के पास यहां काम करने का अनुभव रहा है. लिहाजा सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को मिलकर त्रिपुरा के विकास में योगदान करने की जरूरत है.’
मोदी ने जनभागीदारी से जनतंत्र का भी मंत्र दिया. यानी केवल सरकार और विपक्ष ही नहीं वहां के लोगों की भागीदारी से ही विकास संभव है.
नॉर्थ ईस्ट में विकास होगी चुनौती
दरअसल, मोदी इस बात को समझ रहे हैं कि त्रिपुरा में मिली दो-तिहाई की जीत के बाद लोगों को त्रिपुरा समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में विकास को लेकर काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं. वो बताना नहीं भूले कि उनकी सरकार की नॉर्थ-ईस्ट को लेकर काम करने की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को लेकर वो कितने संजीदा हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद चार सालों में 25 बार से ज्यादा बार उनका नॉर्थ-ईस्ट जाना यह बताता है कि इस इलाके में विकास को लेकर वो कितने गंभीर हैं.
यही बात बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी अगरतला में शपथ ग्रहण समारोह के बाद कहा. शाह ने कहा कि ‘मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते हुए नार्थ-ईस्ट काउंसिल की बैठक शिलांग में हुई थी, उसके बाद अब मोदी सरकार के कार्यकाल में मीटिंग नार्थ-ईस्ट में हुई है.’
मोदी इस मौके को ऐतिहासिक बताना नहीं भूले. यह मौका ऐतिहासिक है भी क्योंकि पहली बार दो विपरीत विचारधाराओं की लड़ाई में दक्षिणपंथ ने वामपंथ को पटखनी दे दी है. त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में नए मुख्यमंत्री बिप्लब देब और उनके मंत्रियों के शपथग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, राजनाथ सिंह समेत कई केंद्रीय मंत्री, पार्टी के वरिष्ठ नेता और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद रहे.
बीजेपी का शक्ति प्रदर्शन उसके बढ़ते कद की धमक दिलाने वाला था, जिसकी धमक अब नार्थ-ईस्ट तक भी पहुंच गई है. लेकिन, लंबे वक्त तक सत्ता में रहने के लिए पार्टी को मोदी के मंत्र को ध्यान में रखकर बढ़ना होगा.
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