सोमवार की शाम साढ़े 7 से पौने 8 बजे के बीच जम्मू-कश्मीर के बीजेपी नेताओं और विधायकों से दिल्ली आने को कहा गया. उन्हें कहा गया कि वो सुबह की फ्लाइट लेकर मंगलवार को दिल्ली आ जाएं. पार्टी हाईकमान के साथ मीटिंग है. जम्मू-कश्मीर में बैठे इन नेताओं को पता नहीं था कि क्या पक रहा है. उन्हें सिर्फ यह कहा गया कि 2019 चुनाव की रणनीति पर चर्चा करनी है.
इससे भी ज्यादा हैरानी की बात थी जो एक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में छापी. इसके मुताबिक कश्मीर मामले में 2 सबसे अहम लोगों को भी ज्यादा कुछ पता नहीं था. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्र से जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर सिंह को भी नहीं पता था कि बीजेपी पीडीपी से गठबंधन तोड़ने का फैसला लेने वाली है.
अजित डोवाल-अमित शाह की बैठक के दौरान समर्थन वापसी पर लगी मुहर?
क्या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोवाल और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली में सुबह हुई मीटिंग के दौरान मामले पर मुहर लगाई? ज्यादातर लोगों को लगा था कि शाह और डोवाल के साथ मीटिंग अमरनाथ यात्रा की तैयारियों के मद्देनजर होगी. लेकिन फ़र्स्टपोस्ट के राजनीतिक संपादक संजय सिंह के मुताबिक यह साफ हो गया है कि नतीजे पर पहुंचने से पहले अमित शाह चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर के हालात पर फ़र्स्ट हैंड जानकारी हासिल करें.
दिनेश्वर शर्मा श्रीनगर में थे. मंगलवार सुबह उन्होंने महबूबा मुफ्ती से कश्मीर के हालात पर लंबी चर्चा की थी. दोपहर में जब उनसे बीजेपी के फैसले पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्हें झटका लगा. उन्होंने श्रीनगर में कहा, 'मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है. मुझे टीवी से पता चला है. इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.’
डोवाल से बैठक के बाद बीजेपी अध्यक्ष शाह ने पार्टी के राज्य स्तरीय नेताओं से बात की और उन्हें अपना फैसला सुनाया. कोलकाता के अखबार टेलीग्राफ के मुताबिक फैसले के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह अपने घर रवाना हो गए. अखबार में दो अधिकारियों के हवाले से लिखा गया है कि ऐसा लगा, जैसै राजनाथ को फैसले की जानकारी नहीं थी.
इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'अगर यह सच है कि गृह मंत्री को बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूटने का पता नहीं था, तो फिर मुझे या मेरे साथियों को इसके बारे में पता न होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.’
If this story is true & @HMOIndia didn’t know about the impending demise of the BJPDP alliance then the fact that it caught me & my colleagues by surprise is really no big deal. https://t.co/70d2EH1qP9
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 20, 2018
गृह मंत्री राजनाथ सिंह पर पीडीपी को था सबसे ज्यादा भरोसा
माना जाता रहा है कि बीजेपी सरकार में पीडीपी अगर किसी नेता पर सबसे ज्यादा भरोसा करती थी, तो वो राजनाथ सिंह थे. वो पीडीपी नेताओं की बात सुनते थे. महीने के पहले सप्ताह में श्रीनगर के एसके इंडोर स्टेडियम में करीब 5 हजार खिलाड़ियों ने उनका जोरदार स्वागत किया था. वहां राजनाथ ने कहा था, 'मुझे राज्य में नई सुबह होती दिखाई दे रही है.’
वो ही थे, जिन्होंने घाटी में युद्ध विराम की घोषणा की थी. वह लगातार राज्य के मामले से जुड़े हुए थे. मुख्य अधिकारियों के साथ मीटिंग कर के सीजफायर को आगे ले जाने में राजनाथ सिंह का रोल था. यह अलग बात है कि रमजान के आखिरी दिनों में हिंसा की घटनाएं और फिर पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या ने सब बदल दिया.
अपने आधिकारिक निवास स्थान पर राजनाथ सिंह ने गृह सचिव राजीव गौबा, आईबी चीफ राजीव जैन और गृह मंत्रालय में स्पेशल सेक्रेटरी रीना मित्रा से जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर बैठक की थी. टेलीग्राफ के मुताबिक इसमें अजित डोवाल भी मौजूद थे.
पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘राजनाथ कश्मीर के हालात को लेकर चिंतित थे. वो व्यक्तिगत तौर पर पीडीपी नेताओं से संपर्क बनाए हुए थे, जिससे महबूबा सरकार बगैर किसी व्यवधान के चलती रहे. वो अकेले केंद्रीय मंत्री थे, जिन्होंने कश्मीर में आक्रामकता के बजाय कंपैशन यानी सहानुभूति की राजनीति की जरूरत को बढ़ावा दिया. इसी के नतीजे में सीजफायर की शुरुआत हुई थी.’
अब राजनीतिक आकाओं के तस्वीर से बाहर हो जाने के बाद राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एस पी वैद्य ने भी इशारा किया है कि घाटी में जवाबी हमले की रणनीति में पीडीपी आड़े आ रही थी. उन्होंने कहा, ‘ऑपरेशन जारी रहेंगे और अब काम करना ज्यादा आसान होगा.’
कश्मीर समस्या से निपटने के लिए अलग तरीका अख्तियार करना चाहते थे
केंद्रीय गृह मंत्री भी चाहते थे कि घाटी को आतंकियों से मुक्त कराया जाए. लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए वो अलग तरीका अख्तियार करना चाहते थे. वो बहुत ज्यादा सख्ती नहीं चाहते थे. पीडीपी नेता ने कहा, 'अगर उनकी सरकार ने उन्हें ही अंधेरे में रखा, तो इससे समझा जा सकता है कि पार्टी किस तरह की राजनीति चाहती है. यह वो राजनीति है, जो देश में जहर फैलाएगी, जहां चर्चा के लिए कोई जगह नहीं बचेगी.'
राज्यपाल शासन के तहत उम्मीद की जा रही है कि सेना को खुली छूट मिलेगी. इससे सड़कों पर खून-खराबा बढ़ने की राह खुलेगी. पीडीपी नेता रफी मीर कहते हैं, 'मैंने अभी अखबार में राजनाथ जी के बारे में रिपोर्ट देखी. इससे महबूबा जी का ही पॉइंट साबित होता है. वो कहती रही हैं कि नई दिल्ली कश्मीर पर फौलादी हाथ के साथ राज करना चाहती है. यहां पर शांति और चर्चा के साथ मामला सुलझाने वाली आवाजों के लिए कोई जगह नहीं है.'
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