सोमवार को तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ने डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को संयुक्त विपक्ष का प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने के प्रस्ताव के बाद से खुद को दूर कर दिया है. साथ ही ये भी कहा कि ऐसी कोई भी घोषणा जल्दबाजी होगी.
एक टीएमसी नेता ने कहा कि लोकसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद, विपक्षी दलों के बीच चर्चा के बाद ही प्रधान मंत्री कौन होना चाहिए, इस पर निर्णय लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि कोई भी एकतरफा घोषणा गलत संदेश भेज सकती है.
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एक वरिष्ठ टीएमसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि- 'न केवल टीएमसी, बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियों का मानना है कि पीएम उम्मीदवार पर किसी भी तरह का फैसला लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही किया जाना चाहिए. पीएम उम्मीदवार पर कोई घोषणा अभी जल्दबाजी होगी क्योंकि यह विपक्ष को विभाजित करेगी.'
स्टालिन ने रविवार को विपक्ष के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष के पक्ष में मजबूती से अपनी बात रखी. और कहा कि राहुल गांधी में 'फासीवादी' नरेंद्र मोदी सरकार को हराने की क्षमता है.
टीएमसी द्वारा खुद को राहुल के पीएम उम्मीदवार के घोषणा से दूर कर लेना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. क्योंकि कांग्रेस और एआईएडीएमके के बाद, टीएमसी लोकसभा में 34 सांसदों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी विपक्षी है. राज्यसभा में उसके 13 सांसद हैं.
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पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस नेता कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया था. लेकिन बनर्जी इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई और उनकी जगह पर पार्टी के वरिष्ठ सांसद दिनेश त्रिवेदी ने इसमें भाग लिया.
बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने टीएमसी का मज़ाक उड़ाया कि वो सपना देख रहे हैं कि उनकी पार्टी की नेता अगली प्रधान मंत्री होंगी. सिन्हा ने कहा- 'टीएमसी के नेता सपना देख रहे हैं कि उनकी पार्टी की नेता अगली प्रधान मंत्री होंगी. इस तथाकथित विपक्षी गठबंधन के साथ समस्या यह है कि हर कोई पीएम उम्मीदवार है. इस देश के लोग सबकुछ समझते हैं.'
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भारी जीत के लिए गांधी को श्रेय नहीं देने के लिए राज्य कांग्रेस नेतृत्व भी टीएमसी के खिलाफ मुखर रहा है. पिछले हफ्ते कांग्रेस ने पूछा था कि क्या तृणमूल के नेताओं की रातों की नींद गायब हो गई थीं, क्योंकि वे डर रहे हैं कि बनर्जी का प्रधान मंत्री बनने का उनका सपना पूरा नहीं हो सकता है.
सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए. इससे 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले ही महागठबंधन का सपना टूटता दिख रहा है.
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