मरा हाथी भी नौ लाख का होता है- इस कहावत को सच होता देखना हो तमिलनाडु की राजनीति की ‘अम्मा’ कहलाने वाली जयललिता की मौत के तुरंत बाद का वक्त याद कीजिए!
उस घड़ी सवाल पूछा जा रहा था कि ‘जयललिता के बाद कौन’, कयास लगाये जा रहे थे कि पार्टी में उत्तराधिकार की लड़ाई बस छिड़ने ही वाली है और इस महाभारत के बाद शायद एआईएडीएमके का कोई नामोनिशान ना बचे.
बिना लड़े जीता उत्तराधिकार का युद्ध
लेकिन लड़ाई के छिड़ने से पहले ही फैसला हो गया. कोई तलवार नहीं खींची और चुपके से राज्यारोहण की जमीन तैयार हो गई. जयललिता की अंतिम यात्रा का एक दृश्य याद कीजिए.
चेन्नई के राजाजी हॉल में जयललिता का तिरंगे में लिपटा शव रखा है. शव के सिरहाने गमगीन खड़े लोगों का तकरीबन आधे चांद की शक्ल में एक घेरा है.
टेलीविजन के पर्दे पर साफ दिख रहा है कि इस घेरे में काले रंग की चमकदार साड़ी में खड़ी महिला जयललिता के शव के सबसे करीब खड़ी है. वह बड़े अधिकार-भाव से शव के चेहरे पर हाथ फेरती है.
यह शशिकला है- तमिलनाडु की राजनीति की पूराची थलाइवी (सुप्रीम लीडर) कहलाने वाली जयललिता की जिगरी दोस्त !
तमिलनाडु से बाहर के लोगों के लिए शशिकला की पहचान बस इतनी भर है लेकिन सूबे की सियासत पर हल्की सी भी नजर रखने वाला जानता है कि गुजरे 30 सालों में यह महिला हर बीतने दिन के साथ जयललिता के दिल में घर बनाते चली गई.
जयललिता और शशिकला में थी करीबी
नजदीकी कुछ इस हद तक बढ़ी कि चेन्नई के पोस गार्डन में कायम जयललिता के निवास ‘वेद निलयम’ की आप अपने मन में कोई भी तस्वीर बनाइए, फ्रेम में जयललिता के बगल में लगभग उन्हीं जैसे अंदाज में होठ भींचे सख्ती का सबूत देती शशिकला का चेहरा नजर आएगा.
इस घेरे में कोई भी जयललिता के परिवार का नहीं है. सब के सब शशिकला के परिवार के हैं- शशिकला के भाई स्वर्गीय जयरामन की पत्नी इलावरसी है, इलावरसी का बेटा विवेक है.
पार्टी पर सिर्फ शशिकला का हक
शशिकला के दूसरे भाई मन्नारगुडी का बॉस कहलाने वाले धीवाहरन और उसका बेटा जय आनंद है, डॉक्टर वेंकटेश और डाक्टर शिवकुमार भी हैं.
जयललिता के शव के सिरहाने शशिकला के मन्नारगुडी परिवार का हर अहम चेहरा मौजूद है.
राजाजी गार्डन में शशिकला के परिवार की यह मौजूदगी जयललिता से नजदीकी का इजहार भर नहीं थी.
यह मौजूदगी एक चुप्पा एलान थी कि जयललिता के बाद पार्टी पर किसी और का नहीं बस सिर्फ शशिकला का अख्तियार होने जा रहा है.
जयललिता के अंतिम संस्कार में शिरकत करने पहुंचे प्रधानमंत्री ने जब एआईएडीएमके खासमखास नेताओं की भीड़ में गमगीन शशिकला के सर पर हाथ रखा तो यह दरअसल इस मंजूरी का इशारा था कि केंद्र की सत्ताधारी पार्टी की नजर में शशिकला ही पार्टी की सुप्रीमो हैं.
पहली और बड़ी बाधा बिना विरोध के पार
एआईएडीएमके के इतिहास में यह दूसरी बार हुआ लेकिन इतिहास ने इस बार अपने को गलती से सबक लेते हुए दोहराया.
शशिकला को पता था कि जयललिता के अंतिम संस्कार का वक्त एआईएडीएके पर उत्तराधिकार की पहली और निर्णायक लड़ाई का भी वक्त है.
