लोकसभा से तीन तलाक रोकने को लेकर लाया गया बिल पास करने के साथ ही अब इसके राज्यसभा में पास होने को लेकर रणनीति बननी शुरू हो गई है. सरकार की पूरी कोशिश है कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक अब राज्यसभा से भी इसी सत्र में ही पारित करा लिया जाए.
सरकार की तरफ से मंगलवार को इस बिल को राज्यसभा में पेश कर पारित कराने की रणनीति बनाई गई है. हालांकि सरकार के लिए यहां बिल को पारित कराने में थोड़ी परेशानी हो सकती है. नंबर के लिहाज से सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है.
कैसी है राज्यसभा में सरकार की स्थिति?
राज्यसभा में बीजेपी के 57 सांसद हैं, जबकि, जेडीयू के 7, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के 3-3, और टीडीपी के 6 राज्यसभा सांसद हैं. इसके अलावा सरकार को टीआरएस के 3, आरपीआई के 1 और एनपीएफ के 1 सांसद का भी समर्थन मिल जाएगा. आईएनएलडी के 1 सांसद के अलावा और भी कई सांसदों को सरकार अपने पाले में लाना चाह रही है. लेकिन, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के सांसदों की ताकत राज्यसभा में उसे बहुमत के करीब पहुंचाने लायक नहीं है.
ऐसे में सरकार की पूरी कोशिश कांग्रेस को साथ लाने की है. अगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार का साथ दे दिया तो फिर सरकार राज्यसभा में आसानी से बिल पास करा सकेगी. राज्यसभा में कांग्रेस के 57 सांसद हैं.
हालांकि, कांग्रेस के अलावा यूपीए में उसकी सहयोगी एनसीपी के 5, डीएमके के 4, आरजेडी के 3 और टीएमसी के 12 सांसद हैं. इन सबकी भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण हैं.
गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दलों का भी राज्यसभा के भीतर खासा दबदबा है. इनमें एआईएडीएमके के 13, बीजेडी के 8, सीपीएम के 7 और सीपीआई के 1, एसपी के 18 और बीएसपी के 5 सांसद शामिल हैं. इन पार्टियों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है.
अब क्या करेगी सरकार?
दरअसल बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है. बीजेपी को भी पता है कि राज्यसभा में बहुमत नहीं हो पाने के चलते उसे छोटे दलों को या फिर कांग्रेस को राजी करना होगा. लेकिन, छोटे दलों की राजनीति को देखते हुए बीजेपी के लिए ऐसा कर पाना शायद मुश्किल हो. लिहाजा कांग्रेस को ही साधने की कोशिश की जाएगी. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस के सुझाव को मानकर इस मसले पर कुछ जरूरी संशोधन के लिए तैयार हो सकती है.
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दरअसल, बीजेपी की रणनीति के केंद्र में भी यही बात है, जिसमें वो तीन तलाक के मसले पर तेजी से आगे बढ़कर अपने कोर वोटर को साधने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लग रहा है कि तीन तलाक के मसले पर उसे एक साथ दो तबके का साथ मिल जाएगा.
बीजेपी को लग रहा है कि तीन तलाक के मसले पर बिल पास कराकर वो अपने हिंदुत्व के समर्थकों को भी एक संदेश देने में सफल रहेगी. दूसरी तरफ, मुस्लिम महिलाओं के मन में भी पार्टी के प्रति एक सॉफ्ट कार्नर दिखेगा. यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त भी कुछ इलाकों में थोड़े ही संख्या में सही मुस्लिम महिलाओं ने बीजेपी का साथ दिया था. अब पार्टी इसे पूरे देश में आजमाने की कोशिश में है.
बीजेपी की कोशिश तीन तलाक के मसले पर विपक्षी दलों को एक्सपोज करने की भी है, जिसके उनकी रणनीति और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की कोशिश सामने आ जाए.
कांग्रेस देगी सरकार का साथ!
बीजेपी की इस रणनीति की काट के तौर पर कांग्रेस भी अपनी तैयारी कर रही है, लिहाजा वो खुलकर बिल का विरोध नहीं कर रही है और न ही इस मसले पर सरकार के साथ खुलकर दिख रही है. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दिया है. कांग्रेस ने उस पुराने चोले को उतारकर फेंक दिया है जिसके चलते अबतक मुस्लिम तुष्टीकरण के तमगे से वो निकल नहीं पा रही थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद एंटनी कमिटी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र भी किया गया था. लगता है की राहुल गांधी की टीम अब उस पर अमल करने लगी है.
