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तेलंगाना की राजनीति में आप ओवैसी से प्रेम करें या नफरत...इग्नोर नहीं कर सकते

तेलंगाना चुनाव में हाई पिच कैंपेन चल रहा है. प्रदेश में राहुल गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना दमखम लगा रहे हैं.

Updated On: Dec 04, 2018 07:31 AM IST

Syed Mojiz Imam
स्वतंत्र पत्रकार

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तेलंगाना की राजनीति में आप ओवैसी से प्रेम करें या नफरत...इग्नोर नहीं कर सकते

तेलंगाना चुनाव में हाई पिच कैंपेन चल रहा है. प्रदेश में राहुल गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना दमखम लगा रहे हैं. राहुल गांधी ने सोमवार को तेलंगाना में प्रचार के दौरान टीआरएस को बीजेपी को बी टीम और एआईएमआईएम को सी टीम होने का आरोप लगाया है. राहुल गांधी ने कहा है कि टीआरएस मोदी के लिए तेलंगाना रबर स्टांप है. जबकि असदुद्दीन ओवैसी का काम है कि वो बीजेपी टीआरएस के खिलाफ वोट को बांटे, बल्कि बीजेपी टीआरएस और ओवैसी एक ही है.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस के निशाने पर ओवैसी हैं. बीजेपी भी ओवैसी के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है. यूपी के फायर ब्रांड नेता और सीएम आदित्यनाथ योगी भी ओवैसी के खिलाफ जमकर बोले हैं. योगी ने कहा कि बीजेपी की सरकार बनने पर ओवैसी को भी निजाम की तरह हैदराबाद छोड़ना पड़ेगा. जिसको लेकर ओवैसी ने पलटवार करते हुए कहा कि योगी को इतिहास का पाठ ठीक से पढ़ना चाहिए. ओवैसी ने योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर की फिक्र करने की सलाह दी है. हालांकि सवाल ये है कि इस चुनाव में ओवैसी की अहमियत क्यों बढ़ गई है?

ओवैसी की अहमियत

हैदराबाद बेस्ड एमआईएमआईएम की ताकत कभी शहर से बाहर नहीं रही है. हालांकि हाल के कुछ साल में पार्टी ने अपना विस्तार किया है. महाराष्ट्र में पार्टी ने अपनी ताकत भी बढ़ाई है. यूपी में भी पार्टी ने चुनाव में हिस्सा लिया लेकिन कामयाबी नहीं मिली है. ओवैसी खुद बीजेपी के खिलाफ निर्भीक आवाज बने हैं.

असदुद्दीन ओवैसी की फेसबुक वॉल से साभार

असदुद्दीन ओवैसी की फेसबुक वॉल से साभार

संसद के अंदर और बाहर भी बीजेपी के खिलाफ सबसे तीखी आवाज असदुद्दीन ओवैसी की है. हालांकि ओवैसी के इस तीखेपन से मुस्लिम नौजवानों में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है. लेकिन इससे बीजेपी को भी फायदा मिलता है.

बीजेपी ओवैसी को एंटी हिंदू साबित करने में लगी रहती है. जिससे बीजेपी को फायदा मिलता है. इसलिए बीजेपी ऐसी फिराक में रहती है कि ओवैसी पर हमला करने का मौका मिल जाए, जिससे बीजेपी को अपने कोर वोट को एकजुट करने का बहाना मिल जाए, इसलिए यूपी के मुख्यमंत्री ने जानबूझकर ओवैसी को निशाना बनाया है.

बीजेपी के मददगार ओवैसी ?

राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि पर्दे के पीछे असदुद्दीन औवैसी बीजेपी की मदद कर रहे हैं. बीजेपी की सी टीम होने का आरोप लगाया है. कांग्रेस के मुस्लिम नेता भी राहुल गांधी की बात पर इत्तेफाक रखते हैं. कांग्रेस के नेता शकीलुज्जमा अंसारी का कहना है कि ओवैसी का हर एक्शन बीजेपी की सहायता करने के लिए है, वो वही बात बोलते हैं जिसमें बीजेपी को रिवर्स पोलराइजेशन करने में आसानी होती है.

बीजेपी से लड़ने के लिए उनके पास राजनीतिक ताकत नहीं है. बीजेपी के खिलाफ सिर्फ कांग्रेस लड़ सकती है. जाहिर है कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से कांग्रेस ही मुकाबला कर सकती है.

