वरिष्ठ पत्रकार और जेडीयू से राज्यसभा सांसद हरिवंश उच्च सदन के गिरते महत्व से चिंतित हैं. इसे लेकर उन्होंने अपने मन की व्यथा फ़र्स्टपोस्ट हिंदी के साथ साझा की है. उनके बयां किए दर्द आप भी पढ़िए.
- पूर्व सदस्यों और सभापतियों के ज्ञान और जानकारी से परिपूर्ण अद्भुत हस्तक्षेप और बहसों ने सदन के शुरुआती दिनों में गहरा असर छोड़ा था. संसद की वैचारिक बहसों ने हम में से बहुत से लोगों को देश के लिए सपने देखने और उन मूल्यों की खातिर खड़े होने को प्रेरित किया, जिनसे आजाद भारत को आकार मिला.
- नियमित अवरोध, अव्यवस्था और तेज आवाज में नारेबाजी के कारण सदन पूरी तरह शोरशराबे की नजर हो गया है. लगातार हंगामे और शोरशराबे के कारण सदन की कार्यवाही रोक दी जाती है और दुख की बात है कि लगातार ऐसा हो रहा है. मैं खुद से पूछता हूं कि जनता, राज्यों और राष्ट्र की वास्तविक शिकायतों से निपटने के लिए क्या हमारे पास यही इकलौता रास्ता बचा है?
- संविधान सभा की बहसों में राज्यसभा की कल्पना एक ऐसे सदन के रूप में की गई थी, जहां तार्किक चिंतन और मूल्यांकन होगा और यह सदन आम जनजीवन से जुड़ी साधारण और रोजमर्रा की नियमित गतिविधियों से अलग होगा.
- संविधान सभा के कई सदस्य दूसरे सदन के पक्ष में थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इस राज्यसभा के विद्वान सदस्य लोकसभा की संकीर्ण और सीमित राजनीतिक सीमाओं से ऊपर होंगे. राज्यसभा के ये माननीय सदस्य कानूनों को अधिक निष्पक्षता के साथ परख सकेंगे और इस तरह कानून बनाने की पूरी प्रक्रिया की गुणवत्ता को बढ़ाएंगे.
- यह स्थिति ठीक नहीं है क्योंकि यह जनादेश के सिद्धांत मुताबिक नहीं है. यह सिद्धांत एक निश्चिति समय पर जीतने वाले बहुमत को उस जनादेश के अनुसार कानून बनाने का बेरोकटोक अधिकार देता है. इस तरह ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी का बहुमत होना नियम के विरुद्ध प्रावधान है. इसका यह भी खतरा है कि ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी अपने बहुमत का इस्तेमाल उस समय की सरकार को परेशान करने के लिए कर सकती है.
- दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के निर्माता के रूप में हमारे महान नेताओं ने हमें सिखाया है कि विरोध और असहमति लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों में शामिल हैं. लेकिन विरोध और असहमति के होते हुए भी संवाद बहुत जरूरी है, वरना, व्यवस्था में लोगों का भरोसा आसानी से खत्म हो सकता है.
- हमें गहराई से सोचना होगा और इसका समाधान निकालना होगा. ऐसा लगता है कि पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. यहां तक कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर रेलवे की डांवाडोल वित्तीय हालत पर भी चर्चा करने की जरूरत है.
- कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह स्थिति ठीक नहीं है क्योंकि यह जनादेश के सिद्धांत मुताबिक नहीं है. यह सिद्धांत एक निश्चिति समय पर जीतने वाले बहुमत को उस जनादेश के अनुसार कानून बनाने का बेरोकटोक अधिकार देता है. इस तरह ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी का बहुमत होना नियम के विरुद्ध प्रावधान है. इसका यह भी खतरा है कि ऊपरी सदन में विपक्षी पार्टी अपने बहुमत का इस्तेमाल उस समय की सरकार को परेशान करने के लिए कर सकती है.
- मेरी राय में, राज्यसभा में जीएसटी बिल पर बहस अब तक की सबसे अच्छी बहसों में से एक रही है. यह बहस शालीनता और ज्ञान से भरी थी. इसमें सदस्यों ने संकीर्ण दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हिस्सा लिया था और उनका ध्यान देश के हित और भविष्य पर था.