live
S M L

कर्नाटक में सिद्धारमैया वही कर रहे हैं जो चुनाव जिताने के लिए जरूरी है

सिद्धारमैया ने राहुल के आगे अपनी शर्त रखी है तो इसलिए कि वे इस बात से आश्वस्त हैं कि कर्नाटक में उनके खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है

Updated On: Mar 08, 2018 12:42 PM IST

Ravi kant Singh

0
कर्नाटक में सिद्धारमैया वही कर रहे हैं जो चुनाव जिताने के लिए जरूरी है

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गांधी परिवार के करीबी सैम पित्रोदा और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव जनार्दन द्विवेदी को कर्नाटक से राज्यसभा भेजने पर विचार करने से मना कर दिया है. मंगलवार को दिल्ली में एक मीटिंग के दौरान सिद्धारमैया ने कहा कि राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में राज्य से 'बाहर' के व्यक्ति को कर्नाटक से राज्यसभा भेजना समझदारी नहीं होगी.

यह कोई पहला मौका नहीं है जब सिद्धारमैया ने 'वीटो' किया हो. साल भर पहले कर्नाटक कांग्रेस में बड़ा फेरबदल हुआ था तो उसके पीछे विधानसभा चुनावों की एक पूरी प्लानिंग थी. तब लिंगायत से लेकर वोक्कालिगा और दलित से लेकर अादिवासी नेताओं को कांग्रेस कमेटी में शामिल किया गया तो यह चुनावी रणनीति की ही एक कड़ी थी. मंगलवार को सिद्धारमैया ने राहुल गांधी से अगर अपने मन की बात की है, तो यह अचानक नहीं है. तैयारियां पहले से थीं, बस समझने भर का फेर है.

'आउटसाइडर' और इनसाइडर का फर्क

राज्यसभा चुनाव को लेकर सिद्धारमैया ने सैम पित्रोदा और जनार्दन द्विवेदी को 'आउटसाइडर' बताया है.  सिद्धारमैया जिसे 'आउटसाइडर' बोल रहे हैं, दरअसल वे दोनों नेता गांधी परिवार के असल 'इनसाइडर' हैं. बावजूद इसके सिद्धारमैया ने अपनी बात साफगोई से रखी है तो यह कांग्रेस अालाकमान को एक इशारा है कि कर्नाटक में उन्हीं की चलेगी न किसी और की.

ये भी पढ़ें: ईवीएम के खिलाफ 'दांडी यात्रा' कर विरोध जताएंगे पाटीदार

सिद्धारमैया ने अपनी शर्त रखी है तो इसलिए कि वे आश्वस्त हैं कि कर्नाटक में उनके खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है. लोगों में उनके खिलाफ जरा भी नाराजगी होती तो वे बेशक राहुल गांधी के आगे घुटने टेक देते.

मायावती-देवेगौड़ा से सावधान सिद्धारमैया

इस बार कांग्रेस और जनता दल सेकुलर (जेडीएस) के बीच रिश्ते कुछ बिगड़े दिख रहे हैं. सिद्धारमैया ने जेडीएस को बोल दिया है कि राज्यसभा के चौथे सीट के लिए कोई गठजोड़ नहीं होगा. कांग्रेस अपना अलग कैंडिडेट उतारेगी और जेडीएस अपना अलग. जबकि 2016 में जेडीएस के बागी विधायकों की मदद से ही कांग्रेस ने तीन सीटें झटक ली थीं.

सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो सिद्धारमैया ने अचानक जेडीएस से पल्ला झाड़ लिया? आपको भले ताज्जुब हो लेकिन इसका जवाब मायावती से जुड़ा है. इस बार मायावती की बीएसपी और जेडीएस ने गठबंधन किया है. इस 'बेमेल' गठजोड़ को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं. मायावती ने ऐसा क्यों किया जो सीधा यूपी से उठकर कर्नाटक चली गईं? इसलिए क्योंकि उन्हें कांग्रेस का दलित वोट काटना है. मायावती कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अगर अपना बहुत कुछ नहीं बना सकतीं, तो देवगौड़ा के साथ मिलकर वे कांग्रेस का बहुत कुछ बिगाड़ सकती हैं. इस बात को सिद्धारमैया ने भांप लिया है. तभी उन्होंने राहुल गांधी से साफ कर दिया है कि कर्नाटक से राज्यसभा जो भी जाए, वह या तो लिंगायत हो, या अल्पसंख्यक या फिर दलित.