लकीर पहले से मौजूद थी और शशिकला ने इतिहास से सबक लेते हुए दांव खेला.
एमजीआर की ब्याहता जानकी रामचंद्रन की भरसक कोशिश थी कि जयललिता शव के अंतिम दर्शन ना कर सकें.
जयललिता को किया गया था बेआबरु
आज से लगभग 30 साल पहले जब एमजीआर की मौत हुई तो उनके निवास-स्थान रामावरम गार्डेन जयललिता तकरीबन बदहवासी में पहुंची थीं.
मुख्य दरवाजा बंद था, वह खटखटाने पर भी ना खुला.पता चला कि शव पीछे के दरवाजे से राजाजी हॉल ले जाया गया है.
जयललिता वहां पहुंची और शव के सिरहाने दो दिनों तक खड़ी रहीं. जानकी रामचंद्रन की सहेलियां तब उनके पैरों को कुचल रही थीं, शरीर में चिकोटी काटी जा रही थी लेकिन जयललिता अविचल खड़ी रहीं.
जयललिता ने गाड़ी पर चढ़ना चाहा तो पार्टी के एमएलए डॉ केपी रामलिंगम उनकी तरफ क्रोध में बढ़े. जानकी रामचंद्रन के भतीजे दीपन ने धक्का दिया, ललाट पर चोट मारी और जयललिता गिर पड़ीं!
बाद में बेआबरु किए जाने की यही कहानी तमिलनाडु के मतदाताओं को सुनाई गई. इस कहानी को कई तस्वीरों में उतारा गया, लोगों के घर-घर तक पहुंचाया गया.
एमजीआर की शवयात्रा से बेदखल किए जाने की कहानी को जयललिता ने अपनी चुनावी जीत की कहानी में बदल दिया.
जयललिता से नजदीकियों का शशिकला को फायदा
शशिकला ने यही किया है. एक शख्सियत के करिश्मे के भरोसे चलने वाली पार्टी के भीतर उत्तराधिकार की कोई लड़ाई पार्टी के सुप्रीमो के जीवित रहते नहीं छिड़ती. लड़ाई की घड़ी आती है पार्टी नेता के न रहने के बाद.
जयललिता की दावेदारी को चुनौती देने के लिए जानकी रामचंद्रन मौजूद थीं लेकिन जयललिता की मौत के बाद पार्टी पर शशिकला के उत्तराधिकार के दावे को चुनौती देने वाला कोई नहीं था.
जयललिता के स्वर्गीय भाई की बेटी दीपा कुमार ने कोशिश की लेकिन उस कोशिश में कोई दम नहीं था. वह बहुत दूर और देर से की गई कोशिश थी, यह कोशिश वेद निलयम के भीतर तक नहीं पहुंच सकी.
यह कहानी उन्हें जयललिता की सबसे ज्यादा विश्वासपात्र साबित कर रही थी. और शशिकला ने इस कहानी के दम पर पार्टी के भीतर से नेता पद की उभरने वाली संभावित दावेदारियों के पर कतर दिए.
आगे की राह आसान है..
शशिकला के विरुद्ध पार्टी के भीतर से विरोध की कोई आवाज उभरनी थी तो उसका वक्त बीत गया. जयललिता के अंतिम यात्रा को अब दो माह बीत चले हैं.
और इस दरम्यान पार्टी के भीतर शशिकला के कद को मजबूत करने वाली दो बड़ी घटनाएं हुई हैं.
बीते दिसंबर महीने में जब उन्हें एआईएडीएमके का महासचिव बनाया गया तब प्रस्ताव में कहा गया था कि पार्टी उन्हें फिलहाल के लिए इस पद पर नियुक्त कर रही है और आने वाले दिनों में उन्हें इस पद पर विधिवत निर्वाचित किया जाएगा.
दो माह के भीतर पार्टी महासचिव के पद पर उनकी नियुक्ति को किसी तरफ से चुनौती नहीं मिली है.
दूसरे, पार्टी ने जिस तरह से उन्हें विधायक दल का नेता मनोनीत किया वह भी अपने आप में पार्टी के भीतर शशिकला के कद की बढ़ती ऊंचाई का एलान है.
