माओवादियों की धमकी बिल्कुल स्पष्ट है- तेलंगाना विधानसभा चुनाव को फरवरी तक टाला जाए या फिर अगर चुनाव आयोग पूरे राज्य में 7 दिसंबर को चुनाव करने के अपने फैसले पर आगे बढ़ता है तो वह चुनाव प्रक्रिया में हिंसक तरीके से बाधा का सामना करने के लिए तैयार रहे.
माओवादियों ने जारी किया बाकायदा चुनाव कार्यक्रम, ठीक-ठीक तारीखों का भी जिक्र
इस सिलसिले में माओवादियों की तरफ से तैयार 4 पन्नों की विज्ञप्ति भुपलपल्ली तहसीलदार कार्यालय को भेजी गई है. इसमें माओवादियों की तरफ से मांग की गई है कि तकरीबन 30 लाख युवा वोट देने के लायक बन सकें, इस मकसद को ध्यान में रखते हुए चुनाव फरवरी में कराया जाए. उनका कहना है कि फरवरी में विधानसभा का चुनाव होने की स्थिति में 30 लाख नए युवाओं के लिए वोट देने की गुंजाइश बनेगी. यहां तक कि माओवादियों ने चुनाव आयोग द्वारा इस 'फरमान' के पालन के लिए अपनी तरफ से विस्तार से कार्यक्रम तैयार किया है. माओवादियों के इस आह्वान के मुताबिक, अधिसूचना 12 जनवरी को, उम्मीदवारों का नॉमिनेशन 22 जनवरी को खत्म करने की बात कही गई है, जबकि वोटिंग 14 फरवरी और वोटों की गिनती 19 फरवरी को होने की वकालत की गई है.
माओवादियों की इस विज्ञप्ति में दलील दी गई है कि तेलंगाना विधानसभा चुनावों की तारीख को आगे बढ़ाए जाने से इंटरमीडिएट, डिग्री, पीजी, बीटेक और टीटीसी के लाखों स्टूडेंट्स के लिए 1 से 14 जनवरी 2019 के बीच वोटर लिस्ट में रजिस्ट्रेशन कराना संभव हो सकेगा. इसके मुताबिक, मौजूदा मतदाता सूची में कई बेरोजगार युवाओं का नाम शामिल नहीं है. बहरहाल, माओवादियों ने यह भी आश्वासन दिया है कि अगर राज्य के विधानसभा चुनाव उनके द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रम के मुताबिक होते हैं तो उनकी तरफ से किसी तरह की हिंसा नहीं की जाएगी. साथ ही, यह धमकी भी दी गई कि इसके उलट अगर उनकी मांग को नजरअंदाज किया जाता है, तो बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है.
30 लाख वोटरों के जुड़ने की दलील, कांग्रेस के एक नेता भी दाखिल कर रखी है याचिका
हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस नेता मर्री शशिधर रेड्डी भी राज्य विधानसभा चुनाव की तारीख आगे बढ़ने की माओवादियों की मांग से सहमत हैं. गौतलब है कि रेड्डी ने मतदाता सूची में संक्षिप्त संशोधन पर सवाल उठाते हुए तेलंगाना हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.
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उन्होंने कहा, 'मैं 30 लाख नए वोटरों को लेकर पूरी तरह सुनिश्चित नहीं हूं. हालांकि अगर चुनाव फरवरी या मार्च में होते हैं तो निश्चित तौर पर लाखों युवा इस चुनाव के दौरान ही वोटर बन जाएंगे. युवाओं को वोटिंग के अधिकार से वंचित करना उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर कर देगा.'
चार पेज के पोस्टर/विज्ञप्ति के अलावा जयंशकर भूपलपल्ली गांव और कुछ अन्य गांवों (विशेष तौर पर छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे गांव) में ऐसे कई पोस्टरों और बैनरों की भरमार है, जिसमें गांव वालों से दिसंबर में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव का बहिष्कार करने को कहा गया है. हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है कि माओवादियों ने चुनाव से पहले इस तरह का पोस्टर लगाया हो. बहरहाल, इस बार गांव वालों में डर का माहौल बन रहा है. दरअसल, कुछ समय पहले इसी तरह के एक बैनर के नीचे मौजूद पुलिया के पास एक 'बारूदी सुरंग' पाई गई थी. पुलिस का कहना था कि यह 'बारूदी सुरंग' डमी थी और इसमें किसी तरह का विस्फोटक या डेटोनेटर नहीं था. हालांकि, इस 'बारूदी सुरंग' के पाए जाने के बाद पुलिस को हाई अलर्ट कर दिया गया है और इस पूरे इलाके में सघन अभियान भी चलाया जा रहा है.
जयशंकर भूपलपल्ली जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों- मुलुगू और भूपलपल्ली में 80 मतदान बूथ बेहद संवेदनशील कैटेगरी में आते हैं. जयशंकर भूपलपल्ली जिले के डीएम वी वेंकटेश्वरलू ने बताया, 'हम वोटरों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए तमाम उपाय कर रहे हैं. पिछले चुनाव में भी कुछ इसी तरह की स्थिति थी, लेकिन वोटिंग का प्रतिशत 78.46 फीसदी रहा थी. मुझे नहीं लगता कि इन पोस्टरों का वोटरों पर कोई असर होगा.'
