सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि विवाद पर सुनवाई हो रही है. विवादों के इस मामले ने सौ साल से ज्यादा का वक्त देखा है. मुल्क जब गुलाम था तब आस्था भी किसी हिस्से के कोने में कैद थी. उस पर अपने अपने दावे थे. जिसके बाद पहली बार ये मामला 29 जनवरी, 1885 को अदालत में पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे राम चबूतरे पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 2.77 एकड़ की जमीन पर बनी बाबरी मस्जिद के बाहरी परिसर में हिंदू धर्म के लोग पूजा किया करते थे. इस परिसर में सिंह द्वार के सीता रसोई और हनुमत द्वार के राम चबूतरे पर पूजा होती थी. 1855 में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच छिड़े दंगों के बाद यहां एक दीवार बना दी गई. वहीं महंत रघुबर दास की अपील का उस समय पर बाबरी मस्जिद की देखरेख करने वाले मोहम्मद असगर ने विरोध किया. उनका कहना था मस्जिद के पूर्वी द्वार पर 'अल्लाह' लिखा हुआ है. ऐसे में इस स्थल पर किसी और का अधिकार नहीं हो सकता. उनका दावा था कि 1856 तक यहां कोई चबूतरा भी नहीं था.
24 दिसंबर, 1885 में फैजाबाद अदालत ने ये कहते हुए महंत की अपील ठुकरा दी कि अगर मंदिर निर्माण की अनुमति दे दी जाती है तो, इससे दंगे भड़क सकते हैं. इसके बाद यहां तब तक कुछ नहीं हुआ, जब 1949 में करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे. मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया. उस समय पर राज्य सरकार चाहती थी कि मूर्तियां हटा ली जाए. लेकिन फैजाबाद जिला प्रशासन ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. क्योंकि उन्हें डर था कि इससे साप्रदायिक हिंसा पैदा हो सकती है.
अयोध्या में 1934 में एक बार फिर दंगे हुए और मस्जिद के कुछ हिस्सों को नुकसान भी पहुंचाया गया. हालांकि बाद में राज्य सरकार के खर्च पर मस्जिद में सुधार कर दिया गया. वहीं 16 जनवरी, 1950 में अयोध्या के निवासी गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी. और 5 दिसंबर, 1950 को महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. जिसमें मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया. इसके बाद कुछ और पार्टियों द्वारा अपील दायर की गई और मामलों को इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौंप दिया गया.
इसके बाद कब क्या हुआ
- 1984 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया. एक समिति का गठन किया गया.
- 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
- जून 1989 में बीजेपी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया और एक जुलाई 1989 को भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया.
- वहीं 9 नवंबर 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी. फिर 25 सितंबर 1990 को पूर्व बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. इसके बाद नंवबर में आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. अक्टूबर 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया.
- 6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया. इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया.
- 16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ. जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था.
- अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की.
- मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे.
- सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.
- जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
- 28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.
- 30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी.
- 9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.
- जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन
- 21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही
- 19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया
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