मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को रोकने के लिए लाया गया मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक गुरुवार को लोकसभा से पास हो गया. इसके पक्ष में 245 और खिलाफ में 11 वोट पड़े. वोटिंग के दौरान कांग्रेस, AIADMK, डीएमके और समाजवादी पार्टी के सदस्य सदन से वॉक आउट कर गए.
विधेयक में सजा के प्रावधान का कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया और इसे जॉइंट सलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की. हालांकि सरकार ने स्पष्ट कहा कि यह विधेयक किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लाया गया है.
संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में केंद्र सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है. ऐसे में माना जा रहा था कि इस विधेयक को लोकसभा से पास कराने में कोई समस्या नहीं आएगी. लेकिन कई मुद्दों पर केंद्र सरकार की साथ देने वाली AIADMK के इस विधेयक पर वोटिंग के दौरान सदन से वॉक आउट कर जाने के बाद इसे राज्यसभा से पास कराने में सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
2017, अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए सरकार को इस मामले पर कानून बनाने के लिए कहा था. सरकार ने 2017, दिसंबर में लोकसभा में इससे जुड़ा विधेयक पारित कराया, लेकिन यह बिल राज्यसभा में अटक गया क्योंकि उच्च सदन में सरकार के पास बहुमत नहीं है.
क्या है राज्यसभा का गणित
फिलहाल राज्यसभा में एनडीए के 86 सांसद हैं. इसमें से 73 बीजेपी, जेडीयू के 6, शिवसेना के 3 और आरपीआई के 1 सदस्य शामिल हैं. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के 97 सांसद राज्यसभा में हैं. कांग्रेस के पास 50, समाजवादी पार्टी के पास 13, टीएमसी के 13, सीपीएम के 5, एनसीपी के 4, बीएसपी के 4, सीपीआई के 2 और पीडीपी के कुल 2 सदस्य हैं.
इसके अलावा कुछ दल ऐसे भी हैं जो न सत्ता पक्ष के साथ हैं और न ही विपक्ष के साथ. ये दल समय और परिस्थितियों के हिसाब से किसी मुद्दे पर समर्थन करने और नहीं करने पर फैसला लेते हैं. ऐसे दलों के कुल 28 सांसद राज्यसभा में मौजूद हैं. जिनमें से AIADMK के 13, टीआरएस के 6 और बीजेडी के 9 सदस्य हैं. लोकसभा में तीन तलाक बिल पर वोटिंग के दौरान AIADMK के वॉक आउट करने के बाद अब सबसे अहम सवाल यह खड़ा होता है कि राज्यसभा में इस पार्टी का रुख क्या रहने वाला है.
संसद का शीतकालीन सत्र भी 5 जनवरी को खत्म हो रहा है. ऐसे में सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि राज्यसभा से इस विधेयक को पारित कराया जाए. अगर इस बार भी विधेयक राज्यसभा में अटक गया तो सरकार को अध्यादेश का सहारा लेना पड़ेगा. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले सरकार चाहेगी कि इस विधेयक को पारित करा लिया जाए और प्रचार के दौरान इसे एक उपलब्धि के तौर पर जनता के बीच मुद्दा बनाया जाए.
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