यूपी की दलित राजनीति को करीब से देखने के लिए और पश्चिमी यूपी में भीम आर्मी के प्रभाव को समझने के लिए मैं यूपी के दौरे पर था. इस साल मई की बात है. भीम आर्मी का संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ रावण उस वक्त जेल में थे. सहारनपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर बेहट इलाके में मेरी मुलाकात मंजीत नौटियाल से हुई. मंजीत भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.
मंजीत और भीम आर्मी के उनके दूसरे साथी चंद्रशेखर रावण को जेल से बाहर निकालने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंद्रशेखर रावण को सहारनपुर हिंसा के मामले में जमानत दे दी थी. लेकिन सहारनपुर प्रशासन ने उन पर रासुका लगाकर फिर से जेल की सलाखों के भीतर डाल दिया था. रासुका की अवधि खत्म हुई कि रासुका को फिर से तीन महीने के लिए बढ़ा दिया. मंजीत और उनके साथियों का मानना था कि पुलिस प्रशासन उनपर ज्यादती कर रही है और ये सब बीजेपी सरकार के इशारे पर किया जा रहा है.
पुलिस की लाठियां चली, फिर पत्थरबाजी हुई
बेहट के जिस इलाके में मेरी मुलाकात मंजीत नौटियाल से हुई वो दलित बहुल इलाका है. इलाके के लोग मंजीत नौटियाल ही नहीं बल्कि भीम आर्मी से जुड़े हर सदस्य को सम्मान की नजर से देखते हैं. इन्हें लगता है कि भीम आर्मी उनके समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से लड़ रही है. चंद्रशेखर रावण के जेल जाने के बाद भीम आर्मी और उनके सदस्यों के लिए दलितों के भीतर सम्मान और समपर्ण की भावना और ज्यादा बढ़ी. एक छोटा सा सामाजिक सांस्कृतिक संगठन जो अपने भीम आर्मी पाठशाला के साथ अपने समुदाय के भीतर शिक्षा और जनजागरूकता के प्रयास में लगा था, जो अंबेडकर जयंती मनाकर अपने सांस्कृतिक गौरव को अपने समाज के भीतर पुनर्स्थापित करने में लगा था, जो छोटे-मोटे आयोजनों के जरिए अपने बुनियादी और लोकतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने के लिए लोगों को इकट्ठा कर रहा था, उसे जेल भेजकर सरकार ने उनके कद को और ऊंचा कर दिया था.
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5 मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप जयंती की शोभायात्रा निकालने के दौरान दलितों और ठाकुरों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. ठाकुरों ने दलितों की बस्ती में आग लगा दी थी. भीम आर्मी के सदस्यों ने इस घटना के विरोध में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का फैसला किया और 9 मई 2017 को सहारनपुर में हजारों की संख्या में इकट्ठा हो गए. पुलिस की लाठियां चली, फिर पत्थरबाजी हुई, आगजनी-तोड़फोड़ हुई और फिर मामला हाथ से निकल गया. पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर जाकर भीम आर्मी और उसके प्रमुख चंद्रशेखर रावण ने प्रदर्शन किया. इसके बाद पुलिस ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो वो फरार हो गए. नाटकीय तरीके से हिमाचल से उनकी गिरफ्तारी हुई. और जेल जाने तक वो दलितों के हीरो बन गए.
भीम आर्मी दलित युवाओं का संगठन है. जिसमें कुछ पढ़े लिखे दलित युवा संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं. मुख्य तौर पर ये संगठन दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार के मामलों पर एकजुट होकर विरोध करने का काम कर रहा है. इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल से जब मैंने बात करनी शुरू की तो वो किसी मंझे हुए आंदोलनकारी की भाषा बोल रहे थे. अपनी हर बात के बीच में बाबा अंबेडकर को आदर्श बताकर उनके सिद्धांतों पर चलने की बात कर रहे थे. हालांकि वो हर बार भीम आर्मी को एक राजनीतिक संगठन मानने से इनकार करते रहे.
मैंने भीम आर्मी से जुड़े कई एक्टिव मेंबर्स से मुलाकात की. कुछ दलित युवा थे, जो अपने समाज के साथ अपनी पहचान बनाने की खातिर संगठन से जुड़े थे. इनमें से कुछ युवा काम-धंधे के बीच में वक्त निकालकर संगठन के लिए काम कर रहे थे. कुछ गांव कस्बे की राजनीति में दखल रखने वाले युवा थे, जो अपने सामाजिक कार्यों के जरिए अपने आधार को बढ़ाना चाह रहे थे, कुछ लोग अपने समाज के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव वाली इंकलाब की भावना के साथ भी इस संगठन से जुड़े थे. मीडिया में जितनी चर्चा इस संगठन की हो रही थी, इसने युवाओं के बीच इसके लिए एक आकर्षण जरूर पैदा किया था.
