कांग्रेस ने सोचा नहीं होगा कि जिस राफेल डील के मुद्दे पर सवार हो कर उसने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की कारपेट-बॉम्बिंग की वो ही मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में इस तरह ज़मीदोज़ हो जाएगा. राफेल डील की सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न तो राफेल सौदे में कोई संदेह है और न ही राफेल की गुणवत्ता पर कोई सवाल. सीजेआई की बेंच ने कहा कि वो राफेल डील की प्रक्रिया को लेकर संतुष्ट हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस को 3 राज्यों में मिली जीत का जायका बिगाड़ सकती है. कांग्रेस ने राफेल डील का चुनाव प्रचार में ‘बोफोर्स-तोप’ की तरह इस्तेमाल किया था. साल 2019 के लिए भी इसी मुद्दे पर देशभर में एक धारणा बनाने की कोशिश की जा रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसी धारणा को ध्वस्त कर दिया.
पीएम मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर ‘चौकीदार चोर है ‘जैसे नारे लगाए जा रहे थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जहां एक तरफ कांग्रेस की राफेल डील पर राजनीति को क्लीन-बोल्ड कर दिया तो साथ ही पीएम मोदी को क्लीन-चिट भी दे दी. खास बात ये रही कि सीजेआई की बेंच ने कहा कि वो किसी धारणा के आधार पर फैसला नहीं दे सकती है.
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क्या जेपीसी की जांच में साबित हो पाएंगे आरोप?
सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद राफेल डील पर राजनीति क्यों नहीं थमी? क्या किसी और मामले में देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ असंतोष दिखाने का साहस जुटाया जा सका है? सुप्रीम कोर्ट से मन की मुराद पूरी न हो पाने कांग्रेस अब राफेल डील पर जेपीसी जांच पर अड़ी है. राफेल डील पर ऐसा क्या जेपीसी की जांच में सामने आ जाएगा जो कि वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, बीजेपी के बागी सीनियर नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील मनोहर लाल शर्मा और विनीत ढांडा की दाखिल याचिकाओं के तर्क, तथ्य और आरोपों से सुप्रीम कोर्ट में साबित नहीं हो सका?
सवाल उठता है कि क्या सिर्फ सियासी फायदे के लिए देश के संवेदनशील मसले का राजनीतिकरण सिर्फ इस वजह से किया जा रहा है क्योंकि पूर्व में बोफोर्स घोटाले की ही वजह से कांग्रेस को सरकार गंवानी पड़ गई थी? क्या रक्षा सौदा होने की वजह से राफेल डील को जानबूझकर सियासी तूल दिया गया ताकि सिर्फ एक धारणा तैयार कर पीएम मोदी की छवि का किला ध्वस्त किया जा सके?
दरअसल, रक्षा सौदा देश की सुरक्षा के साथ-साथ जनभावनाओं से भी जुड़ा होता है और इसमें भष्टाचार के आरोप लगाकर जनभावना को फायदे-नुकसान के लिए उकसाना आसान होता है. तभी कांग्रेस को ये उम्मीद हो सकती है कि जिस दिन भी वो भ्रष्टाचार के मामले में पीएम मोदी की आम जनभावना में व्याप्त छवि में सेंध लगाने में कामयाब हो गई तो उसे फिर सत्ता वापसी से कोई भी नहीं रोक सकेगा. तभी कांग्रेस एक सूत्री एजेंडे के तहत राफेल डील को हथियार बना कर पीएम मोदी के खिलाफ धारणा बनाने में जुटी हुई है और तीन राज्यों में मिली जीत को इसकी कामयाबी के तौर पर देखती है.
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मोदी की नीयत पर शक नहीं, तो चौकीदार चोर कैसे?
लेकिन मोदी सरकार पर न तो सुप्रीम कोर्ट को शक है और न ही पीएम मोदी की नीयत पर कांग्रेस के सहयोगी एनसीपी क्षत्रप शरद पवार को. राफेल डील के मामले में शरद पवार ने खुद ही कहा था कि वो पीएम मोदी की नीयत पर संदेह नहीं कर सकते हैं. विपक्ष की किसी बड़ी पार्टी के दिग्गज नेता से क्या इस तरह के बयान की आज के दौर की राजनीति में उम्मीद की जा सकती है?
मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए पहले अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी के दबाव में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश से झूठ बोला. लेकिन राहुल पर ही उल्टा संसद में झूठ बोलने का आरोप लगा.
कांग्रेस अध्यक्ष ने संसद में कहा था कि उन्होंने खुद फ्रांस के राष्ट्रपति से पूछा था कि 'क्या दोनों देशों के बीच में ऐसी कोई सीक्रेट डील है जिसकी वजह से राफेल सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती तो उन्होंने बताया कि दोनों देशों में ऐसा कोई सीक्रेट पैक्ट नहीं है'.
राहुल के आरोपों के बाद ही रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद को बताया कि खुद पूर्व की यूपीए सरकार ने ही 25 जनवरी 2008 को फ्रांस के साथ सीक्रेसी अग्रीमेंट किया था जिसमें राफेल डील भी शामिल थी. इतना ही नहीं राहुल के आरोपों के बाद फ्रांस की सरकार ने साल 2008 में फ्रांस और भारत के बीच सुरक्षा समझौते के तहत गोपनीय जानकारियों को साझा न करने के पीछे कानूनी बाध्यता का भी हवाला दिया था.
2019 लोकसभा चुनाव का गणित
पहले राफेल डील पर जांच की मांग की याचिकाएं तो अब जेपीसी जांच की मांग से साल 2019 के लोकभा चुनाव का गणित समझा जा सकता है. कांग्रेस को लगता है कि जेपीसी जांच से उसे चुनावी फायदा मिल सकता है. क्योंकि इससे भ्रष्टाचार के आरोपों पर आधिकारिक मुहर भी लग जाती है.
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दरअसल, साल 1987 में कांग्रेस सरकार ने बोफोर्स तोप घोटाले के मामले में जेपीसी जांच बिठाई थी और उसके बाद ही 1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी सरकार को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह साल 2011 में भी यूपीए सरकार ने टू जी स्पैक्ट्रम घोटाले के मामले में जेपीसी जांच बिठाई तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे हारना पड़ गया. यही वजह है कि अतीत का अनुभव रखने वाली कांग्रेस जेपीसी जांच के जरिए राफेल डील के मुद्दे पर बीजेपी सरकार में घोटाले की आम धारणा तैयार करने की रणनीति में जुटी हुई है.
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