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तीन तलाक: मुस्लिम वोटबैंक को लेकर दुविधा में पड़ी कांग्रेस की कैसी होगी नीति

कांग्रेस राज्यसभा में विधेयक को आसानी से पारित होने देगी या फिर अड़ंगा लगाते हुए जोर देगी कि विधेयक संसद की प्रवर समिति को सौंपा जाए इसे लेकर संशय बरकरार है

Updated On: Dec 30, 2017 11:32 AM IST

Kamlendra Kanwar

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तीन तलाक: मुस्लिम वोटबैंक को लेकर दुविधा में पड़ी कांग्रेस की कैसी होगी नीति

कांग्रेस पार्टी दुविधा के दोराहे पर है. कल तक उसने मुसलमानों के तुष्टीकरण की नीति अपनाई. दलित और ओबीसी तबके जैसे विशेष समूहों को छोड़ दें तो कह सकते हैं कि कांग्रेस को हिंदू वोट बैंक की फिक्र नहीं रही लेकिन गुजरात विधानसभा के चुनाव अभियान से जाहिर होता है कांग्रेस हिंदुओं को लुभाने का बड़ा धीरज भरा जतन कर रही है.

इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी का गुजरात के मंदिरों में माथा टेकने का प्रेम अचानक उमड़ पड़ा, उन्हें अपनी हिंदू पहचान जताने की एकबारगी फिक्र हुई.

कांग्रेस की नीति नई राह पर है, इसका पता तीन तलाक के मसले पर पार्टी के रुख से भी चलता है. तीन तलाक का मसला मुस्लिम मानस की संवेदनशीलता की एक तरह से कसौटी बनकर उभरा है.

बीजेपी अपनी तरफ से कोशिश कर रही है कि वह मुस्लिम समुदाय के कुछ तबकों का दिल जीत सके लेकिन बीजेपी का इतिहास चूंकि हिंदू केंद्रित रहा है सो इस कोशिश में उसे कम कामयाबी मिली है. तलाक की प्रथाओं को लेकर कानूनी तौर पर कोई विधिवत रुप मौजूद नहीं है. इस बात को सामने कर बीजेपी मुस्लिम महिलाओं के हित की बात उठाने की कोशिश करते हुए तलाक के मसले पर मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियों के बीच के दुराव को भुनाना चाहती है.

बीजेपी तीन तलाक के चलन को बंद करने की पैरोकारी कर रही है. उसकी इस कोशिश को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से बहुत बल मिला है. कोर्ट ने अगस्त में 3:2 के बहुमत से आदेश सुनाया और मौखिक रुप से या फिर एसएमएस और ईमेल के जरिए लगातार तीन बार तलाक कहकर विवाह खत्म करने की घटिया प्रथा पर रोक लगाई.

Supreme Court Strikes Down Instant Triple Talaq

लोकसभा से तीन तलाक विधेयक पास होने पर देश भर की मुस्लिम महिलाएं खुश हैं

कोर्ट ने जो रोक लगाई थी उसे विधेयक में कानून का रुप दिया गया

मुस्लिम पुरुष, खासकर मुल्ला-मौलानाओं की जमात जो मर्दों की बरतरी की भावना के सहारे जीती-जागती है, फैसले से खुश नहीं थी. लेकिन यह जमात खास कुछ कर नहीं पाई कि संसद में विधेयक आ गया. कोर्ट ने जो रोक लगाई थी उसे विधेयक में कानून का रुप दिया गया. कोर्ट के आदेश को प्रभावी रुप देने के लिए 6 महीने के भीतर उसे कानूनी रुप देना जरुरी था.

बीजेपी को मुस्लिम महिलाओं की शाबासी मिली कि पार्टी ने उनके हित से जुड़े मसले की तरफदारी की लेकिन कांग्रेस इस सबके बीच सिर्फ सोच में खोई रही. कांग्रेस पुराने ढर्रे पर होती तो निश्चित ही मुल्ला जमात के पक्ष में खड़ी दिखती लेकिन तीन तलाक मसले पर पार्टी दुविधा में घिर गई है. कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एलान किया कि कांग्रेस तीन तलाक पर रोक लगाने वाले कानून का समर्थन करती है. लेकिन अपने इस बयान में उन्होंने यह भी जताया कि 'इस कानून को मजबूत बनाने की जरूरत है.'

