जैसे-जैसे तेलंगाना में वोटिंग का दिन यानी शुक्रवार नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे वहां योगी आदित्यनाथ और ओवैसी भाइयों के बीच चल रही वाक जुगलबंदी और तेज होती जा रही है और लगातार सुर्खियां भी बन रही हैं. इस वाकयुद्ध को देखना बहुत ही दिलचस्प भी है, क्योंकि जनता की आखों के सामने जो तीखी बहस चल रही है, उसके पीछे बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसे आसानी से देखा नहीं जा सकता है.
दोनों तरफ से जिस तरह से लगातार कड़वे बोल और गाली-गलौज का आदान-प्रदान किया जा रहा है, उसने जानकारों और विशेषज्ञों को भी सकते में डाल दिया है. ये लोग चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं की गिरती राजनीतिक भाषा को लेकर न सिर्फ चिंता जता रहे हैं बल्कि इसे देखकर क्षुब्द भी हैं.
बीजेपी और एआईएमआईएम, दोनों ही पार्टियां एक दूसरे की कट्टर विरोधी हैं, लेकिन इसके बावजूद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ओवैसी भाइयों के बीच ठंडा ही सही एक समीकरण तो बनता दिखता है, जो बड़ी चालाकी से दोनों की मदद कर रहा है.
खासकर तब, जब एक ऐसे राज्य में जहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा जो कि लगभग 3.12 करोड़ है, उसमें 12.5% आबादी मुसलमानों का है. तेलंगाना में 119 असेंबली सीटों से 29 पर मुसलमानों का एक अहम रोल है, क्योंकि इन सभी सीटों पर मुसलमान मतदाता तकरीबन 15 प्रतिशत के आसपास है. जबकि, अन्य 30 विधानसभा सीटों पर भी उनकी इतनी अच्छी मौजूदगी है कि उसके बलबूते वे चुनाव के नतीजों में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें तो यहां का मुसलमान मतदाता या तो नतीजों पर निर्णायक असर डाल सकता है या फिर तेलंगाना की आधे से ज्यादा सीटों पर किंगमेकर की भूमिका भी निभा सकता है. जिसका नतीजा ये होगा कि सभी मुख्य राजनीतिक पार्टियां जिनमें टीआरएस, कांग्रेस और एआईएमआईएम शामिल हैं, वो इन मुसलमान मतदाताओं का वोट पाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर देंगी.
साल 2004 के आम-चुनावों में बीजेपी को यहां सिर्फ पांच सीटें मिल पाई थीं, और उसे उम्मीद है कि इस बार के चुनावों में उसे कम से कम 15 सीटें तो मिल ही जांएगी. ऐसा होने पर उसका राज्य के पॉवर स्ट्रक्चर (ताकत के तराजू) में दखल हो जाएगा और अगर चुनाव का नतीजा किसी एक पार्टी के पक्ष में न हो और, अगर वहां त्रिशंकु विधानसभा बनने के आसार होते हैं, तो ऐसे में बीजेपी अपने बढ़े हुए नंबरों के साथ वहां फायदा उठा पाने की स्थिति में पहुंच जाएगी.
संयोगवश, बीजेपी का तेलंगाना में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी के साथ साल 2014 में चुनावपूर्व समझौता हुआ था, जबकि इस बार उनके साथ सिर्फ तेलंगाना युवा सेना जैसी पार्टी है जिसका राज्य में कोई खास वजूद नहीं है. कुछ ऐसा ही बीजेपी के एक वरिष्ठ संगठन कार्यकर्ता ने अंग्रेजी वेबसाइट लाइवमिंट से कहा-, ‘सच तो ये है कि पार्टी राज्य में कम से कम 12 से 15 सीटें जीतने की कोशिश में है. हम यहां तेलंगाना राष्ट्रसमिति (टीआरएस) और कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ एक जोरदार लड़ाई की उम्मीद कर रहे हैं.’
