मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से छुटकारा दिलाने को लेकर लोकसभा में बिल तो पास हो गया है. लेकिन, सरकार को असली परीक्षा का सामना राज्यसभा में करना पड़ रहा है. सरकार बहुमत नहीं होने के कारण राज्यसभा में कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों को साधने में लगी है.
पहले सरकार ने राज्यसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को पेश करने के लिए मंगलवार का दिन तय किया था. लेकिन, लिस्टेड होने के बावजूद इस बिल को एक दिन और टालकर बुधवार को राज्यसभा में पेश करने की पहल को, राज्यसभा में सहमति बनाने और बिल के पक्ष में नंबर जुटाने की कवायद माना जा रहा है.
मंगलवार को संसदीय कार्यमंत्री ने औपचारिक तौर पर इस बात की जानकारी देते हुए साफ कर दिया है कि तीन तलाक से जुड़ा बिल अब बुधवार यानी तीन जनवरी को राज्यसभा में पेश किया जाएगा. हालांकि सरकार की कोशिश यही है कि राज्यसभा से भी इसी सत्र में ही बिल को पारित करा लिया जाए.
सरकार के पास 3 दिन का समय
लेकिन, मौजूदा सत्र पांच जनवरी तक ही है, लिहाजा इसमें तीन दिन का ही अब वक्त बचा है. ऐसे में सरकार के लिए बिल पर सहमति बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.
दरअसल विपक्ष के अधिकतर दलों को आपत्ति इस बात को लेकर है कि तीन तलाक के मसले में तलाक देने वाले शौहर को तीन साल की सजा का प्रावधान है. एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से लोकसभा के भीतर यह सवाल उठाया जा चुका है कि जब शौहर जेल चला जाएगा तो तलाकशुदा औरत को गुजारा भत्ता कौन देगा. ओवैसी के बयान पर लेफ्ट समेत कई क्षेत्रीय दलों की तरफ से सहमति जताई गई है. उनकी तरफ से भी इस बिल में सजा के प्रावधानों को लेकर सवाल खड़ा किया गया है.
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सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति पर चल रही कांग्रेस की तरफ से भी इन दिनों इस बिल पर भी सॉफ्ट रुख ही दिखाया जा रहा है. लेकिन, कांग्रेस को भी लग रहा है कि सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए. ऐसे में कांग्रेस की तरफ से इस बिल के राज्यसभा में पेश होने के बाद इसके सेलेक्ट कमिटी या स्टैंडिंग कमिटी में भेजे जाने की मांग की जा रही है.
कांग्रेस को लगता है कि जब यह बिल सेलेक्ट कमिटी या स्टैंडिंग कमिटी में जाएगा तो बिल पास कराने का श्रेय उसे भी मिलेगा.
क्या हैं राज्यसभा के आंकड़े
सरकार को राज्यसभा से बिल पास कराने के लिए 123 सांसदों के समर्थन की जरूरत है. लेकिन, इस वक्त सरकार के पास इतना नंबर जुटाना मुश्किल है.
राज्यसभा में बीजेपी के 57 सांसद हैं, जबकि, जेडीयू के 7, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के 3-3, और टीडीपी के 6 राज्यसभा सांसद हैं. इसके अलावा सरकार को टीआरएस के 3, आरपीआई के 1 और एनपीएफ के 1 सांसद का भी समर्थन मिल जाएगा. आईएनएलडी के 1 सांसद के अलावा और भी कई सांसदों को सरकार अपने पाले में लाना चाह रही है. लेकिन, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के सांसदों की ताकत राज्यसभा में उसे बहुमत के करीब पहुंचाने लायक नहीं है.
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ऐसे में सरकार की पूरी कोशिश कांग्रेस को साथ लाने की है. अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार का साथ दे दिया तो फिर सरकार राज्यसभा में आसानी से बिल पास करा सकेगी. राज्यसभा में कांग्रेस के 57 सांसद हैं.
हालांकि, कांग्रेस के अलावा यूपीए में उसकी सहयोगी एनसीपी के 5, डीएमके के 4 , आरजेडी के 3 और टीएमसी के 12 सांसद हैं. इन सबकी भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण हैं.
गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दलों का भी राज्यसभा के भीतर खासा दबदबा है. इनमें एआईएडीएमके के 13, बीजेडी के 8, सीपीएम के 7 और सीपीआई के 1, एसपी के 18 और बीएसपी के 5 सांसद शामिल हैं. इन पार्टियों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है.
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दरअसल बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है. बीजेपी को भी पता है कि राज्यसभा में बहुमत नहीं हो पाने के चलते उसे छोटे दलों को या फिर कांग्रेस को राजी करना होगा. लेकिन, छोटे दलों की राजनीति को देखते हुए बीजेपी के लिए ऐसा कर पाना शायद मुश्किल हो. लिहाजा कांग्रेस को ही साधने की कोशिश की जाएगी. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस के सुझाव को मानकर इस मसले पर कुछ जरूरी संशोधन के लिए तैयार हो सकती है.
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