तेलंगाना के चुनाव राष्ट्रीय नहीं है. बीजेपी की ताकत भी राज्य में ज्यादा नहीं है. राज्य में टीआरएस का गठबंधन कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के सामने है. चुनाव से पहले लग रहा था कि टीआरएस को वॉकओवर मिलने जा रहा है लेकिन टीआरएस की बीजेपी से बढ़ती नजदीकी ने कांग्रेस को सेंटरस्टेज पर कर दिया है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव

तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव

कांग्रेस ने एक मजबूत गठबंधन भी बना लिया जिससे टीआरएस की दिक्कत बढ़ी है. केसीआर ने फौरन राजनीतिक पैंतरा बदला और एमआईएम से गठबंधन कर लिया है. जिससे छिटक रहा मुस्लिम वोट फिर से टीआरएस के साथ आ सकता है. कांग्रेस को यही डर है. इसलिए ओवैसी को बीजेपी का साथी साबित किया जा रहा है. हालांकि ओवैसी इससे एकदम बेबुनियाद बताते है.

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ओवैसी कहते है कि तेलंगाना में बीजेपी का वजूद नहीं है. 1998 से 2012 तक कांग्रेस के साथ थे लेकिन कांग्रेस मोदी को फॉलो कर रही है तो अल्पसंख्यक के पास क्या रास्ता है? जहां तक 2019 की बात है रीजनल पार्टियां ही देश का राजनीतिक समीकरण तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी. औवैसी का आरोप है कि बीजेपी कांग्रेस में कोई फर्क नहीं बचा है.

वोटकटवा ओवैसी?

कांग्रेस का आरोप है कि ओवैसी की पार्टी वोट कटवा है. इनका मुख्य काम है कि बीजेपी के खिलाफ वोट में हिस्सेदारी बढ़ जाए. इसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. कांग्रेस ने ओवैसी की काट के लिए के हैदराबाद के हीरो पूर्व क्रिकेटर, पूर्व सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन को प्रदेश का कार्यवाहक प्रेसिडेंट बनाया है. हालांकि अजहर ओवैसी के मुकाबले राजनीतिक लाइटवेट है.

अजहर ने लोकसभा का दो चुनाव लड़ा है, एक यूपी के मुरादाबाद और दूसरा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से. राज्य की राजनीति में अजहर की हैसियत ज्यादा नहीं है. मजलिस पुरानी पार्टी है. ओवैसी के पिता के जमाने से पार्टी की पकड़ हैदराबाद में है. ये अजेय किला है. अजहर इसको भेद पाएंगे कहना मुश्किल है. लेकिन लड़ाई हैदराबाद तक नहीं सिमटी है.

अल्पसंख्यक वोट का सवाल

पूरे प्रदेश में तकरीबन 13 फीसदी मुस्लिम वोट हैं. 29 सीट पर मुस्लिम निर्णायक हैं. इसके लिए लड़ाई तेज है. तेलंगाना की सत्ताधारी टीआरएस ने अल्पसंख्यकों की कई योजनाएं शुरू की है. केसीआर ने 12 फीसदी रिजर्वेशन देने का ऐलान किया है. टीआरएस मजबूत विकेट पर है. लेकिन बीजेपी के साथ टीआरएस की बढ़ी दोस्ती से माहौल बदला है. जो अल्पसंख्यक एकमुश्त टीआरएस के साथ थे वो अब टीआरएस को शक की नजर से देख रहे हैं. कांग्रेस इस संदेह को वोट में तब्दील करने की जुगत भिड़ा रही है.

टीआरएस-ओवैसी-कांग्रेस के रिश्ते

तेलंगाना देश का नवीनतम राज्य है. 2014 के पिछले चुनाव में टीआरएस ने एकतरफा जीत दर्ज की है. राज्य बनाने का श्रेय टीआरएस को मिला था. कांग्रेस की नाराजगी की वजह यही है. राज्य बनाने के लिए कांग्रेस ने दांव चला था कि इससे प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत बढ़ेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ कांग्रेस राज्य से साफ हो गई. सोनिया गांधी ने भी तेलंगाना की सभा में अपना दर्द बंया किया कि राज्य बनाने में कांग्रेस ने बड़ी कीमत अदा की है.

owaisi

जहां तक औवैसी का सवाल है कांग्रेस के साथ आंख मिचौली का खेल चलता रहा है.कभी कांग्रेस के साथ कभी विरोध में नज़र आते है. हालांकि औवैसी बीजेपी के साथ नहीं जा सकते है.राजनीतिक विचारधारा भी अलग है. दूसरे ओवैसी की पूरी राजनीति मुस्लिम वोट पर टिकी है.लेकिन ये सही है कि ओवैसी की तीखी भाषा का लाभ बीजेपी को मिलता है.

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बहरहाल अंग्रेजी में कहा जाता है- लव हिम, हेट हिम बट यू कांट इग्नोर हिम. असदुद्दीन ओवैसी को इग्नोर नहीं कर सकते हैं. राजनीति में पकड़ मजबूत है. लहजा भी अच्छा है. इंग्लैंड से बैरिस्टर होने की वजह से कानूनी समझ भी है. अंग्रेजी और हिंदी दोनों में धारा प्रवाह बोलते हैं. पार्टी के अकेले सांसद होने के बावजूद अपनी बात सदन में मजबूती से रखते है.

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