हालांकि, बीजेपी तेलंगाना चुनावों को लेकर बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी नहीं है, सिवाय इसके कि वो कांग्रेस के सीटों की बराबरी कर सके, या उसे कम कर सके क्योंकि कांग्रेस के साथ वो राष्ट्रीय स्तर पर वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है.
बीजेपी का राज्य में टीआरएस के साथ किसी तरह का कोई समझौता भी नहीं हुआ है, चाहे वो जमीन पर हो या चाहे वो किसी अन्य तरीके से, लेकिन वो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को एक मजबूत और ताकतवर क्षेत्रीय नेता के तौर पर जरूर देखती है, जिसके साथ वो चुनाव के बाद भी किसी तरह का राजनीतिक समझौता कर सकती है. केसीआर के पीएम मोदी के साथ भी अच्छे संबंध हैं और अगर मीडिया में छपी रिपोर्टों पर विश्वास किया जाए तो मुमकिन है कि केसीआर 2019 चुनाव के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन में जा सकते हैं. जबकि, इसके विपरीत केसीआर ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देश का ‘सबसे बड़ा मूर्ख’, भी कह दिया था.
बीजेपी का मिशन इस समय राज्य में कांग्रेस की सीटों को काटना और कम करना है, और ऐसा करने में उसे एआईएमआईएम के रूप में एक बना-बनाया हथियार मिल गया है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी खुल्लम-खुल्ला (धार्मिक) पहचान की राजनीति करती है और वो खुलकर बगैर किसी हिचक के मुसलमानों के वोट को साधने की बात करती है.
हालांकि, एआईएमआईएम का राजनीतिक असर काफी हद तक पुराने हैदराबाद शहर तक ही सीमित है, जहां तेलंगाना राज्य की तकरीबन 43% मुसलमान आबादी रहती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से ओवैसी की पार्टी की ये लगातार कोशिश रही है कि वो एआईएमआईएम का प्रभाव राज्य के अन्य हिस्सों तक लेकर जाएं.
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एआईएमआईएम का टीआरएस के साथ एक दोस्ताना रिश्ता रहा है, और वो राज्य में कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ करना चाहती है, ताकि उसके सीटों की संख्या बढ़ सके. साल 2014 में ओवैसी की पार्टी को कुल 07 सीटें मिलीं थीं, इसके अलावा कुछ अन्य सीटों पर भी उनका प्रदर्शन अच्छा रहा था-जिससे कांग्रेस की योजना पर पानी फिर गया था.
जैसा कि लाइवमिंट की रिपोर्ट में निजामाबाद की शहरी सीट के बारे में लिखते हुए कहा गया है कि साल 2014 में एआईएमआईएम के प्रत्याशी को यहां से 31,648 वोट मिले थे, और टीआरएस को 40,947 और कांग्रेस जो तीसरे नंबर पर रही, उसे सिर्फ 25,400 वोट मिले थे. ये मुमकिन है कि अगर एआईएमआईएम बीच में नहीं आती तो शायद ये सीट कांग्रेस के हिस्से में चली जाती.
इसके विपरीत ये भी हो सकता है कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों का माहौल पहले से ध्रुवीकृत हो चुका है, वहां से बीजेपी के हिस्से में कुछ और वोट गिर जाएंगे, जबकि ये वो इलाके होंगे जो पहले से बीजेपी के निशाने पर हैं. ये स्वार्थ से भरा हुआ एक अजीबो-ग़रीब हालात होगा, जहां सबसे ज़्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी का हो सकता है.
राहुल गांधी की पार्टी ने राज्य के लिए जो घोषणापत्र जारी किया है, जैसा कि न्यूज़-18 की खबर में बताया गया है, उसके मुताबिक उस घोषणापत्र में ऐसी सैंकड़ों योजनाओं का जिक्र किया गया है जो खासकर अल्पसंख्यक समुदाय को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसमें मुसलमान प्रमुख हैं. ‘मेनिफेस्टो में उर्दू को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाए जाने का भी आश्वासन दिया गया है, और ये भरोसा दिया गया है कि पार्टी इस बात का पूरा ध्यान देगी कि राज्य के सभी सरकारी कामकाज और आदेश उर्दू भाषा में भी दिए जाए, वो इसे सुनिश्चित कराएगी.’
