कुछ वक्त पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस के संस्थापक के. चंद्रशेखर राव ने समय से पूर्व विधानसभा भंग की और चुनाव में जाने का फैसला किया. केसीआर ने जिस दिन विधानसभा भंग की उन्होंने मीडिया को बताया कि पूरी पार्टी और उनके सभी विधायक इस फैसले के साथ हैं. उन्होंने कहा कि किसी ने भी उनके इस फैसले का विरोध नहीं किया.
चुनाव परिणाम आने में मात्र 6 सप्ताह बाकी हैं और राज्य में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. राज्य में चुनाव अब टीआरएस और अन्य के बीच द्वी-ध्रुवीय लड़ाई में बदल गया है.
आखिर पिछले कुछ दिनों में ऐसा क्या हुआ कि राज्य के पूरे समीकरण बदल गए? राजनीतिक पंडितों के बीच इसे लेकर कई सिद्धान्त हैं. 2014 में तेलंगाना राज्य की लहर में केसीआर 63 सीटों और मात्र 38% वोट शेयर के साथ सत्ता में आ गए. उस वक्त आधा दर्जन पार्टियां चुनाव मैदान में थी जिसके कारण एंटी-टीआरएस वोट बिखर गए. 2014 में कांग्रेस को 25% वोट मिले. 15% वोट के साथ टीडीपी को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ. दोनों पार्टियों के वोट शेयर को मिला दें तो यह 40 प्रतिशत होता है जो कि टीआरएस के वोटशेयर से अधिक है.
पिछले चार सालों में केसीआर ने राज्य में छोटी विपक्षी पार्टियों जैसे कि टीडीपी, वायएसआरसीपी को पूरी तरह खत्म कर दिया, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और वह राज्य में मजबूत हो गई. टीआरएस को हराने के लिए टीडीपी और कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया है जिसने केसीआर की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
कांग्रेस, टीडीपी, लेफ्ट और तेलंगाना एक्शन कमेटी पड़ सकती है कैसीआर पर भारी
अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार दिलीप रेड्डी के मुताबिक अगर कांग्रेस, टीडीपी, लेफ्ट और तेलंगाना एक्शन कमेटी अच्छे से लड़ती हैं तो वे केसीआर को हरा सकते हैं. रेड्डी ने कहा कि एकत्र विपक्ष आसानी से बहुमत के आंकड़े को पार कर सकता है.
केसीआर के लिए दिक्कत इतनी ही नहीं .है राज्य आंदोलन में उनका साथ देने वाले उनके कई पुराने साथी भी उनसे नाराज हैं, जिन्हें लगता है कि सत्ता में आने के बाद केसीआर ने लोगों की भावनाओं के विपरीत काम किया.
हालांकि ऐसा नहीं है कि केसीआर इस सबसे बेखबर हैं. केसीआर के एक करीबी ने बताया कि 60-70 सीटों पर केसीआर अतिरिक्त जोर दे रहे हैं और वे इन्हें किसी भी कीमत पर जीतना चाहते हैं. तेलंगाना की 119 सीट वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 61 है. टीआरएस इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के मतभेद और वोटर्स से भावनात्मक अपील करके अपने लिए काम आसान बनाने की कोशिश कर रहे है.
टीआरएस के कार्यकर्ताओं का मानना है कि केसीआर सरकार की कल्याणकारी योजनाएं और स्थिर सरकार लोगों को उन्हें एक और मौका देने के लिए प्रेरित करेगी. बदलते समीकरण से टीआरएस के कार्यकर्ताओं में चिंता जरूर है लेकिन फिर भी उन्हें विश्वास है कि केसीआर उन्हें इससे बाहर निकाल लेंगे.
(न्यूज 18 के लिए डीपी सतिश की रिपोर्ट)
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