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बिहार में सीट बंटवारे की चर्चा: रामविलास पासवान का मूड क्या है ?

बीजेपी-जेडीयू-आरएलएसपी और एलजेपी. जी हां एलजेपी भी है इस गठबंधन में.. गठबंधन में तो है लेकिन है कहां. सीटों को लेकर तमाम बयानबाजियां हो रही हैं लेकिन एलजेपी इससे गायब है

Updated On: Aug 31, 2018 10:16 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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बिहार में सीट बंटवारे की चर्चा: रामविलास पासवान का मूड क्या है ?

बिहार में बवाल मचा है. बीजेपी को इतनी सीटें मिलेंगी. जेडीयू को मनाने के लिए इतनी सीट तो देना ही पड़ेगा. आरएलएसपी है तो छोटी पार्टी लेकिन नाक में दम किए हुए है. ये पर मानने को तैयार नहीं. चहुं दिशाओं में ध्वज पताका लहरा रही बीजेपी कैसे कम सीटों पर संतोष कर ले. तो कुल मिलाकर 20-20 से लेकर जितने फॉर्मूले सामने आ जाएं. बिहार में एनडीए में सीटों का बंटवारा आसान नहीं है.

बीजेपी-जेडीयू-आरएलएसपी और एलजेपी. जी हां एलजेपी भी है इस गठबंधन में.. गठबंधन में तो है लेकिन है कहां. सीटों को लेकर तमाम बयानबाजियां हो रही हैं लेकिन एलजेपी इससे गायब है. अपने लिए ज्यादा सीटों के लिए जेडीयू से लेकर आरएलएसपी जोर लगाए है लेकिन एलजेपी गायब है.

पटना से लेकर दिल्ली तक सीट समीकरण का पेंच को पुराने से लेकर नए दिमाग वाले नेता उलझाए दे रहे हैं लेकिन एलजेपी को इससे मतलब नहीं है. सवाल है कि एलजेपी को मतलब क्यों नहीं है. किस बात का इंतजार कर रही है एलजेपी. किस मूड को भांपने की कोशिश कर रही है एलजेपी. मौसम वैज्ञानिक का तमगा हासिल किए नेताजी राजनीतिक बादलों को पढ़ नहीं पा रहे हैं कि जमकर ओले, आंधी और बारिश हो जाने का इंतजार कर रहे हैं. ताकि इत्मिनान से साफ मौसम में आगे की रणनीति बनाई जा सके.

चिराग बोले सीटों का फॉर्मूला अफवाह

एनडीए में रहते हुए भी एलजेपी ने खामोशी ओढ़े हुए है. गुरुवार को जब सीटों का बवाल हद से ज्यादा पार करके इस बात तक आ पहुंचा कि बीजेपी ने 20-20 का फॉर्मूला सुझा दिया है. इस फॉर्मूले के मुताबिक बीजेपी 20, जेडीयू 12, एलजेपी 5 और आरएलएसपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, तब जाकर एलजेपी की तरफ से चिराग पासवान बोले. चिराग बोले कि सीटों का फॉर्मूला अफवाह है और अभी इस बारे में कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है.

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एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान ने सीटों के बंटवारे का मसला अपने बेटे चिराग पर भी छोड़ रखा है. वो कहते हैं कि बीजेपी से सीटों के बंटवारे को लेकर चिराग ही बात करेंगे. और इधर वो फॉर्मूले को अफवाह बताकर किसी संभावना को भी खारिज कर देते हैं. इसी रवैये की वजह से लोग एलजेपी को फिर से शक की निगाह से देखने लगे हैं कि कहीं आखिरी वक्त तक रामविलास पासवान इंतजार करके फिर से चकमा देने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं.

Paswan at press conference

रामविलास पासवान अपने समुदाय के बीच शर्मिंदा होने से रह गए

ये बात ऐसी ही नहीं कही जा रही है. पिछले कई मौकों पर वो एनडीए में रहते हुए भी दलित मसलों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. एससी एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार को अल्टिमेटम दे रखा था. चिराग ने बाकायदा पीएम मोदी को चिट्ठी लिख डाली थी कि अगर मॉनसून सत्र में एससी एसटी को अपने पुराने स्वरूप में लाने वाला बिल पास नहीं हुआ तो वो सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

रामविलास पासवान ने एनडीए के दलित सांसदों से मुलाकात कर ली. इन्होंने एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का फैसला देने वाले जज एके गोयल की रिटायन होने के बाद एनजीटी के चेयरमैन के बतौर नियुक्ति का भी विरोध किया था. रामविलास पासवान ने भी मीडिया से मुलाकात कर कहा था कि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी का चेयरमैन बनाए जाने से गलत संदेश गया है. ये तो अच्छा रहा कि सरकार संसद में बिल पास करवाने में कामयाब रही. और रामविलास पासवान अपने समुदाय के बीच शर्मिंदा होने से रह गए.

लेकिन इसके बाद भी रामविलास पासवान मान ही गए हों. इस बात में सबको शक लग रहा है. आखिरी वक्त पर उनका मूड बदल जाए तो किसी को हैरानी नहीं होगी. क्योंकि इसी कलाबाजी के बूते सरकारें बदलती रही और वो मंत्री बनते रहे.

NITISH-PASWAN

एलजेपी खुलकर अपने पत्ते नहीं खोल रही

वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह और अब मोदी सरकार में बने हुए हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी ने चुनाव से ऐन पहले एनडीए के साथ हो लिए थे. कहा जाता है कि पापा को बेटे चिराग ने समझाया था कि सही राजनीतिक फैसला यही है कि इस वक्त बीजेपी के साथ हो लिया जाए. मोदी की आंधी को पिता से ज्यादा बेटे चिराग ने भांप लिया था. अब एक बार फिर से भांपने का दौर है. इसलिए एलजेपी खुलकर अपने पत्ते नहीं खोल रही है.

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बिहार में रामविलास पासवान दलितों के बड़े नेता हैं. पांच फीसदी वोटों पर उनका प्रभाव है. लेकिन मुश्किल ये है कि अकेले वो कुछ कर नहीं सकते. इसलिए उन्हें हर वक्त एक मजबूत साझीदार की जरूरत रहती है. वो साझीदार जो थोड़ा उऩसे फायदा लेकर उन्हें सत्ता में भागीदार बनाने का बड़ा फायदा दे जाए.

2014 के चुनाव में एलजेपी 7 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें 6 पर उसे कामयाबी मिली. एलजेपी को 6.40 फीसदी वोट शेयर हासिल हुए थे. कोई शक नहीं है कि इसमें मोदी लहर का भी हाथ था. इसलिए इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अब भी वैसा ही मोदी लहर है या नहीं? पासवान शायद अभी इसी बात का अंदेशा लगाने में लगे हैं.

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