इसलिए हम सबको यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओवैसी के खिलाफ की जा रही बयानबाजी को इसी परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने की जरूरत है, जो उन्होंने तेलंगाना के विकाराबाद जिले के तांदुर में एक चुनावी रैली में दिया है. योगी आदित्यनाथ ने कहा है, ‘अगर बीजेपी राज्य में सत्ता में आती हो तो असदुद्दीन ओवैसी को यहां से ठीक वैसे भागना पड़ेगा जैसे निजाम को हैदराबाद छोड़कर भागना पड़ा था.’
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जैसा कि कहा जाता है कि एक से भले दो, ठीक वैसे ही दोनों भाई बिल्कुल सही लड़ाई में एक साथ कूदे हुए हैं. एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने योगी आदित्यनाथ से कहा है कि वे पहले अपनी इतिहास की जानकारी को दुरुस्त करें. उन्होंने आगे कहा, ‘ये मेरा धार्मिक विश्वास है कि जब पैगंबर आदम जब जन्नत से पृथ्वी पर आए तो वो भारत आए थे. इसलिए, भारत मेरे पिता का मुल्क है और कोई भी मुझे यहां से भागने को मजबूर नहीं कर सकता है.’
उनके भाई अकबरुद्दीन तो एक कदम और आगे चले गए और योगी आदित्यनाथ की वेशभूषा और उनके चेहरे की बनावट पर ही टिप्पणी कर डाली. उन्होंने कहा – ‘ये लो एक और गया...वो किस तरह के कपड़े पहनता है....वो मुख़्यमंत्री सिर्फ़ अपनी किस्मत के कारण बन गया है और बातें एक निजाम की तरह कर रहा है, वो ओवैसी को भगाने की बात कर रहा है. ‘आखिर, तुम हो कौन? तुम्हारी हैसियत क्या है ? तुम्हारी तरह छप्पन (2014 चुनावों के दौरान पीएम मोदी द्वारा दिया गए भाषण का जिक्र) भी आया था और आकर चला गया. ओवैसी को छोड़ो...ओवैसियों की आनेवाली एक हजार पुश्तें भी इस देश में रहेंगी और आपसे अपने हक की लड़ाई लड़ती रहेंगी. हम आपको यहां से धक्का मारकर बाहर कर देंगे, हम उन लोगों में से नहीं हैं, जो मैदान छोड़कर भाग जाते हैं.’
जैसे-जैसे योगी और ओवैसी के बीच की लड़ाई बढ़ती जा रही है, वैसे–वैसे कांग्रेस की घबराहट भी बढ़ती जा रही है, और इस घबराहट में वो चारों दिशा में गोली दागने में लग गई है. राहुल गांधी ने केसीआर के बारे में कहा– केसीआर का मतलब ‘खाओ कमीशन राव है,’ और ये भी दावा कर दिया कि टीआरएस, बीजेपी की ‘बी’ टीम है, या ये कि केसीआर मोदी के रबर-स्टैंप हैं. ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम बीजेपी की ही ‘सी’ टीम है, जिसका काम बीजेपी और टीआरएस विरोधी दलों का वोट काटना है.
कांग्रेस की बेचैनी समझ में आती है. वो लाख चाहे अपने आपको को जनता के सामने पीड़ित की तरह दिखाने की कोशिश करे, लेकिन उसका जो इतिहास है – जहां वो एक खास वर्ग को खुश करने के लिए तुष्टीकरण की राजनीति करती रही है, और पहचान की राजनीति में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती रही है, वैसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पास वो सुविधा नहीं है कि वो नैतिकता के आधार पर किसी ऊंची कुर्सी पर जाकर विराजमान हो सकें. ऐसे में ये देखना और इंतजार करना लाज़िमी होगा कि तेलंगाना विधानसभा चुनावों के बाद ऊंट किस करवट जाकर बैठेगा.
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