राज्य के जयशंकर भूपलपल्ली, पेद्दापल्ली, भद्राचलम, कोठागुडम, चेन्नूर, मंथानी और मन्चेरियाल जैसे क्षेत्रों में स्थानीय नेता और सभी पार्टियों के उम्मीदवार इसको घटनाक्रम को लेकर काफी चिंतित हैं, जबकि पहले इस तरह के पोस्टरों को सभी पार्टियों और नेताओं द्वारा मोटे तौर पर नजरअंदाज किया जाता था और इसका चुनावी प्रक्रिया पर बेहद सीमित असर हुआ करता था. हालांकि, इन इलाकों में माओवादियों की मौजूदगी का इतिहास रहा है.
हाल में विधायक की हुई हत्या के कारण बहिष्कार के आह्वान से डर का माहौल विशेष तौर पर तेलुगू देशम पार्टी के विधायक ए. के. सर्वश्वर राव और पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के आराकू विधानसभा क्षेत्र के टोटांगी गांव में पूर्व विधायक एस. सोमा की हाल में हुई हत्या के बाद पार्टियों से जुड़े नेताओं में डर का माहौल बन गया है. हालांकि, मंथानी से तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के उम्मीदवार पुत्ता मधुकर ने कहा कि वह इस धमकी की तनिक भी परवाह नहीं करते. उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र में चुनाव के बहिष्कार के आह्वान की कोई प्रासंगिकता नहीं है.'
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सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद प्रोफेसर जी हरगोपाल ने भी मधुकर की इस राय से सहमति जताई. उन्होंने कहा, 'यहां तक कि आदिवासी समुदाय से संबंधित इलाकों में भी चुनावों के बहिष्कार का कोई मामला नहीं है, जहां माओवादियों का कुछ प्रभाव देखने को मिलता है. मुमकिन है कि इन इलाकों में वोटर हिंसा के डर से मतदान केंद्र पर नहीं आए हों, लेकिन उन्होंने कभी भी चुनावों का बहिष्कार नहीं किया.'
प्रोफेसर हरगोपाल के मुताबिक, दरअसल माओवादियों का बहिष्कार का आह्वान राजनीतिक पार्टियों के लिए चीजें आसान बना देता है. उनका कहना था, 'इन पार्टियों ने इस तरह की छवि बनाई है कि जो लोग वोट नहीं देते हैं, वे मरने वाले होते हैं.' साथ ही, चुनावों के बहिष्कार के आह्वान से चुनावी प्रक्रिया नहीं रुकेगी. उन्होंने बताया, 'आम आदमी चुनाव में हिस्सा लेना जिम्मेदारी की तरह मानता है.'
राजनीतिक विश्लेषक और लेखक टी. रवि ने माओवादी के चुनाव के बहिष्कार के आह्वान की आलोचना करते हुए कहा, 'माओवादी पृष्ठभूमि के कई नेता तेलंगाना की सरकार में अहम भूमिका निभा रहे हैं.' उनका यह भी कहना था कि तेलंगाना में माओवादी अपना काडर गंवा रहे हैं. उन्होंने बताया, 'मिसाल के तौर पर गद्दार (नक्सली कार्यकर्ता) के भी राज्य का विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना है.'
सरकार से नाराजगी, उम्मीदवारों को गांवों में घुसने भी रोक रही है जनता
कोई भी शख्स तेलंगाना में हालात की तुलना बस्तर से नहीं करता है. हालांकि, घटनाक्रम पर नजर रखने वालों का कहना है कि उम्मीदवारों को गांवों में घुसने से रोका जा रहा है. माओवादी के बहिष्कार के आह्वान के कारण ऐसा नहीं हो रहा है, बल्कि वोटरों को उनका वादा पूरा करने में नाकाम रहने की वजह से ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है. पैसा भी वोटिंग को प्रभावित करता है और सभी पार्टियां चुनाव के दिन पैसे बांटती हैं. आम राय यह है कि वोटर सबसे पैसे ले लेते हैं और आखिर में नोटा विकल्प दबा देते हैं.
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भूपलपल्ली गांव के निवासी बोनाला सुरेंद्रचारी ने बताया, 'यह सच है कि ग्रामीण इलाकों में माओवादियों का कुछ प्रभाव है. खास तौर पर आदिवासियों के गांवों में ऐसी स्थिति देखी जा सकती है. उन्होंने बैनर और पोस्टर लगाकर संबंधित विभाग से चुनाव को स्थगित करने और वोटरों से चुनाव का बहिष्कार करने की अपील की है. हालांकि, इन पोस्टरों और बैनरों का वोटरों पर ज्यादा असर नहीं होगा.'
तेलंगाना विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने की मांग वाला पोस्टर लगाने के बावजूद माओवादियों ने इससे पहले इस सिलसिले में यानी चुनावों में वोट देने पर नहीं के बराबर हिंसात्मक प्रतिक्रिया जताई है. हालांकि, सरकार और संबंधित अधिकारी इसको लेकर आगे भी किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. पुलिस ने उम्मीदवारों के लिए सुरक्षा-व्यवस्था बढ़ा दी है और राजनीतिक नेताओं को बिना पूर्व सूचना के इन इलाकों में नहीं घुसने को कहा गया है.
वेंकटपुरम के सब-इंस्पेक्टर कुमार भंडारी ने बताया, 'हमने वेंकटपुरम मंडल के पास बैनर और पोस्टर को देखने पर उसका संज्ञान लिया है. पिछले तीन महीने से इस मोर्चे पर सघन अभियान चल रहा है. माओवादियों द्वारा हालिया पोस्टर और बैनर लगाए जाने के बाद हमने किसी तरह का अतिरिक्त सुरक्षा उपाय नहीं किया है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि हाल-फिलहाल तक इन इलाकों में किसी तरह की माओवादी गतिविधि नहीं थी.'
(लेखक 101Reporters.com के सदस्य हैं.)
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