देश और बिहार की सियासत में भले ही लोकतांत्रिक जनता दल पहचान के संकट से जूझ रही हो. पर लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव अपनी बदजुबानी से सियासी घटनाक्रम के केंद्र में बने हुए हैं. मौजूदा राजस्थान चुनाव में शरद यादव अपने बयान को लेकर एकबार फिर अखबारों की सुर्खियों में छाए हुए हैं.
अलवर में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मुंडावर सीट पर कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी के समर्थन में रैली को संबोधित करते हुए शरद यादव ने वसुंधरा पर व्यक्तिगत तंज कर दिया. शरद यादव ने लोगों से कहा, 'वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई हैं. बहुत मोटी हो गई हैं.'
हालांकि शरद यादव के लिए ये कोई नई बात नहीं है. वो कभी हिम्मत का वास्ता देकर अपने विपक्षी नेताओं को अमर्यादित शब्दों से ललकारते रहे हैं, तो कभी सदन में भी अश्लील मुहावरों का उद्धरण देते रहे हैं.
शरद यादव के बयानों को स्वाभाविक करार नहीं दिया जा सकता. दरअसल बयानों के पीछे गहरे सियासी निहितार्थ छिपे होते हैं. सियासी दिग्गजों के अनुसार शरद यादव के अमर्यादित बयानों के पीछे साफ मंशा होती है कि सियासत के केंद्र में बने रहें. मौजूदा बयान भी इसी मंशा से प्रेरित है.
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वो चाहते थे कि बीजेपी लड़ाई छोड़कर उनसे लड़े और उनके आरोपों का जवाब देने को मजबूर हो. दोनों ही स्थिति में वो सियासी फायदा देख रहे हैं. वो अपनी वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ नहीं हैं. वो जानते हैं कि टीआरपी बरकरार रखने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा. वैसे भी जब जेडीयू में भी थे तो राष्ट्रीय अध्यक्ष सिर्फ प्रतीक के लिए थे और शक्ति का केंद्रीकरण नीतीश कुमार में ही था. आजकल तो अकेला चना की दशा में हैं, फिर भाड़ फोड़ने की जुगत में कुछ जुगाली तो करनी ही है.
शरद यादव कभी जमीनी नेता के तौर पर नहीं जाने जाते हैं. हाल-फिलहाल चुनावी जमीन तैयार करना उनके लिए मुमकिन भी नहीं. इसलिए खुद को कद्दावर नेता के तौर पर बनाए रखने को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ की दशा में हैं. वसुंधरा राजे पर उनके हालिया बयान को भी देखें तो साफ है कि ये इस अंदाज से दिए गए कि एक बयान से कई हित एक साथ सधें. बीते दिनों जब वे जेडीयू में थे तब भी वह ऐसे बयान देते थे, जिससे बिहार बीजेपी और जेडीयू नेताओं में मतभेद और संदेह का दायरा बढ़ जाता था.
गौर करें तो साफ होगा कि शरद यादव सियासत के हाशिए पर रहते हुए भी बयान से चर्चा में आ गए हैं. शरद यादव को जानने वाले जानते हैं कि वो मंझे हुए रणनीतिकार हैं और एक तीर से कई निशाने साधते हैं. साथ ही मुद्दा कोई भी हो सियासी केंद्र में बने रहते हैं. इसी क्रम में कभी कभी तो वह मर्यादित शब्दों के दायरे के पार चले जाते हैं. इसलिए कभी वो अपने दल के ही तत्कालीन नेता नीतीश कुमार के गठबंधन में शामिल होने पर सवाल उठाते हैं तो कभी जेडीयू में रहते हुए भी लालू यादव के सांगठनिक नेतृत्व की तारीफ करते हैं.
खुद की पार्टी के हित से जुड़े मामले में भी पार्टी लाइन से हटकर बयान देने से पीछे नहीं हटते. ऐसा भी नहीं कि किसी महिला नेत्री पर उन्होंने पहली बार बयान दिया है. यूपी विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने मायावती पर भी विवादित बयान दिया था. तब उन्होंने कहा था कि 'मायावती को लोगों से महक आती है, इसीलिए अकेले रहती हैं'.
जानकार बताते हैं कि ऐसे बयान उनके स्वभाव में हैं.
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ऐसा नहीं कि शरद यादव सिर्फ सियासी मुद्दों पर ही विवादित बयान देते हैं. सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर भी शरद यादव विवादित बयान देने से पीछे नहीं हटते. पिछले दिनों कांवड़ियों को लेकर उनके बयान पर बड़ा विवाद हुआ था. यादव ने कहा था कि कांवड़िए बेरोजगारी की निशानी हैं. जिनके पास रोजगार नहीं वे कांवड़ियां बन जाते हैं. राम जन्मभूमि के सवाल पर उन्होंने यहां तक कह डाला था कि राम जन्मभूमि में उनकी कोई श्रद्धा नहीं है. वह जिंदा आदमी को पूजते हैं. हालांकि वसुंधरा राजे के मामले में शरद यादव ने अपनी सफाई दे दी है. उन्होंने कहा कि मैंने मजाक के तौर पर टिप्पणी की, वसुंधरा की भावना को आहत करने की मेरी मंशा नहीं थी.
लेकिन सियासी दिग्गजों का कहना है कि थुक्काफजीहत चाहे जितनी भी हो, शरद यादव सियासत के केंद्र में बने रहने के लिए बयानबाजी से पीछे नहीं हटने वाले!
सियासत में बने रहने के लिए शरद यादव ने फिर बिगाड़े अपने बोल
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