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ममता और उद्धव की मुलाकात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

क्या शिवसेना बीजेपी से इतनी खार खाए बैठी है कि वो 2019 से पहले विरोधी खेमे में चली जाएगी?

Updated On: Nov 03, 2017 12:36 PM IST

Amitesh Amitesh

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ममता और उद्धव की मुलाकात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

राजनीति में नेताओं के बीच मुलाकात का सिलसिला तो जारी रहता है. अपने सहयोगियों के साथ भी मुलाकात कई बार सुर्खियां बटोर लेती है. लेकिन जब मुलाकात दो विपरीत ध्रुव वाले लोगों के बीच हो तो फिर इस खबर पर सबकी नजर जा टिकती है. चर्चा शुरू हो जाती है क्या कोई नई खिचड़ी पक रही है या फिर बात कुछ और है?

महाराष्ट्र को लेकर कुछ ऐसी ही चर्चा फिर शुरू हो गई है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुंबई प्रवास के दौरान  शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की मुलाकात ने कुछ इसी तरह की चर्चाओं को गर्म कर दिया है. उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे के साथ दक्षिण मुंबई के एक होटल में ममता से मुलाकात की जिसके बाद सियासी हल्कों में चर्चा हो रही है कहीं ये मोदी विरोध की राजनीति को नई धार देने की कोशिश तो नहीं.

3 सालों से बीजेपी से उखड़ी हुई है शिवसेना

ऐसी अटकलें लगना लाजिमी भी है, क्योंकि पिछले तीन सालों में बीजेपी को लेकर शिवसेना की तल्ख टिप्पणी लगातार होती रहती है. वो भी तब जब केंद्र के साथ-साथ महाराष्ट्र में भी शिवसेना बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में भागीदार है.

दरअसल, शिवसेना लगातार मोदी सरकार की नीतियों को लेकर हमलावर है. यहां तक कि जिस नोटबंदी और जीएसटी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कामयाबी के तौर पर इसे पेश करते हैं, उसी मुद्दे पर शिवसेना सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देती है. यहां तक कि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर शिवसेना और ममता बनर्जी की टीएमसी में कोई ज्यादा फर्क भी नजर नहीं आता है.

क्या सिर्फ नोटबंदी और जीएसटी पर ही बात हुई?

ममता बनर्जी के साथ मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे ने किसी तरह की राजनीतिक चर्चा से तो इनकार किया, लेकिन, इतना जरूर माना कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर हमारे विचार एक समान रहे हैं. दूसरी तरफ, ममता बनर्जी ने इस मुलाकात के दौरान नोटबंदी और जीएसटी के अलावा मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा की बात को स्वीकार किया.

Uddhav Thackeray addresses the media

बीजेपी के खिलाफ शिवसेना की बौखलाहट और बेचैनी का ही नतीजा है कि आज ममता बनर्जी से मुलाकात करने उद्धव ठाकरे को मातोश्री से बाहर जाना पड़ा.

राजनीति में संकेतों का महत्व बहुत ज्यादा होता है. मौजूदा हालात में जब ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है, इस दौरान बीजेपी की धुर-विरोधी शिवसेना अध्यक्ष की मुलाकात को मोदी विरोधी मुहिम के तौर पर भी देखा जा रहा है. कांग्रेस के अलावा 17 पार्टियों के गठबंधन की तरफ से पहले से ही 2019 में मोदी के खिलाफ लामबंदी की जा रही है.

विरोधियों को साथ लाने की कोशिश

नीतीश कुमार के विरोधियों के कुनबे से अलग होने के बाद तो विपक्षी मुहिम की हवा निकल गई थी, लेकिन, फिर कोशिश हो रही है सभी विरोधियों को साथ लाने की. ममता के साथ उद्धव की मुलाकात भविष्य की राजनीति में खलबली की तरफ इशारा करती है.

हालांकि, उद्धव ठाकरे की मुलाकात को बीजेपी पर दबाव की एक और कोशिश भी माना जा सकता है. शिवसेना पिछले तीन साल में इस तरह की कोशिश करती रही है, लेकिन बीजेपी ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया.

राजनीतिक हल्कों में इस मुलाकात के बाद संभावित लामबंदी को लेकर भी विरोधाभास की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि शिवसेना और टीएमसी दोनों की राजनीति इस वक्त बिल्कुल अलग है. शिवसेना जहां राष्ट्रवाद के नाम पर हिंदुत्व की राजनीति करती है, वहीं ममता बनर्जी की तरफ से उठाए गए हर कदम इस तरह की किसी भी राजनीति से दूरी बनाने वाले होते हैं. बीजेपी-आरएसएस के साथ ममता की कई मुद्दों पर तनातनी बंगाल की सियासत में कई बार बवाल पैदा कर देती है.

क्या मोदी विरोध के नाम पर ममता बनर्जी हिंदुत्व की पैरोकार शिवसेना के साथ से परहेज नहीं करेगी? क्या शिवसेना बीजेपी से इतनी खार खाए बैठी है कि वो 2019 से पहले विरोधी खेमे में चली जाएगी? ये चंद ऐसे सवाल हैं जो कि इन दिनों चर्चा के केंद्र में हैं. लेकिन हाल ही में शिवसेना के ‘राहुल प्रेम’ ने कांग्रेस को लेकर उसकी नरमी के संकेत देने शुरू कर दिए हैं.

हालांकि, 2019 में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है. इसके पहले शिवसेना की तरफ से दबाव की कई कोशिश की जाएगी. कई नए समीकरण बनेंगे और इस तरह की कई मुलाकातें भी होगी.

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