साइकिल को लेकर चुनाव आयोग में आज साढ़े पांच घंटे तक समाजवादी पार्टी के दो गुटों के बीच चले कानूनी दंगल के बाद आयोग ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है, जो अगले 24 घंटे में घोषित हो जाएगा.
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के वकील ने चुनाव आयोग में यह कहकर अपने अखिलेश-प्रेम को ही प्रदर्शित किया कि पार्टी में कोई विवाद नहीं है, मामूली सा प्रशासनिक विवाद है जिसका समाधान पार्टी के भीतर ही निकाल लिया जाएगा.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान मुलायम सिंह यादव ने ‘मार्गदर्शक’ शब्द का जिक्र करके अखिलेश गुट के नेताअों को चकित कर दिया.
एक जनवरी को अखिलेश गुट द्वारा बुलाए गए सम्मेलन में प्रस्ताव पारित करके अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुलायम सिंह यादव को मार्गदर्शक बनाया गया था.
अखिलेश ही पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे
मुलायम सिंह यादव ने चुनाव आयोग के सामने यह भी कहा कि अखिलेश यादव ही पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे.
मुलायम गुट की तरफ से चुनाव आयोग में तर्क दिया गया कि पार्टी से निष्कासित रामगोपाल यादव द्वारा बुलाया गया 1 जनवरी का कथित राष्ट्रीय अधिवेशन पार्टी के संविधान के अनुसार नहीं था.
अधिवेशन में लिए गए निर्णयों को कानूनी आधार पर मान्य नहीं किया जा सकता है, इसलिए मुलायम सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आज भी कायम है और चुनाव चिन्ह साइकिल उनके दस्तखत से जारी होगा.
दूसरी तरफ अखिलेश गुट ने दस्तावेजी और वीडियो सबूत के माध्यम से यह सिद्ध करने की कोशिश की कि 90 प्रतिशत विधायकों, सांसदों व पार्टी नेताअों का समर्थन उन्हें प्राप्त हैं और 1 जनवरी को हुआ राष्ट्रीय अधिवेशन पार्टी संविधान के अनुसार था.
दिलचस्प बात यह थी कि मुलायम गुट ने विधायकों, सांसदों व नेताअों के शपथ-पत्र को किसी भी रूप में चुनौती नहीं दी.
इस लिहाज से देखा जाए तो मुलायम सिंह यादव ने चुनाव आयोग में चुनाव चिह्न साइकिल पर अपना औपचारिक दावा जरुर पेश किया, लेकिन यह गुंजाइश बनाए रखी कि साइकिल का चिह्न फ्रीज न हो और अखिलेश यादव को मिल जाए.
मुलायम गुट काफी कमजोर नजर आ रहा है
कानूनी तौर पर साइकिल पर मुलायम गुट का दावा काफी कमजोर नजर आता है. मुलायम अपने दावे के प्रति गंभीर नजर नहीं आए.
मुलायम व अखिलेश दोनों ही गुट यह दावा नहीं कर रहे हैं कि पार्टी में विभाजन हो गया है.
चुनाव आयोग में सबसे पहले मुलायम गुट ने पहुंचकर दावा किया था कि वे ही सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और 1 जनवरी को हुए कथित राष्ट्रीय अधिवेशन की कानूनी वैधता नहीं है, इसलिए चुनाव आयोग के सामने यह सवाल नहीं है कि कौन सा गुट असली सपा है?
पार्टी संविधान व चुनाव आयोग में पेश किए गए दस्तावेजी सबूतों के आधार पर यदि चुनाव आयोग फैसला लेता है तो अखिलेश गुट को साइकिल मिलने की संभावना दिखाई देती है, लेकिन ऐन चुनाव के मौके पर पैदा होनेवाले विवादों में अधिकतर बार चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह फ्रीज करने का ही निर्णय लेता रहा है.
अखिलेश यादव गुट ने चुनाव चिह्न फ्रीज होने की स्थिति में चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि उसे ‘मोटरसाइकिल’ का चिह्न दे दिया जाए.
मुलायम सिंह यादव ने कोई प्लान-बी नहीं बनाया है. विवाद चुनाव आयोग में पहुंचने के बाद मुलायम सिंह यादव के इस तर्क का कोई अर्थ नहीं है कि यह छोटा-सा प्रशासनिक मामला है. जिसे पार्टी के भीतर ही सुलझा लिया जाएगा.
अखिलेश गुट ने चुनाव आयोग में वैकल्पिक चुनाव चिन्ह देने का सुझाव देकर स्पष्ट कर दिया है कि यदि मुलायम गुट को साइकिल चुनाव चिह्न मिल भी जाए तब भी साथ मिलकर चुनाव लड़ने की अब कोई संभावना नहीं बची है.
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