गुजरात विधानसभा चुनाव में न मुसलमानों का जिक्र, न ही किसी मस्जिद और दरगाह पर जाने की कोशिश, राहुल तो बस मंदिर-मंदिर ही घूमते नजर आए. यहां तक कि अपने जनेऊधारी हिंदू होने का प्रमाण तक दे दिया. इसका फायदा भी हुआ, कांग्रेस काफी हद तक बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड के असर को कम करने में सफल भी रही.
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अब अध्यक्ष बन जाने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस छवि सुधारने की कोशिश कर रही है. उसे लगता है कि तीन तलाक के मसले पर अगर वो खुलकर बिल का विरोध कर देती है तो फिर से उस पर मुसलमानों का हितैषी होने का तमगा लग जाएगा जिससे आजकल वो बचना चाह रही है.
दूसरी तरफ, कांग्रेस को लग रहा है कि अगर इसी सत्र में बिल पास हो जाता है तो फिर इसका पूरा श्रेय सरकार को ही मिल जाएगा, लिहाजा अब कांग्रेस की तरफ से इस बिल पर जल्दबाजी करने के बजाए इसे स्टैंडिंग कमिटी में भेजने की मांग की जा रही है. कांग्रेस कुछ संसोधन भी चाह रही है जिससे बिल में अपनी कुछ बात मनवाकर इसका श्रेय भी ले सके. सरकार से बिल में जरूरी बदलाव करा कर कांग्रेस इस मुद्दे पर मान सकती है.
छोटे दलों का कैसा होगा रुख?
हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कई दूसरे क्षेत्रीय दल भी इस मसले पर संशोधन चाहते हैं. लोकसभा में भी इनकी तरफ से कुछ ऐसी ही मांग की गई थी जिसे खारिज कर दिया गया. एसपी, बीएसपी, आरजेडी, एआईएडीएमके और बीजेडी की तरफ से इस बिल पर विरोध किया गया है. इन दलों की तरफ से कुछ संशोधन की मांग भी की जा रही है जिसे लोकसभा ने नामंजूर कर दिया है.
इन क्षेत्रीय दलों की तरफ से तर्क यही दिया जा रहा है कि इतने महत्वपूर्ण बिल पर आम सहमति क्यों नहीं बनाई जा रही है. इन सभी दलों की राज्यसभा के भीतर संख्या अच्छी है. ऐसे में अगर सरकार को कांग्रेस का साथ नहीं मिला तो फिर इस बिल पर राज्यसभा में आगे बढ़ना मुश्किल हो सकता है.
क्यों हो रही है इतनी राजनीति?
दरअसल, अलग-अलग राज्यों में 450 से ज्यादा मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटें हैं. इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों की नजर है. क्षेत्रीय दलों की राजनीति जाति आधारित ही राजनीति के तौर पर सिमट कर रह गई है. ऐसे में जाति के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश उनकी तरफ से होती रहती है. टीएमसी, आरजेडी, एसपी और बीएसपी जैसी कई पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने में लगातार लगी रहती हैं और उन्हें उनका साथ मिलता भी रहा है. इस वक्त पश्चिम बंगाल, यूपी, बिहार, केरल, असम, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव काफी ज्यादा है. पश्चिम बंगाल में तो 27 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि यूपी में लगभग 19 फीसदी और बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.
क्षेत्रीय दलों को लग रहा है कि तीन तलाक पर सरकार के बिल का विरोध नहीं किया गया तो फिर अपने कोर वोटर की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है.
दूसरी तरफ, बीजेपी की नजर लोकसभा चुनाव पर है. लोकसभा की 543 सीटों में से करीब 200 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाता अच्छा प्रभाव रखते हैं. बीजेपी को लगता है कि अगर तीन तलाक बिल पास हो गया तो इन इलाकों में लोकसभा चुनाव के वक्त मुस्लिम महिला मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है.
फिलहाल लोकसभा से बिल पारित होने के बाद बीजेपी अब इसे राज्यसभा में पास कराने की तैयारी है. सरकार नए साल में इस बिल को राज्यसभा से पास कराने में सफल हो गई तो इसे बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश करेगी, लेकिन, सरकार के लिए लोकसभा की तरह राज्यसभा की राह आसान नहीं है.
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