नाम के प्रस्ताव पर 134 विधायकों के दस्तखत और चंद मिनटों के भीतर पन्नीरसेल्वम का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा शशिकला के प्रति उनकी निष्ठा की मुनादी कर रहे थे. सहयोगियों पार्टियों की तरफ से भी रजामंदी जाहिर की गई.
इस भरे-पूरे समर्थन के बीच शशिकला ने अपने चार मिनट के भाषण में बिल्कुल वही कहा जो उन्हें कहना चाहिए था. शशिकला ने कहा विरोधी हमारी पार्टी को दो फाड़ होना देखना चाहते थे लेकिन विधायकों की एकता ने विरोधियों के सपने को चकनाचूर कर दिया है.
शशिकला के आगे सबसे बड़ी चुनौती..
सूबे के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठने के बाद शशिकला की सबसे बड़ी चुनौती यह नहीं कि उन्हें नियम के मुताबिक छह माह के भीतर किसी सीट से चुनाव लड़कर दिखाना होगा और क्या यह सीट आरके नगर (चेन्नई) वाली होगी जहां से जयललिता चुनाव जीती थीं?
तमिलनाडु में फिलहाल यही एक सीट खाली है और इस सीट से चुनाव जीतना शशिकला के लिए नाक का सवाल भी है. इस सीट से जीत से इस दावे को और बल मिलेगा कि वही जयललिता की सियासत की एकमात्र उत्तराधिकारी हैं.
लेकिन शशिकला के लिए सीटों की कमी नहीं है. पार्टी के महासचिव बनने के तुरंत बाद एआईएडीएमके के नार्थ चेन्नई डिस्ट्रिक्ट यूनिट के सचिव पी वेटरीवेल यह गुजारिश दोहरा चुके हैं कि शशिकला उनके पेराम्बूर वाली सीट से चुनाव लड़ें.
बेशक स्थानीय निकायों के चुनाव में पार्टी को जीत हासिल होती है तो शशिकला की पकड़ और ज्यादा मजबूत होगी लेकिन हार की सूरत में पार्टी के बंटने का खतरा नहीं है क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति (पन्नीरसेल्वम) खुद ही उनके नाम का प्रस्ताव कर चुका है और पार्टी के प्रति उसकी निष्ठा असंदिग्ध है.
नेता के लिए पद छोड़ने की उसकी रीत को देखकर अब उन्हें तमिलनाडु की राजनीति में ‘ओकेजनल पॉवर सप्लाई’ (पन्नीरसेल्वम के नाम के संक्षेपाक्षर ओपीएस के आधार पर) कहा जाने लगा है.
शशिकला के आगे निश्चय ही यह प्रश्न है कि कोर्ट में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का केस खुल सकता है लेकिन वो जानती हैं कि पहले की तर्ज पर इस केस को आगे के अनेक सालों के लिए लटकाया भी जा सकता है.
मुख्य चुनौती रणनीतिक नहीं
शशिकला के आगे मुख्य चुनौती रणनीतिक नहीं है. उनके आगे सबसे बड़ी चुनौती छवि गढ़ने की है. आने वाले वक्त में तमिल जनता यह देखेगी कि वे ‘अम्मा’ की राजनीति की लकीर पर चल पाती हैं या नहीं.
यह राजनीति महिलाओं और गरीब तबकों के सशक्तीकरण की है. बोलचाल की भाषा में इसे लोक-लुभावनी राजनीति कहा जाता है.
लेकिन यह सच है कि मंगलसूत्र और मिक्सी ही नहीं, दवा, पानी और ईडली तक सब्सिडी पर देकर जयललिता ने तमिलनाडु की महिलाओं के दिल में अपने लिए जगह बनायी थी.
और शशिकला की असली चुनौती अपने को जयललिता की इस छवि की सबसे प्रामाणिक छाया के रुप में दिखाने की होगी.
यह एक कठिन काम है क्योंकि राज्य का राजस्व घाटा फिलहाल 15 हजार करोड़ से ज्यादा का है.
राज्य के राजस्व की मौजूदा वृद्धि दर छह माह पहले तक तकरीबन 5 फीसदी के आसपास थी और जीएसटी पर अमल, नोटबंदी तथा भयावह सूखे के बीच पैदा आर्थिक कड़की के माहौल में लोक-लुभावनी राजनीति पर चलना शशिकला के लिए आसान नहीं होने वाला.
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