मंजीत नौटियाल और उनके दो-चार साथियों के साथ ही मैंने कई दलित इलाकों का दौरा किया. कहीं पर वो दलित बस्ती में पक्की गलियों के न होने की शिकायत कर रहे थे, कहीं पीने के पानी की समस्या बनी हुई थी, कहीं सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने का संकट था और इन सबके पीछे एक वाजिब वजह ये बताई जा रही थी कि चूंकी वो दलित हैं इसलिए उनके साथ ऐसा हो रहा है. और इन सबके शिकायत निवारण के लिए सिस्टम से जूझने में भीम आर्मी के सदस्य उनका साथ दे रहे थे.
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किसी दलित लड़की के साथ छेड़खानी हुई लेकिन पुलिस वाले एफआईआर नहीं लिख रहे थे. भीम आर्मी वाले पहुंच गए तो पुलिस को मुकदमा लिखना पड़ गया. किसी दलित लड़के के साथ ऊंची जाति के लड़कों ने मारपीट कर दी, भीम आर्मी वाले अपने लड़के को बचाने वहां पहुंच गए, किसी दलित को अस्पताल वाले भर्ती नहीं ले रहे, भीम आर्मी वाले वहां पहुंच गए तो अस्पताल को झुकना पड़ा. इस तरह के काम संगठन के लोग कर रहे हैं.
मंजीत नौटियाल के साथ कार में सफर के दौरान मैंने देखा कि भीम आर्मी का एक लड़का यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा है. उस वीडियो में ये बताया जा रहा था कि अगर ट्रैफिक पुलिस आपको पकड़ ले तो आप अपने किन अधिकारों का इस्तेमाल करके पुलिस को मनमानी करने से रोक सकते हैं. पुलिस अगर किसी मामले में आपको गिरफ्तार करने पहुंचती है तो आप अपने किन संवैधानिक और कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उनकी ज्यादती से बच सकते हैं.
वीडियो में कानूनी धाराओं के नाम बताकर अधिकारों के इस्तेमाल की सहूलियत बताई जा रही थी. ऐसे वीडियो के बारे में पूछे जाने पर मंजीत नौटियाल ने बताया कि हमें हर स्तर पर सिस्टम से जूझना पड़ता है, पुलिस प्रशासन हमें तंग करती है. इसलिए ऐसे वीडियो एकदूसरे को फॉरवर्ड करके हम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करते हैं.
सहारनपुर जेल में चंद्रशेखर रावण से मिलना आसान नहीं
भीम आर्मी खुद को गैर-राजनीतिक संगठन मानती है. लेकिन जिस तरह से अन्ना आंदोलन और इंडिया अंगेस्ट करप्शन की मुहिम से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ वैसे ही दलित अधिकारों के लिए संघर्ष के नाम पर एक पार्टी का जन्म हो जाए तो हैरानी नहीं होगी. इसमें कोई शक नहीं है कि पश्चिमी यूपी के दलितों के बीच भीम आर्मी का अच्छा खासा प्रभाव है. कैराना उपचुनाव के दौरान भी मैंने उन इलाकों का दौरा किया था. दलित बीजेपी को सबक सिखाने के मूड में थे. लोगों की नाराजगी साफ झलक रही थी. चुनावी नतीजों से इसका पता भी चल गया.
सहारनपुर की ओर निकलते वक्त भीम आर्मी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नौटियाल ने कहा कि क्या आप हमें भी सहारनपुर जेल तक छोड़ देंगे. आगे का सफर हमने साथ ही किया. उन्होंने बताया कि सहारनपुर जेल में चंद्रशेखर रावण से मिलना आसान नहीं है. जेल अधिकारी मिलने के नाम पर तमाम तरह की हुज्जत करते हैं. बड़ी मुश्किल से मिलने का वक्त दिया जाता है. मंजीत नौटियाल ने बताया था कि लखऩऊ से लेकर दिल्ली तक वो वकीलों से राय मशविरा कर रहे हैं.
चंद्रशेखर रावण की रिहाई के लिए उन लोगों ने दिल्ली में फिर से आंदोलन चलाने की तैयारी भी की थी. इस बीच शब्बीरपुर हिंसा में जेल में बंद ठाकुर जाति के 3 युवकों के खिलाफ सरकार ने रासुका हटा ली थी. जबकि चंद्रशेखर रावण समेत इसी मामले में बंद बाकी दलित युवकों पर रासुका लगी हुई थी. भीम आर्मी ने इसे दलितों के लिए सरकार का नाइंसाफी वाला रवैया बताया था. इसे फैसले के खिलाफ वो विरोध प्रदर्शन की तैयारी भी कर रहे थे. अब चंद्रशेखर रावण भी रिहा हो चुके हैं. यूपी सरकार अब दलितों की नाराजगी मोल लेने का जोखिम नहीं उठा सकती. रिहा होते ही चंद्रशेखर रावण ने बीजेपी के खिलाफ बिगुल भी फूंक दिया है. चंद्रशेखर की रिहाई पर तरह तरह के विश्लेषण हो रहे हैं. देखना दिलचस्प होगा कि ये रिहाई बीएसपी की काट होगी या बीजेपी को काटने वाली साबित होगी.
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