2015 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार की शुरुआत लालू यादव ने अपने उत्तराधिकारी पुत्र तेजस्वी यादव के चुनावी क्षेत्र राघोपुर से की थी. ज्ञानी पंडितों की सलाह पर शुभ मुहुर्त की बेला में आरजेडी चीफ ने 27 सितंबर को राघोपुर के टेरसिया दियरा में अपनी गंवई स्टाइल में दहाड़ मारते हुए वोटरों को ललकारा कि ‘यह युद्ध बैकवर्ड और फॉरवर्ड के बीच है. यदुवंशियों सावधान हो जाओ, अपना वोट बंटने मत देना. यह महज चुनाव नहीं बल्कि महाभारत है.’
पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की ओजस्वी स्पीच से प्रभावित रामश्लोका यादव ने हवा में छलांग मारते हुए जोर से आवाज लगाई, ‘हमारा नेता कैसा हो? फटाक से भीड़ से कोरस गर्जन हुआ ‘लालू यादव जैसा हो’. बहरहाल, बुधवार को राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण विधेयक पर आरजेडी के मनोज झा द्वारा दिखाए गए झुनझुने को लालू यादव के मुख से निकले 2105 उसी चुनावी भाषण के विस्तार के रूप में देखना उचित होगा. चर्चा तो यहां तक चल रही है कि मनोज झा ने रांची कारागार में बंद राजद सुप्रीमो लालू यादव से विचार विमर्श के बाद ही 124वें संविधान संशोधन के विरोध में बहस की थी.
अब कोई सवाल उठा सकता है कि जेल में रहकर लालू यादव फोन पर कैसे बात कर सकते हैं? यह मनगढ़ंत चर्चा है. लेकिन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पास प्रश्न का सटीक जवाब है. हम सेक्युलर पार्टी के चीफ सीट शेयरिंग पर लालू यादव से चर्चा करने कुछ दिन पहले रांची जेल गए थे. जेल से बाहर आने के बाद मांझी ने ऑन द रिकार्ड खुलासा किया है, ‘आदरणीय लालू यादव से सामान्य बातें माबाइल पर हो जाती हैं. लेकिन असामान्य मसलों पर बातचीत करने के लिए उनसे जेल में जाकर मिलना पड़ता है.’
आखिर लालू यादव ने सवर्ण आरक्षण बिल पर ऐसा स्टैंड क्यों लिया? जबकि मीडिया में कई लेखों के अलावा अनेक बुद्धिजीवियों का ये मानना है कि सवर्ण आरक्षण का विरोध राजद को अगले लोकसभा चुनाव में नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन राजद सुप्रीमो इस सोच से कतई इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनके समर्थकों का कहना है कि 2015 विधानसभा चुनाव को फॉरवर्ड वर्सेज बैकवर्ड का रंग देकर ही लालू यादव ने अपने विधायकों की संख्या 22 से 80 कर ली थी. इसबार के महाभारत में भी इसका फायदा होगा.
पूर्व विधान पार्षद प्रेम कुमार मणि विस्तार से बताते हैं कि लालू यादव 10 साल पहले लीक से हटकर इस मुगालते में आ गए थे कि 2010 के विधानसभा चुनाव में उच्च जाति के मतदाता उनका साथ देकर नीतीश कुमार को सीएम के पद से बेदखल कर देंगे. तब लालू यादव को लग रहा था कि उच्च वर्ग के लोग नीतीश कुमार के खिलाफ हैं. उनके भरोसे पर उन्होंने चुनाव में पहली बार गरीब सवर्णों के पक्ष में बोलना शुरू किया तथा चुनाव में थोक के भाव में टिकट भी दिया. लेकिन उच्च जाति के लोगों ने नीतीश कुमार को वोट देकर उनको छलने का काम किया.
लालू यादव को इस बात का पक्का एहसास है कि नाम मात्र के उच्च जाति के लोग उनके विचार का समर्थन करते हैं. उनकी राजनीतिक बुनियाद मंडल के रथ पर बैठकर परवान चढ़ी है. वहीं दूसरी तरफ अपर कास्ट के लोग आज भी मंडल कमीशन का विरोध करते हुए नहीं अघाते हैं. वीपी सिंह को आज भी गाली देते हैं. लालू यादव आश्वस्त हैं कि सवर्ण कोटा पर लिया गया स्टैंड चुनाव में मदद करेगा क्योंकि इससे उनके पक्ष में बैकवर्ड गोलबंदी ठीक उसी प्रकार होगी जिस प्रकार 1991 लोकसभा तथा क्रमशः 1995 और 2015 विधानसभा के समय हुई थी.
बहरहाल, कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राजद से चुनाव लड़ने वाले अपर कास्ट के उम्मीदवारों मसलन पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश सिंह तथा आरजेडी के कद्दावर नेता जगदानंद सिंह को नुकसान होने की संभावना है. इन दोनों नेताओं के चुनाव क्षेत्र वैशाली और बक्सर हैं जहां राजपूत जाति की बहुत बड़ी तादात है. इस तर्क के काट में राजद के रणनीतिकार कहते हैं, ‘घूम फिर कर वहां के मतदाताओं को अपनी बिरादरी के उम्मीदवारों को वोट देना ही है.’.
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