कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को एक बार फिर गुजरात के दौरे पर पहुंचे. अपने दो दिवसीय गुजरात दौरे की शुरुआत राहुल ने सोमनाथ मंदिर में मत्था टेककर की. मंदिर में राहुल ने भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक भी किया. लेकिन सोमनाथ मंदिर के दर्शन के दौरान राहुल की कोर टीम के सदस्यों से एक ऐसी चूक हो गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को लंबे वक्त तक भुगतना पड़ सकता है.
दरअसल, सोमनाथ मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले गैर हिंदुओं को एक विशेष रजिस्टर में एंट्री करना पड़ती है. राहुल गांधी के साथ गुजरात कांग्रेस के प्रभारी अशोक गहलोत और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल भी मंदिर पहुंचे थे. ऐसे में राहुल का नाम अहमद पटेल के साथ मंदिर के गैर हिंदू आगंतुक वाले रजिस्टर में दर्ज हो गया. जिसका सीधा-सीधा अर्थ यह लगाया गया कि राहुल गांधी हिंदू नहीं है.
सोमनाथ मंदिर के गैर हिंदू आगंतुकों के रजिस्टर में राहुल के नाम की एंट्री वाली तस्वीरें देखते ही देखते वायरल हो गईं. सोशल मीडिया पर लोग राहुल को ट्रोल करने लगे. लोगों ने कहा कि, राहुल हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करते हैं, इसीलिए उन्होंने गैर हिंदू वाले रजिस्टर में अपना नाम दर्ज किया है.
देश गुजरात नाम के एक ट्विटर यूजर ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘राहुल गांधी और अहमद पटेल का नाम श्री सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा संचालित सोमनाथ मंदिर के गैर हिंदू आगंतुक वाले रजिस्टर में दर्ज पाया गया है.’
Rahul Gandhi and Ahmed Patel's names in register of non-Hindus visiting Somnath temple maintained by Shri Somnath Trust https://t.co/P28ghC3hF4
— DeshGujarat (@DeshGujarat) November 29, 2017
सोमनाथ को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम माना जाता है. लिहाजा हिंदू धर्म के सभी तीर्थस्थानों में सोमनाथ को बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है. ऐसे में मंदिर के गैर हिंदू आगंतुक वाले रजिस्टर में नाम दर्ज होने से राहुल की बड़ी किरकिरी हो रही है. खबर यह फैली कि, राहुल खुद को हिंदू नहीं मानते हैं. इस खबर ने गुजरात के सियासी दंगल में ताल ठोंक रहे राहुल गांधी और कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया.
डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस के नेता फौरन सफाई के लिए सामने आए. उन्होंने बताया कि, इस मामले में कांग्रेस के मीडिया कोऑर्डिनेटर मनोज त्यागी से गलती हुई है. मनोज त्यागी ने ही सोमनाथ मंदिर के गैर हिंदू आगंतुक वाले रजिस्टर में राहुल गांधी और अहमद पटेल का नाम दर्ज किया था.
जब सफाई से बात नहीं बनी तो कांग्रेस ने राहुल को संस्कारी हिंदू साबित करने की पुरजोर कोशिशें शुरू कर दीं. इसके लिए कांग्रेस की तरफ से राहुल के दादा-दादी इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी, पिता-मां राजीव गांधी और सोनिया गांधी और बहन-बहनोई प्रियंका गांधी और रॉबर्ड वाड्रा की शादी की तस्वीरें साझा की गईं. तस्वीरों के जरिए कांग्रेस की तरफ से दलील दी गई कि राहुल के सभी पुरखों और रिश्तेदारों की शादी हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक हुई थी.
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यही नहीं, कांग्रेस की तरफ से राहुल के पिता राजीव गांधी के अंतिम संस्कार की भी एक तस्वीर जारी की गई, इस तस्वीर में अपने पिता की चिता को अग्नि देते राहुल गांधी जनेऊ पहने नजर आ रहे हैं. इस तस्वीर के आधार पर कांग्रेस की ओर से कहा गया कि, 'राहुल हिंदू ही नहीं बल्कि जनेऊ धारी हिंदू हैं.'\
Not only is Rahul Gandhi ji a Hindu, he is a 'janeu dhari' Hindu. So BJP should not bring down the political discourse to this level: RS Surjewala,Congress pic.twitter.com/YY5MKQEKt5
— ANI (@ANI) November 29, 2017
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से खुद को एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर दिखाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, जो हिंदू धर्म और उसके देवी-देवताओं में पूरा विश्वास करता है. खुद को संस्कारी हिंदू साबित करने की मुहिम के तहत राहुल, बद्रीनाथ से लेकर सोमनाथ तक के मंदिरों की खाक छान रहे हैं. दरअसल राहुल पर यह आरोप लगता आया है कि, उनका झुकाव अल्पसंख्यकों की तरफ ज्यादा है. लिहाजा अब वह मंदिर दर मंदिर जाकर खुद पर लगे इस आरोप को धोना चाहते हैं. हालांकि यह बात दीगर है कि, कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षक की छवि कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद बनाई थी.
