पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार सुरजीत सिंह बरनाला में एक विलक्षण क्षमता थी. वे किसी राहगीर की तरह बोरिया-बिस्तर बांधे देश में कहीं भी निकल सकते थे और मजा यह कि सामने वाला पकड़ ही नहीं पाता था कि उसके आगे खड़ा शख्स सुरजीत सिंह बरनाला है.
खुद को गायब कर दिखाने की इस खूबी का एक इजहार एक बार उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल खत्म करने के बाद किया. उन दिनों पंजाब-संकट अपने चरम पर था. सो, उनकी इस अदा पर शिरोमणि अकाली दल और पंजाब पुलिस को भारी झेंप का सामना करना पड़ा.
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उलट वे सच्चे अर्थों में लखनऊ-प्रेमी थे. उनका बचपन और स्कूली दिन लखनऊ में गुजरे और वहीं से उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. कंधे पर झोला लटकाये वे लखनऊ पहुंचे और पहचान जाहिर किए बगैर नाका हिंडोला गुरुद्वारा में डेरा डाल दिया.
उन दिनों यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे और यूपी पुलिस तराई के इलाके में पंजाब में पनपे उग्रवाद की एक बड़जोर लहर से जूझ रही थी. यूपी के तराई के इलाके में सिखों की अच्छी-खासी आबादी है. ज्यादातर उग्रवादी बड़े फार्म-हाऊस और हिमालय की तलहटी के जंगलों की आड़ में छुपे बैठे थे. ऐसी हालत में पुलिस ठीक से कार्रवाई नहीं कर पा रही थी.
'मैं पंजाब का पूर्व मुख्यमंत्री हूं'
पंजाब में पसरे उग्रवाद का छिटपुट असर कानपुर और लखनऊ जैसे शहरों में भी था. इन शहरों में उग्रवादी अपनी मनमानी कर रहे थे. जो लोग गुरुद्वारे में अपनी पहचान जाहिर किए बगैर रुकते थे, पुलिस उनपर कड़ी नजर रखती थी. कहने की जरूरत नहीं कि जल्दी ही बरनाला पुलिस के जाल में फंस गए. एक सुबह पुलिस उन्हें उठाकर थाने ले आई और घंटों पूछती रही कि बताओ ‘तुम्हारे संगी-साथी कहां हैं, तुम लोगों के इरादे क्या हैं’.
इंस्पेक्टर ने उन्हें डांट पिलाई कि तुम पहचान छुपा रहे हो और तुम्हारा छल-प्रपंच ज्यादा देर तक नहीं चलने वाला.
पूछताछ करने वाली पुलिस टीम बरनाला का जवाब सुनकर दंग रह गई और छूटते ही पूछ लिया, ‘यहां आने वाला हर संदिग्ध या तो मुख्यमंत्री होता है या प्रधानमंत्री. अपनी पहचान ठीक-ठीक बताओ वर्ना हमें बात उगलवाने के और भी तरीके आते हैं’.
पंजाब के शिरोमणि अकाली दल के नेता यूपी की हिंदी के बारीक मायने नहीं पकड़ पाते. लेकिन सुरजीत सिंह बरनाला को पता था कि पुलिस टीम क्या कह रही है. उन्हें अपनी हालत की गंभीरता का अहसास हुआ. वे जान गए कि पुलिस के सवाल पर टाल-मटोल करने या फिर किसी किस्म की घबराहट दिखाने का मतलब होगा पुलिस को थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करने का न्योता देना. यूपी पुलिस इसके लिए बदनाम भी बहुत थी.
पुलिसवालों के छक्के छूट गए
अब बरनाला अपने असली रूप में आए. एक अनुभवी, पढ़े लिखे और बेहतरीन प्रशासनिक रिकॉर्ड वाले राजनेता के स्वर में उन्होंने इंस्पेक्टर से अंग्रेजी में कहा कि अपने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को फोन मिलाओ.
बरनाला को एक दब्बू और गुमनाम सिख यात्री से अचानक रौबीले अवतार में आते देख पुलिसवाले के छक्के छूट गए. इंस्पेक्टर के तेवर ढीले पड़ गए और उसने मुलायम सिंह यादव का फोन नंबर मिलाने में अपनी खैर समझी.
बरनाला ने मुख्यमंत्री निवास के कर्मचारियों से बात की और फोन मुलायम सिंह यादव से कनेक्ट हो गया. यह देखते ही इंस्पेक्टर को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने भरे गले से माफी मांगनी शुरू कर दी.
कहने की जरूरत नहीं कि बरनाला की आगे की यात्रा आसान साबित हुई. हां, उनकी पहचान छुपी न रह सकी. एक दफे मैंने उनसे इस वाकये के बारे में पूछा तो बोले कि 'अंग्रेजी ने मुझे बचा लिया. हिन्दी या पंजाबी में तो मैं पुलिसवाले को विश्वास ही नहीं दिला पाता'.
धर्म निरपेक्षता की शपथ लेनी होगी
पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में बरनाला पहले थे जिसने राजनीति को धर्म से अलग रखने का मसला उठाया. 1985 में एक खास इंटरव्यू में उन्होंने मुझसे कहा था कि 'किसी एक व्यक्ति का शिरोमणि अकाली दल में होना और मुख्यमंत्री के पद पर होना ठीक नहीं'.
उन्होंने कहा था, ‘चूंकि शिरोमणि अकाली दल एक धार्मिक पार्टी है इसलिए पार्टी का प्रमुख अगर किसी संविधानिक पद पर बैठता है तो उसे धर्म-निरपेक्षता की शपथ लेनी होगी’.
यदि शिरोमणि अकाली दल बरनाला के कहे पर चलती उसके भीतर लोकतंत्र के सुर कहीं ज्यादा सधे होते. पार्टी न तो कुनबापरस्ती का जमावड़ा बनती और न ही उसे अपराध और भाई-भतीजावाद के रोग लगते.
बरनाला 14 तारीख को हमेशा के लिए अनंत की यात्रा पर निकल गए. उनका जाना याद दिलाता रहेगा कि पंजाब में ऐसे नेताओं का एक सिलसिला रहा है जो सियासी नफा-नुकसान सोचकर नहीं बल्कि अपने दिल की आवाज पर कदम उठाते हैं.
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