राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शिवसेना ने अपनी खामोशी खत्म करते हुए एनडीए उम्मीवार रामनाथ कोविंद के समर्थन करने का फैसला किया है. इससे पहले शिवसेना की तरफ से रामनाथ कोविंद के नाम का विरोध किया गया था.
शिवसेना ने बीजेपी के दलित कार्ड को लेकर सवाल खड़े किए थे. लेकिन, पार्टी की मंगलवार को हुई बैठक के बाद शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन करने का ऐलान कर दिया.
शिवसेना शुरू से ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर किसी ऐसे उम्मीदवार के समर्थन की बात कह रही थी जो हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा देने वाला हो. हिंदुत्ववादी चेहरे के तौर पर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के नाम को सबसे पहले शिवसेना ने ही उछाला था. लेकिन, खुद संघ प्रमुख ने खुद को राष्ट्रपति पद की रेस से बाहर कर लिया था.
इसके बाद मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन के नाम को शिवसेना की तरफ से पेश किया गया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुंबई के उनके आवास पर जाकर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चर्चा भी की थी और समर्थन की बात भी कही थी.
लेकिन, उस वक्त शिवसेना का रूख सकारात्मक नहीं लगा. खास तौर से शिवसेना इस बात को लेकर नाराज थी कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम प्रधानमंत्री मोदी ही तय करेंगे.
लेकिन, शिवसेना की पसंद को नामंजूर करते हुए बीजेपी ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान कर दिया. हालांकि, बीजेपी की तरफ से उद्धव ठाकरे से उसके बाद भी समर्थन की अपील की गई थी. जिसके बाद अब जाकर शिवसेना ने रामनाथ कोविंद के नाम पर अपनी सहमति जता दी है.
राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर एनडीए में दरार की आशंका खत्म
शिवसेना के इस ऐलान के बाद एनडीए में इस मुद्दे पर किसी भी तरह की दरार की आशंका अब खत्म हो गई है. बीजेपी की सभी सहयोगी पार्टियों के अलावा बीजेडी, एआईएडीएमके, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस ने भी कोविंद को समर्थन देने का फैसला किया है.
शिवसेना के ऐलान के बाद बीजेपी और रामनाथ कोविंद का पलड़ा और भारी हो गया है. खास तौर से कांग्रेस समेत उन विपक्षी दलों को झटका लगा है जो शिवसेना से समर्थन की उम्मीद पाल बैठे थे. उन्हें उम्मीद थी कि प्रतिभा पाटिल औऱ प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने वाली शिवसेना इस बार निश्चित तौर पर बीजेपी के खिलाफ जाएगी, क्योंकि हाल-फिलहाल बीजेपी के साथ उसके रिश्तों में खटास आ चुकी है.
शिवसेना की तरफ से रामनाथ कोविंद के समर्थन के ऐलान से उसकी कमजोर होती राजनीतिक ताकत का भी एहसास होता है. वरना, पहले दो मौकों पर बीजेपी के साथ अच्छे रिश्ते होने के बावजूद, बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ जाने वाली शिवसेना इस बार बीजेपी का साथ देने पर मजबूर ना होती.
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