सनद रहे कि, राहुल ने अपने गुजरात अभियान की शुरुआत हिंदू मंदिरों में शीश नवा कर की थी. पिछले दो महीनों में राहुल गुजरात के करीब 20 मंदिरों में हाजिरी लगा चुके हैं, जहां उन्होंने विधिवत पूजा भी की. राहुल की इस कवायद को सॉफ्ट हिंदुत्व का एजेंडा करार दिया जा रहा है. भारतीय राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों का मानना है कि, राहुल ने गुजरात चुनाव के मद्देनजर सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड बहुत सोच-समझकर खेला है.
दरअसल 2014 लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस ने एक कमेटी गठित की थी. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ए. के. एंटनी की अध्यक्षता वाली इस कमेटी को लोकसभा चुनाव में पार्टी की अपमानजनक हार के कारणों का पता लगाना था. काफी खोजबीन और माथापच्ची के बाद इस कमेटी ने जब अपनी रिपोर्ट सौंपी, तब कांग्रेस की हार की कई अहम वजहें सामने आईं थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पसंख्यकों के प्रति कांग्रेस का हद से ज्यादा झुकाव विनाशकारी साबित हुआ है. कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रेम से बड़ी तादाद में हिंदू मतदाताओं ने पार्टी से दूरी बना ली है. लिहाजा कांग्रेस को अपनी इस छवि से छुटकारा पाने की सख्त जरूरत है. ये शायद एंटनी रिपोर्ट का ही असर है कि, राहुल गांधी अब आए दिन मंदिरों में नजर आते हैं. गुजरात के अपने ताजा दौरे की शुरुआत भी राहुल ने देश के सबसे प्रसिद्ध मंदिर में जाकर की है.
यह कह पाना मुश्किल है कि, सोमनाथ मंदिर में राहुल का नाम गैर हिंदू आगंतुक वाले रजिस्टर में दर्ज होना एक सोची-समझी रणनीति थी या महज घोर लापरवाही. जो भी हो, लेकिन इसने कांग्रेस के भावी अध्यक्ष और उनकी पार्टी को भारी नुकसान की ओर धकेल दिया है. राहुल और कांग्रेस के इस संभावित नुकसान की तुलना, साल 2007 के सोनिया गांधी के उस बयान से की जा सकती है, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' करार दिया था.
कांग्रेस ने गुजरात चुनावों के लिए बीते कुछ महीनों में जो मेहनत की है, एक गलत कदम उस पर पानी फेर सकता है. सांप्रदायिकता के मामले में गुजरात को बहुत संवेदनशील माना जाता है. इसलिए गुजरात में राहुल को बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखना होंगे. राहुल को इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि, उनका झुकाव किसी विशेष जाति, धर्म या वर्ग की ओर ज्यादा नजर न आए.
राहुल को ऐसे शब्दों और क्रिया-कलापों से भी परहेज करना होगा, जिनसे उनके मुस्लिम प्रेम की झलक नजर आए. वरना, राहुल ने 22 साल बाद गुजरात में कांग्रेस के लिए जो सियासी जमीन तैयार की है, वह उनके कदमों तले से एक झटके में खिसक सकती है.
गुजरात के मिजाज को ध्यान में रखते हुए ही राहुल इनदिनों मंदिरों के खूब चक्कर लगा रहे हैं. हालांकि इससे पहले वह कम अवसरों पर ही किसी मंदिर में नजर आते थे. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी राहुल ने कुछ मंदिरों में मत्था टेका था, लेकिन तब उन्होंने मस्जिदों, सूफियों की दरगाहों और कुछ चर्च में भी हाजिरी लगाई थी.
लेकिन फिलहाल गुजरात में राहुल सिर्फ मंदिरों पर ही फोकस कर रहे हैं. दरअसल राहुल को लगता है कि, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेताओं के बाहरी समर्थन से कांग्रेस गुजरात में मोदी और बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है. लेकिन इसके लिए राहुल को पहले खुद को हिंदू प्रेमी साबित करना होगा. लिहाजा राहुल गुजरात में अपनी छवि को नरमपंथी हिंदू के तौर पर पेश कर रहे हैं.
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यही वजह है कि राहुल या अन्य कांग्रेसी नेताओं ने गुजरात में अब तक 'मुस्लिम', 'सांप्रदायिक' या '2002 दंगा पीड़ितों के लिए इंसाफ' जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है. बीजेपी किसी बात को मुद्दा न बना दे, लिहाजा कांग्रेस के रणनीतिकार गुजरात में बहुत सावधानी बरत रहे हैं.
