5 राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद देश में नए सियासी समीकरण उभर रहे हैं. महागठबंधन और तीसरे मोर्चा के रेखाचित्र बन-बिगड़ रहे हैं. 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की गोलबंदी और उसके नफे-नुकसान का आकलन शुरू हो गया है.
2019 लोकसभा चुनाव में यूपी की अहमियत से सभी वाकिफ हैं, लिहाजा इस कदमताल का सबसे व्यापक असर यूपी की सियासत में दिख रहा है. बुआ-बबुआ की बढ़ती नजदीकी और उसके सियासी असर को बेअसर करने के लिए सीएम योगी ने 'जादुई ताबीज' ढूंढ ली है.
राघवेंद्र कमिटी का ब्रह्मास्त्र चलाएंगे योगी!
कैबिनेट के सूत्रों की मानें तो योगी सरकार जल्द ही रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय कमेटी की सिफारिशों पर निर्णायक कदम उठाने जा रही है. योगी सरकार ने जस्टिस राघवेंद्र कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों के तहत ओबीसी कोटे को 3 हिस्सों में बांटने की तैयारी कर ली है.
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जस्टिस राघवेंद्र कमेटी ने ओबीसी की 81 उपजातियों की पहचान की है. रिपोर्ट बताती है कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का ज्यादा लाभ सिर्फ 30 फीसदी चुनिंदा जातियां ही उठाती रही हैं. ओबीसी की बाकी 70 फीसदी जातियां अब भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं. ऐसे में ओबीसी कोटे में अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा का कोटा तय करने की सिफारिश की है. कमेटी ने ओबीसी वर्ग की जातियों को पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग में बांटकर क्रमशः सात, ग्यारह और नौ फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की है. योगी कैबिनेट लंबे चिंतन-मनन के बाद इसे लागू करने पर सहमत हो गई है.सरकार को इसमें कई सियासी फायदे और विपक्षियों पर प्रहार के अहम मौके दिख रहे हैं.
योगी सरकार अपनी मौजूद सियासी हालात से भलीभांति वाकिफ है. वह जानती है कि उसके पास न 2014 वाला आत्मविश्वास है और ना ही हिंदुत्व के एजेंडे को छोड़कर उसके पास कोई तुरुप का पत्ता, फिलहाल यूपी में काम के नाम पर वोट मांगने की स्थिति भी नहीं है. ऊपर से कोढ़ में खाज गठबंधन के दो सहयोगी अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बगावती तेवर अपनाए हुए हैं. ऐसे में योगी सरकार 'ओबीसी कोटे में कोटा' के चरखा दांव से एसपी-बीएसपी को उनके ही बनाए चक्रव्यूह में घेरने की तैयारी में है.
आरक्षण से वंचित जातियों को संकेत देकर फायदा उठाएगी बीजेपी
बीजेपी को राघवेंद्र कमेटी की सिफारिशों को लागू करने में चौतरफा फायदा दिख रहा है. एक तरफ रिपोर्ट के तथ्यों को सार्वजनिक करने से ओबीसी आरक्षण से वंचित जातियों को यह संकेत देने में सफलता मिलेगी कि पिछली एसपी-बीएसपी सरकारों ने उनके साथ छल किया. दूसरी तरफ बीजेपी इन जातियों की नजर में हितैषी साबित होगी. इसके साथ ही इस चाल से महागठबंधन के गुब्बारे की हवा सहजता से निकाली जा सकेगी.
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रिपोर्ट बताती है कि पिछली एसपी-बीएसपी सरकारों में लोहार, सोनार, धोबी और दर्जी समेत 49 जातियों को राजनीतिक रूप से शून्य प्रतिनिधित्व मिला. पिछली सरकारों में सबसे ज्यादा लाभ अहिर, कुर्मी, गुर्जर, लोध और जाट समेत 8 जातियों ने उठाया. मल्लाह, माली, कुम्हार, बढ़ई समेत 22 जातियां तो ऐसी हैं जो राजनीतिक रूप से प्रगतिशील होने के बावजूद भी पिछली दोनों सरकारों में औसत से कम प्रतिनिधित्व मिला. यही अनुपात सूबे की सरकारी नौकरियों में मिले प्रतिनिधत्व का भी है. ओबीसी कोटे में 49 जातियां तो ऐसी हैं जो सरकारी नौकरियों की बात तो दूर, समाज की मुख्यधारा में आने का इंतजार कर रही हैं.
इन सब फायदों को देखते हुए कैबिनेट और पार्टी संगठन में राघवेंद्र कमेटी की सिफारिशें लागू को लेकर आम सम्मति बन गई है. केंद्रीय नेतृत्व भी इसको लेकर हामी भर चुका है. सबसे हरी झंडी मिलने के बाद नए साल में योगी सरकार बतौर तोहफा वंचित जातियों को कोटे में कोटा का सौगात देने जा रही है. यह साफ है ओबीसी कोटे में कोटा देकर आधे जातियों को भी अगर बीजेपी अपने पाले में लाने में कामयाब हो जाती है तो यह गठबंधन की गांठ खोलने जैसा होगा. फिलहाल पिछड़ों के ध्रुवीकरण पर सभी की निगाह है जो इसके मजबूत चक्रव्यूह का निर्माण करेगा असल में वही 2019 में यूपी में सियासी सिकंदर होगी!!
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