उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अब एक नए विवाद की सफाई देने में जुटी है. यह विवाद उत्तर प्रदेश के पूरी दुनिया में पहचान दिलाने वाले ताजमहल को लेकर है. बीते सोमवार को यूपी की पर्यटन मंत्री रीता बुहुगुणा जोशी ने सफाई दी है कि यूपी सरकार ने ताजमहल और आसपास के इलाके के विकास के लिए 156 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बना रही है. उनकी यह सफाई उनके ही विभाग के एक ऐसे फैसले के बाद आई है जिसने यूपी की योगी सरकार को जगहंसाई का पात्र बना दिया है.
यूपी के पर्यटन स्थलों में शामिल नहीं ताजमहल
दरअसल बीते दिनों यूपी के पर्यटन विभाग सूबे के दर्शनीय पर्यटन स्थलों की एक बुकलेट जारी की. इंटनेशनल स्तर पर पर्यटकों को लुभाने के लिए यह सरकार की ओर से एक औपचारिक कदम है. इस बुकलेट के मुख्यपृष्ठ पर बनारस की मशहूर गंगा आरती की तस्वीर थी. 32 पन्नों की इस बुकलेट में मथुरा, अयोध्या, देवीपाटन गोरखपुर और चित्रकूट जैसे हिंदू धार्मिक महत्व के स्थलों के बारे विस्तृत जानकारी मौजूद थी. लेकिन यूपी ही नहीं बल्कि पूरे भारत में सबसे ज्यादा पर्यटकों को लुभाने वाले ताजमहल की तस्वीर इस बुकलेट से नदारद थी.
सवाल उठता है कि क्या यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार अब दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देख रही है?क्योंकि यूपी ही नहीं, पूरे देश में ताजमहल ही वह पर्यटन स्थल है, जिसके दीदार का ख्वाब भारत आने वाले किसी भी विदेशी की आंखों में होता है. फिर चाहे वह राष्ट्राध्यक्ष हो, खिलाड़ी हो, एक्टर हो या कोई सामान्य पर्यटक.
हर साल ताजमहल से 20 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई तो टिकिट बिक्री से ही हो जाती है. इसके अलावा आगरा जैसे बड़े शहर की अर्थ व्यवस्था में भी ताज महल को योगदान असीम है. होटल और ट्रैवल इंडस्ट्री के अलावा आगरा का मशहूर चर्म उद्योग और पेठा उद्योग कहीं ना कहीं ताज महल को देखने आने वाले पर्यटकों चलते ही फलाफूला है.
ताज महल ने तो अपने जरिए जीविका चलाने वालों में नाम के आधार पर भेदभाव नहीं किया. लेकिन शायद योगी सरकार के हिसाब से ताजमहल की इन खूबियों से ज्यादा जरूरी उसको बनाने वाले मुगल शासक का नाम है जिसके खानदान को इतिहास की किताबों से मिटा देने कशिशें इस वक्त चरम पर हैं.
मुगलों के इतिहास के साथ-साथ उनके प्रतीकों पर भी हमला!
ताजमहल पर इस तरह की मानसिकता का यह पहला हमला नहीं है. 1630 में मुगल शहंशाह शाहजहां के काल में बने, उनकी बेगम मुमताज महल के मकबरे ताजमहल को कई बार हिंदू इमारत बताने का भी प्रयास किया गया है. लेकिन किन्ही भी ठोस सबूतों के अभाव में यह दावा हवा-हवाई ही ज्यादा नजर आया है. ऐसे में अब यूपी सरकार के पर्यटन विभाग की इस बुकलेट में ताजमहल की गैरमौजूदगी उसकी महत्ता को कम करने की ही कोशिश प्रतीत होती है.
इस विवाद के सामने आने के बाद रीता बहुगुणा जोशी ने जरूर सफाई देकर यह बताने की कोशिश की है कि ताजमहल सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. लेकिन करीब तीन महीने पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान को याद करें तो लगता है कि ताज महल के ‘अच्छे दिन’ अब शायद खत्म होने वाले हैं.
योगी आदित्यनाथ ने दरभंगा में कहा था कि भारत आने वाले विदेशी मेहमानों को ताजमहल की प्रतिकृति देना ठीक नहीं है. ताजमहल भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
यूपी के सीएम इस बयान की उस वक्त भी आलोचना हुई थी. अब यूपी के पर्यटन विभाग की बुकलेट में ताजमहल की गैरमौजूदगी इस ओर इशारा करती है कि शायद यूपी सरकार ने उस एजेंडे पर चलना शुरू कर दिया है, जिसकी राह उसके बाकी बीजेपी शासित राज्यों ने दिखाई है.
यूपी के पड़ोसी राज्य राजस्थान की बीजेपी सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी के युद्ध का विजेता बना दिया है, महाराष्ट्र की भाजपा सरकार स्कूलो के पाठ्यक्रम से मुगलों के इतिहास को ही साफ करने जा रही है. ऐसे में यूपी की बीजेपी सरकार का यह कारनामा इसी कड़ी की एक कोशिश प्रतीत होता है, जिसके तहत मुगलों के इतिहास के साथ साथ उनके प्रतीकों को भी मुख्यधारा से गायब कर देने का एजेंडा सामने आ रहा है.
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