यहां तक कि, दिग्गज कांग्रेसी नेता अहमद पटेल को भी गुजरात के प्रचार अभियान में पर्दे के पीछे रखा गया है. इसके अलावा दो मौजूदा विधायकों को भी कांग्रेस ने प्रचार अभियान से अलग रखा है. वहीं कांग्रेस की जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं में टोपी लगाने वाले और दाढ़ी रखने वाले पुरुष और बुर्का पहनने वाली महिलाएं भी कम ही नजर आ रही हैं.
दरअसल कांग्रेस ऐसी कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है, जिससे मतदाताओं के ध्रुवीकरण की संभावना हो. पार्टी साल 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव की गलतियों को किसी भी कीमत पर दोहराना नहीं चाहती है.
संयोग से, उत्तर प्रदेश के बाद गुजरात देश का वह दूसरा राज्य है, जहां राहुल गांधी ने चुनाव की हर जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी है. राज्य में कांग्रेस की वापसी कराने के लिए राहुल यहां जबरदस्त प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में गैर हिंदू की छवि राहुल पर भारी पड़ सकती है. गुजरात की जनता यह सोच सकती है कि मुस्लिम तुष्टीकरण और 2002 के दंगा पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मुहिम के तहत राहुल ऐसा कर रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो, गुजरात जीतने के राहुल के मंसूबे धरे के धरे रह सकते हैं.
पिछले कई सालों से ऐसा देखा जा रहा है कि, कांग्रेस नेता निजी तौर पर गाहे-बगाहे यह दलील देते नजर आते हैं कि, गांधी परिवार वंश से कश्मीरी ब्राह्मण है. इसके लिए राहुल की दादी इंदिरा गांधी, राहुल के परनाना जवाहरलाल नेहरू और मोतीलाल नेहरू का जिक्र किया जाता है. इन सभी नामों और इनके वंश से पूरा देश बखूबी वाकिफ है. लेकिन राहुल गांधी के गैर हिंदू होने वाली बात ने अब लोगों को उनकी वंशावली पर सवाल उठाने का मौका दे दिया है.
गुजरात में कांग्रेस के चक्रव्यूह में घिरी बीजेपी ने इस मुद्दे को लपकने में देर नहीं लगाई है. बीजेपी नेता और पार्टी समर्थक इस मुद्दे को जमकर उछाल रहे हैं. ट्विटर पर तो इस मुद्दे को लेकर तूफान खड़ा हो गया है.
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस मुद्दे पर दनादन कई ट्वीट किए हैं. मालवीय ने एक ट्वीट में लिखा है, 'आखिरकार राहुल गांधी ने अपने धर्म को लेकर बात साफ कर दी है, सोमनाथ मंदिर के आगंतुक रजिस्टर पर उन्होंने अपना नाम गैर हिंदू के तौर पर दर्ज किया है. अगर वह हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करते हैं, और हिंदू होने का सिर्फ दिखावा करते हैं, तो वह मंदिरों में जाकर लोगों को बेवकूफ क्यों बना रहे हैं?'
Finally Rahul Gandhi comes clean on his religion, signs visitor register in Somnath (as per rule) meant for non-Hindus. If he isn’t a Hindu by faith, let alone a practicing one, then why has he been fooling people with these temple visits? pic.twitter.com/Igh5wxitkt
— Amit Malviya (@malviyamit) November 29, 2017
अमित मालवीय ने अपने एक और ट्वीट में लिखा
Ambassador Meera Shankar, UPA’s representative in US, had referred to Sonia Gandhi as a Christian leader. The reference was soon deleted. Now Rahul Gandhi declares he is a non-Hindu but their election affidavits claim that they are Hindus. Gandhis lying about their faith? pic.twitter.com/iFE4AhVnRM
— Amit Malviya (@malviyamit) November 29, 2017
'अमेरिका में भारतीय राजदूत रहीं मीरा शंकर ने यूपीए सरकार की प्रतिनिधि के तौर पर सोनिया गांधी को ईसाई नेता के रूप में संबोधित किया था. लेकिन बाद में मीरा का वह बयान हटा दिया गया था. अब सोमनाथ मंदिर के एंट्री रजिस्टर में राहुल गांधी ने खुद ही यह घोषित कर दिया है कि, वह एक गैर-हिंदू हैं. हालांकि अपने चुनावी हलफनामों में राहुल ने खुद को हिंदू बता रखा है. तो क्या यह माना जाए कि, राहुल गांधी अपने धार्मिक विश्वास के बारे में झूठ बोल रहे हैं?'
