क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत राष्ट्रपति बनेंगे. सुनने में ये अटपटा तो लग रहा है. लेकिन, कुछ इसी तरह की मांग हो रही है बीजेपी की सहयोगी शिवसेना की तरफ से.
शिवसना नेता संजय राउत ने आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत के नाम को देश के राष्ट्रपति के तौर पर उछाल कर सबको चौंका दिया है. खुद संघ को अपना प्रेरणा स्रोत मानने वाली बीजेपी भी इस बारे में न ही किसी तरह की कोई बात करती है और न ही कभी इस बारे में सोचती भी है.बीजेपी के नेता तो शायद इस बारे में सोचने से पहले भी सौ बार सोचे. अगर सोच भी लें तो बोलने की हिमाकत तक न करें. क्योंकि मामला परिवार के मुखिया का है जिस परिवार का ही एक अंग बीजेपी भी है.
लेकिन, यहां तो सीधे-सीधे नाम भी उछाल दिया गया. शिवसेना नेता संजय राउत ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को अगला राष्ट्रपति बनाने की मांग कर एक नई बहस को छेड़ दिया है. संजय राउत का कहना है कि मोहन भागवत अगर देश के अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो आगे हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है.
संघ के एजेंडे में पहले से ही इसकी अवधारणा है जिसका इजहार अलग-अलग मंचों से वक्त-वक्त पर अपने-अपने तरीके से किया जाता रहा है. लेकिन, कभी भी संघ सियासत में खुद नहीं आता. हां, इतना जरूर है कि अपने स्वयंसेवकों को सियासत में भेजकर बीजेपी के माध्यम से अपने एजेंडे पर अमल जरूर करवाता है.
संघ के स्वयंसेवक से लेकर संघ प्रचारक तक बीजेपी के भीतर सीएम से लेकर पीएम तक बने हैं. लेकिन, सीधे संघ प्रमुख को राष्ट्रपति के पद पर बैठाने की मांग तो पहली बार हो रही है.
बीजेपी के साथ लंबा वक्त गुजारने के बाद शिवसेना के साथ रिश्तों में खटास भी दिख रही है. लेकिन, इस खटास के बावजूद शिवसेना ने एक अलग लाइन लेकर राष्ट्रपति चुनाव के रोमांच को और बढ़ा दिया है.
पांच राज्यों की विधानसभा के चुनाव खत्म हो गए हैं. नई-नई सरकारें भी बन गई है. अब चर्चा योगी-योगी की हो रही है. योगी राज की शुरुआत का खुमार अभी हिंदुत्व के झंडाबरदार लोगों के माथे से उतरा भी नहीं है कि शिवसेना के शिगूफे ने माहौल में फिर से हिंदुत्व की एक नई बयार बहानी शुरू कर दी है.
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय योगी के हाथों में यूपी की कमान आ गई है. यूपी योगीमय और देश मोदीमय हो चला है. अब शिवेसना भागवतमय बनाने की कोशिश में है.
हालाकि, ये शिवसेना का इतिहास रहा है कि बीजेपी के साथ रहने के बावजूद वो राष्ट्रपति चुनाव के वक्त बीजेपी का साथ छोड़ने में तनिक भी देरी नहीं करती है. पिछली बार शिवसेना ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था तो उससे पहले प्रतिभा पाटिल को समर्थन देकर बीजेपी से अलग राह अख्तियार कर लिया था.
ये बात तब की है जब बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते मधुर रहे हैं. अब तो दोनों के बीच तलवारें खींची रहती हैं. ऐसे में संघ प्रमुख के ही नाम को आगे कर शिवसेना ने एक बड़ा दांव खेल दिया है.
प्रधानमंत्री ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा के लिए दिल्ली बुलाया है. लेकिन, उसके पहले शिवसेना के इस मास्टर स्ट्रोक ने बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
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