आज से पांच साल पहले अमेरिकी पत्रकार लेखक, माइक मार्कसी ने सोशलवर्करडॉटओरजी वेबसाइट पर लिखा था कि, 'राजनीति संभावनाओं की कला है, उम्मीदों का गणित है और हकीकत का अभ्यास है. फिर ये चाहे मौकापरस्त हो या मौके की नजाकत.' माइक ने इसे राजनेताओं का छिछोरापन भी करार दिया था.
इस वक्त देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, तो महाराष्ट्र में निकाय चुनाव की तैयारियां. ऐसे में हम में से बहुत से लोग राजनीति में संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं. मसलन, पंजाब में आम आदमी पार्टी के ताकतवर बनकर उभरने की संभावना.
या फिर इस संभावना की चर्चा कि शिवसेना आखिरकार बीजेपी से अपने राजनीतिक रिश्ते तोड़ लेगी. ऐसा मुंबई में चल रहे निकाय चुनावों के बाद हो सकता है. एक मराठी अखबार पुधारी ने सवालिया निशान के साथ खबर दी है कि चुनाव के बाद शिवसेना, फडनवीस सरकार से अलग हो सकती है.
सत्ता को ठोकर मारने को तैयार
तो क्या ऐसा मुमकिन है? मैं कहूंगा हां, ऐसा हो सकता है. क्योंकि शिवसेना खुद ही कहती आई है कि वो सत्ता को ठोकर मारने के लिए हमेशा तैयार है. मगर क्या ये मुमकिन है?
हमें इस सवाल का जवाब नहीं पता, क्योंकि राजनीति में जब तक कोई घटना घटित न हो, सिर्फ यही कहा जा सकता है कि ऐसा हो सकता है, या नहीं भी हो सकता.
हमने अमेरिकी पत्रकार माइक माक्रसी के जिस लेख का पहले जिक्र किया था, वो कई मामलों में बेहद दिलचस्प है. क्योंकि ये राजनीति में संभावनाओं के बारे में विस्तार से बताता है. माइक ने लिखा है, 'ये बात मैं फ्रांसिस बेकन के हवाले से कह रहा हूं- हम जो भी बात जानते हैं उसके कारण या अनुपात हमेशा एक जैसे नहीं होते. भले ही हम उस चीज के बारे में आगे चलकर और ज्यादा जानकारी जुटा लें'.
केवल अंदाजा लगा सकते
क्या हमें पता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के दिमाग में क्या चल रहा है? जो लोग खुद को उद्धव का करीबी बताते हैं, वो भी इस बारे में केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं.
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चलिए हम मराठी अखबार पुधारी की खबर पर ही आगे बढ़ते हैं. अखबार कहता है कि मुंबई में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यानी 19 फरवरी को उद्धव ठाकरे, महाराष्ट्र सरकार में अपने सभी मंत्रियों के इस्तीफे ले सकते हैं. हालांकि रिपोर्ट ये नहीं कहती कि शिवसेना सरकार से हट जाएगी.
फिर इस खबर से ही एक और शर्त निकलती है. वो ये कि अगर शिवसेना अपने सभी मंत्रियों को फड़नवीस सरकार से हटा भी लेती है, तो भी ये साफ नहीं कि शिवसेना, बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेगी या नहीं. कहने का मतलब इस राजनीति में तमाम संभावनाओं की हां और ना है. आखिर शिवसेना प्रमुख पहले सरकार से समर्थन वापस लेकर सभी मंत्रियों के इस्तीफे नहीं दिलवा देते?
मुख्यमंत्री को भेजेंगे मंत्रियों का इस्तीफा
इससे और सवाल खड़े होते हैं. अगर शिवसेना मुंबई महानगर पालिका का चुनाव जीत लेती है, तो क्या उद्धव ठाकरे, अपने मंत्रियों के इस्तीफे राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को भेजेंगे? और अगर शिवसेना चुनाव में जीत हासिल नहीं करती, तो फिर पार्टी का अगला कदम क्या होगा?
मेरे हिसाब से उद्धव का अगला कदम सिर्फ बीएमसी, ठाणे और दूसरे निकायों के चुनाव के नतीजों पर आधारित नहीं होगा. महाराष्ट्र में इस वक्त दस नगर निकायों के चुनाव हो रहे हैं. साथ ही 21 जिला परिषदों के चुनाव भी हो रहे हैं. यानि चुनाव शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी हो रहे हैं. ऐसे में किसी भी पार्टी का अगला राजनीतिक कदम सिर्फ एक निकाय के नतीजे पर तय हो, ये ठीक नहीं.
ऐसा शायद ही कभी होता है कि कोई पार्टी सिद्धांतों के लिए सरकार से हटती है. अक्सर राजनीतिक दल, सत्ता में बने रहने के लिए सिद्धांतों को सूली पर चढ़ा देते हैं. क्योंकि राजनीति तो सत्ता के लिए ही होती है. हालांकि जब राजनीतिक हालात के चलते कोई सरकार से हटता है तो इस कदम को सिद्धांतों के हवाले से ही सही ठहराने की कोशिश होती है. ऐसा जाहिर किया जाता है कि पार्टी ने सिद्धांतों के लिए सत्ता की बलि दे दी. आखिर कौन सी पार्टी है जो सत्ता की मलाई छोड़ना चाहेगी?
सरकार में शामिल होने का फैसला
यही वजह है कि 2014 के चुनाव में बीजेपी के खिलाफ लड़ने वाली शिवसेना, बार-बार विपक्ष में बैठने की बात करती रही. मगर जब नतीजे आए तो पार्टी ने सरकार में शामिल होने का फैसला कर लिया. 2014 के विधानसभा में बीजेपी को 122 सीटें मिली थीं. जबकि शिवसेना को 63. नतीजों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था.
कहने का मतलब ये है कि चुनाव के नतीजे, आगे चलकर कई संभावनाओं को जन्म देंगे. इनमें से कई विकल्प ऐसे भी होंगे, जो फिलहाल नजर नहीं आते. तब तक हमें क्या होगा और क्या नहीं होगा की चर्चा तक खुद को सीमित रखना चाहिए. या फिर अटकलें लगाते रहिए. इसमें भी काफी लुत्फ है.
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