वहीं खुद को डोगरा हिंदू बताने वाली सोनम महाजन नाम की एक ट्विटर यूजर ने लिखा, 'क्या ? ! ? ज़ी गुजराती ने खबर ब्रेक की है कि, सोमनाथ मंदिर के एंट्री फॉर्म में राहुल गांधी ने खुद को एक गैर हिंदू के तौर पर घोषित किया है. सवाल यह उठता है कि, अगर वह खुद को हिंदू कहने में शर्मिंदा महसूस करते हैं, तो वह मंदिरों में क्यों जा रहे हैं? या फिर उन्होंने चुपके से अपनी मां का धर्म अपना लिया है?'
गुजरात बीजेपी के एक नेता ने बताया कि, कई लोग सवाल पूछ रहे हैं कि, 'राहुल का धर्म क्या है?. हालांकि इस बीजेपी नेता का यह भी कहना है कि, उनकी पार्टी इस मुद्दे पर लोगों को कतई नहीं भड़का रही है. बीजेपी नेता के मुताबिक, 'सोशल मीडिया की कैंपेन को भला कौन रोक सकता है.'
वैसे बीजेपी इस मामले को बहुत चतुराई के साथ डील कर रही है. ऐसा लगता है कि उसने इस मुद्दे को पूरी तरह से सोशल मीडिया के जिम्मे छोड़ दिया है. बीजेपी देखना चाहती है कि, यह मुद्दा कितना गर्मा सकता है और कहां तक जा सकता है. अगर इस मुद्दे पर गुजराती जनता गंभीर नजर आई तो, बीजेपी नेता अपनी जनसभाओं और प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका धड़ल्ले से जिक्र करते नजर आएंगे.
कांग्रेस के मीडिया कोऑर्डिनेटर मनोज त्यागी द्वारा राहुल गांधी को गैर-हिंदू घोषित किए जाने और गांधीनगर के आर्कबिशप थॉमस मैक्वान के एक हालिया बयान को लोग अब एक साथ जोड़कर देख रहे हैं. दरअसल पादरी थॉमस मैक्वान ने निर्देश दिया है कि, चर्च में विश्वास रखने वाले सभी ईसाई एकजुट होकर गुजरात चुनाव में राष्ट्रवादी ताकतों को हराने के लिए हर संभव कोशिश करें, ताकि उन्हें देश पर कब्जा करने से रोका जा सके.
हालांकि, पादरी थॉमस मैक्वान ने बीजेपी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि उनका इशारा किस पार्टी की तरफ था.
फिलहाल राहुल के धार्मिक विश्वास को लेकर जो तूफान खड़ा हुआ है, उसका सामना करना राहुल के चुनाव प्रबंधकों के लिए मुश्किल हो गया है.
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुनाव प्रचार के लिए गुजरात में ही थे. इस दौरान उन्होंने राहुल के सोमनाथ मंदिर के दर्शन पर सीधे तो कोई बात नहीं की, लेकिन उन्होंने राहुल के परनाना जवाहरलाल नेहरू के बहाने निशाना जरूर साधा. मोदी ने आरोप लगाया कि, पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के पक्ष में नहीं थे. लेकिन सरदार पटेल के आग्रह और कोशिशों से सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का सपना साकार हो पाया था. मोदी ने आगे कहा कि, जब नेहरू को यह पता चला कि तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं तो उन्होंने सख्त नाराजगी जताई थी. नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को उद्घाटन के लिए सोमनाथ न जाने की सलाह भी दी थी.
मोदी ने गरजते हुए आगे कहा, 'आज कुछ लोगों को सोमनाथ की याद आ रही है, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि, क्या आप लोग अपना अतीत भूल गए हो?'
मोदी का भाषण सुनने के बाद कुछ लोग अभिलेखागारों में पहुंच गए और नेहरू की लिखी चिट्ठियां निकाल लाए. इसके बाद उन्होंने नेहरू की चिट्ठियां ट्विटर पर शेयर करना शुरू कर दीं. सिद्धार्थ गहलावत नाम के एक ट्विटर यूजर और कुछ अन्य लोगों ने जवाहरलाल नेहरू की लिखी सामग्री (सेलेक्टिव वर्क) को खंगाला और उनकी चिट्ठियों को निकाकर ट्विटर पर साझा कर दिया.
Jawahar Lal Nehru's letter to the then president Dr Rajendra Prasad opposing the idea of #Somnath Temple's reconstruction & asking him to abstain from it's inauguration ceremony.#GujaratGauravModi pic.twitter.com/kteadtCpZf
— Sidharth Gehlawat (@GehlawatSid) November 29, 2017
दिलचस्प बात यह है कि, मनोज त्यागी नाम के जिस मीडिया कोऑर्डिनेटर ने राहुल गांधी की ओर से मंदिर के रजिस्टर में एंट्री की थी, उसने अभी तक इस मामले में अपना स्पष्टीकरण नहीं दिया है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और रणनीतिकार फिलहाल मनोज त्यागी की सफाई के महत्व और औचित्य का आकलन कर रहे हैं.
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कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
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