दलित तो मीरा कुमार भी हैं

बात अगर किसी दलित नेता को राज्यसभा भेजने की है तो मीरा कुमार में क्या बुराई है? यह सवाल सिद्धारमैया से पूछा जाना चाहिए. कांग्रेस ने सैम पित्रोदा और जनार्दन द्विवेदी के अलावा मीरा कुमार का नाम भी आगे किया है. पर सिद्धारमैया इस पर भी राजी नहीं हैं क्योंकि उनके दिमाग में हाल में बीता राष्ट्रपति चुनाव है. रामनाथ कोविंद बनाम मीरा कुमार में कांग्रेस को तब बड़ी जलालत झेलनी पड़ी जब उसकी अच्छी-खासी मित्र पार्टियों ने भी मीरा कुमार को अपनाने से मना कर दिया. उस हार को बीते बहुत दिन नहीं हुए, फिर सिद्धारमैया मीरा कुमार पर क्यों रिस्क लें.

फोटो रॉयटर से

फोटो रॉयटर से

बहुत पहले से थी तैयारी

यह कोई पहली दफा नहीं है जब सिद्धारमैया ने कांग्रेस आलाकमान के आगे वीटो किया हो. पिछले साल जून में कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने कई बड़ी घोषणाएं की थीं. उन घोषणाओं में सिद्धारमैया की हनक साफ देखी जा सकती थी. तब कांग्रेस ने साफ बोल दिया था कि 2018 का चुनाव सिद्धारमैया के झंडे तले ही लड़ा जाएगा.

ये भी पढ़ें: जब एक विदेशी बैंक में डूब गए थे दरभंगा के जौहरी मोहसिन के अरबों रुपए

आज अगर सिद्धारमैया राहुल गांधी से कह रहे हैं कि कर्नाटक से राज्यसभा में या तो लिंगायत जाएगा या फिर दलित, तो इसकी तैयारी साल-दो-साल पहले ही शुरू हो गई थी. 2017 में जी परमेश्वर को कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष बनाए रखना और राज्य की कैबिनेट से इस्तीफा दिलवाना इसी का संकेत था. उसी वक्त सिद्धारमैया समझ गए थे कि अगले चुनाव से पहले हर जाति की गोटी पहले ही सेट करनी होगी, अन्यथा मामला हाथ से निकल जाएगा.

केएच मुनियप्पा को कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल करने की बात हो या सतीश जरकीहोली को एआईसीसी का सचिव बनाए जाने की, सबके केंद्र में कहीं न कहीं कर्नाटक चुनाव पूर्व जातिगत गणित साधने की बात है. सिद्धारमैया को पता है कि चुनाव में मुनियप्पा और जरकीहोली को कैसे भुनाना है क्योंकि मुनियप्पा जहां दलित नेता हैं तो जरकीहोली आदिवासी नेता.

ये भी पढ़ें: विचारधारा के विरोध के नाम पर अराजकता फैलाने को जायज ठहराना बंद कीजिए!

इतना ही नहीं, एस आर पाटिल को कर्नाटक कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया जाना और साथ में दिनेश गुंडूराव को रिटेन करना यह बतलाता है कि सिद्धारमैया ने अपनी रणनीति काफी पहले से तय की है. डीके शिवकुमार को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया तो उनका वोक्कालिगा समुदाय भी सिद्धारमैया व कांग्रेस के जेहन में रहा होगा. एस आर पाटिल को अध्यक्ष पद दिया गया तो इसके पीछे उनकी लिंगायत जाति भी अहम रोल निभाती नजर आई. ये कुछ संकेत हैं जो बताते हैं कि सिद्धारमैया अखाड़े में काफी पहले से हैं, जिसमें वे कोई रुकावट पसंद नहीं करते.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi