मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक देने पर रोक लगाने वाले बिल ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण बिल' गुरुवार को लोकसभा से पारित हो गया. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस बिल पर चर्चा में भाग तो लिया लेकिन, वोटिंग के दौरान सदन का बहिष्कार कर दिया. लोकसभा में सरकार के पास बहुमत है, लिहाजा बिल पास कराने में सरकार को ज्यादा परेशानी नहीं हुई.
कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों की तरफ से इस बिल पर लगातार विरोध किया जा रहा था. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो इसे संविधान के खिलाफ बता दिया. लेकिन, सरकार की तरफ से तैयारी पूरी थी. इस बिल पर सदन में चर्चा कराने में सफल सरकार ने इस मुद्दे पर विपक्ष पर बढ़त बना ली है. लोकसभा चुनाव से पहले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान तीन तलाक का बिल सदन में चर्चा के लिए आना और उस पर गरमागरम बहस कराना सरकार की सफलता ही है, क्योंकि इस मुद्दे पर उसने गंभीरता का परिचय दिया है.
मुस्लिम महिलाओं के न्याय दिलाने के लिए बीजेपी लंबे वक्त से यह मुद्दा उठाती रही है. बीजेपी का तर्क रहा है कि जब दुनिया के कई इस्लामिक देशों में इस ‘कुप्रथा’ को खत्म कर दिया गया है तो फिर हमारे यहां इसे रखने का क्या मतलब है. लोकसभा में बिल पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘20 इस्लामिक राष्ट्रों ने ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है, तो हमारे जैसा धर्म निरपेक्ष राष्ट्र ऐसा क्यों नहीं कर सकता? मेरा अनुरोध है कि इसे राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.’
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ‘तलाक-ए-बिद्दत एक क्रिमिनल एक्ट है. प्रधानमंत्री का विशेष अभिनंदन करती हूं, क्योंकि आपने राजनीति के मकसद से इसकी शुरुआत नहीं की. इंसाफ को अब तक देर हुई है, लेकिन अब वक्त खत्म हो गया है.’
कांग्रेस नेता सुष्मिता देव ने कहा, ‘ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाकर मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता. आगे बोलते हुए उन्होंने कहा शाहबानो से लेकर शायराबानो तक हमारे पास कई उदाहरण हैं जिसमें पुरुषों ने आराम से कानूनन उन्हें तलाक दे दिया.’
हालांकि इसके पहले भी पिछले साल लोकसभा ने तीन तलाक पर बिल पास कर दिया था. लेकिन, उसके बाद लगातार राज्यसभा में इस बिल को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है. कांग्रेस समेत विपक्षी दल इस बिल को स्टैंडिंग कमिटी के सामने भेजने की मांग कर रहे हैं. हालाकि बिल के पहले के प्रावधान में कुछ बातों को लेकर विरोध भी हो रहा था, जिसके बाद सरकार ने भी नरम रुख अख्तियार करते हुए कुछ संशोधन भी किए हैं. फिर भी विपक्ष इस पर राजी नहीं हो रहा है.
मोदी कैबिनेट ने इस बिल में 9 अगस्त को तीन संशोधन किए थे, जिसमें जमानत देने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होगा और कोर्ट की इजाजत से समझौते का प्रावधन भी होगा. इस बिल में पहला प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था. इतना ही नहीं पुलिस खुद का संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी. लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि अब पीड़िता, सगा रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेगा.
इसके अलावा पहले यह प्रावधान था कि तीन तलाक एक गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था. पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी लेकिन अब नया संशोधन यह कहता है कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा.
इसके अलावा तीसरे प्रावधान के मुताबिक, पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा.
इन तीन संशोधनों के बाद सरकार का तर्क है कि अब सभी लोगों की चिंताओं को दूर कर लिया गया है. लिहाजा विपक्ष को भी इस मुद्दे पर अब साथ देना चाहिए. लेकिन, कांग्रेस के रुख से ऐसा नहीं लगता कि राज्यसभा में वो सरकार की तरफ से लाए गए इस बिल का समर्थन करेगी.
ऐसे में सरकार तीन तलाक बिल के मुद्दे को लोकसभा से पारित कराकर अब इस मुद्दे पर यह दिखाने की कोशिश करेगी कि मुस्लिम महिलाओं के प्रति सही मायने में वहीं चिंता करती है, बाकी दूसरे विपक्षी दल तो महज वोटबैंक की चिंता रखते हैं. चुनाव से पहले इस मुद्दे पर बीजेपी को इस मुद्दे पर सियासी बढ़त की उम्मीद कर रही है.
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