उन्होंने हाल ही में कहा था कि 'कानून को मजबूत बनाने के लिए हमारे पास कुछ सुझाव हैं ताकि यह कानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की हिफाजत करे और वो पर्याप्त गुजारा भत्ता के साथ गरिमा की जिंदगी जी सकें.'

फिलहाल इस बात पर रहस्य कायम है कि कांग्रेस राज्यसभा में विधेयक को आसानी से पारित होने देगी (लोकसभा में विधेयक गुरुवार को पारित हो गया) या फिर अड़ंगा लगाते हुए जोर देगी कि विधेयक संसद की प्रवर समिति को सौंपा जाए या फिर यह कहेगी कि तीन तलाक पर रोक का उल्लंघन करने पर 3 साल के जेल का जो प्रावधान किया गया है उसे हटाया जाना चाहिए.

Ravishankar Prasad

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में तीन तलाक विधेयक को पेश किया था (फोटो: पीटीआई)

राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पर कांग्रेस का रुख बहुत अहम है

बीजेपी राज्यसभा में अभी भी अल्पमत में है. ऐसे में विधेयक पर कांग्रेस का रुख बहुत अहम है, खास कर ये देखते हुए कि तीन तलाक के चलन पर रोक का विधेयक जब लोकसभा में पेश किया गया तो एआईडीएमके, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीजू जनता दल और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) जैसी पार्टियों ने इसका विरोध किया था.

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अगर कांग्रेस विधेयक पर बीजेपी का समर्थन करती है तो विधेयक राज्यसभा में आसानी से पारित हो जाएगा. चुनावी राजनीति के एतबार से देखें तो बहुत सी मुस्लिम महिलाएं कांग्रेस के पाले में चली जाएंगी. लेकिन बीजेपी इस बात से संतोष कर सकती है कि मुस्लिम समुदाय के भीतर उसकी पैठ बढ़ी जैसा कि बीजेपी मानती है कि उसने गुजरात के चुनावों में भी किया था.

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की नीति में बदलाव आई है और इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद हैं. इसी का संकेत है जो वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अलग रुख अपनाते हुए इस बात पर जोर दिया है कि प्रस्ताविक कानून लोगों की निजी जिंदगी में दखल है, यह एक दीवानी मामले को फौजदारी के कानूनों के दायरे में ले आता है.

कांग्रेस के एक और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की तरफ से तीन तलाक के मामले की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने का फैसला किया. उनका तर्क था कि यह सदियों से चली आ रही परंपरा है और इसे असंवैधानिक नहीं माना जा सकता. कपिल सिब्बल का यह फैसला भी पार्टी के बड़े नेताओं को ठीक नहीं लगा.

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पार्टी के मीडिया प्रभारी सुरजेवाला राहुल गांधी के लिए आंख और कान जैसे हैं.  उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा तीन तलाक के मसले को लैंगिक न्याय (जेंडर जस्टिस) और लैंगिक समानता (जेंडर इक्वॉलिटी) के नजरिए से देखा है. कांग्रेस फौरी तीन तलाक को खत्म करने वाले किसी भी कानून का समर्थन करेगी.

संसद परिसर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ राहुल गांधी. (फोटो- पीटीआई)

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद तीन तलाक को लेकर पार्टी की नीति में बदलाव आया है (फोटो: पीटीआई)

महिला और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए गुजारा-भत्ता मिले

उन्होंने यह बात दोहराई कि पति 3 साल के लिए जेल में हो तो विधेयक में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिला और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए गुजारा-भत्ता मिले. यह प्रावधान प्रस्तावित विधेयक में है. विधेयक का समर्थन कर रहे बीजेपी के सांसद इस पर क्या रुख अपनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. लेकिन अगर बीजेपी कांग्रेस के सुझाए संशोधन को मानने से इनकार करती है तब भी क्या विधेयक को कांग्रेस का समर्थन मिलेगा? यह भी देखने वाली बात है और वोट बैंक के लिहाज से इसे एक अहम माना जा सकता है.

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