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SC/ST ACT: संसद में बिल लाकर दलितों की नाराजगी दूर करना बीजेपी की मजबूरी है

एससी एसटी एक्ट को लेकर बिल लाना सरकार की मजबूरी है, 2019 के पहले दलितों की नाराजगी दूर करना बीजेपी के लिए जरूरी है

Updated On: Aug 01, 2018 06:40 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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SC/ST ACT: संसद में बिल लाकर दलितों की नाराजगी दूर करना बीजेपी की मजबूरी है

केंद्र सरकार को एससी एसटी एक्ट पर संसद में बिल लाने का फैसला लेना ही पड़ा. बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एससी एसटी एक्ट को अपने पुराने फॉर्म में लाने वाले बिल को संसद में लेकर आने की सहमति जता दी. दलित संगठनों और सरकार के भीतर ही दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की ओर से लगातार मांग उठ रही थी कि एससी एसटी एक्ट को उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए सरकार बिल लेकर आए. दलित संगठनों ने ऐसा न होने की सूरत में 9 अगस्त को भारत बंद का आह्वान कर रखा था.

फौरी तौर पर सरकार ने दलित संगठनों को ये संकेत दे दिए हैं कि उनकी मांगों को गंभीरता से लिया जा रहा है. अब दलित संगठनों को विचार करना है कि इस मुद्दे पर वो क्या रुख तय करते हैं. फिलहाल केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एससी एसटी एक्ट को अपने मूल स्वरूप में लाने की हामी भरी है. जबकि दलित संगठनों की मांग है कि सरकार किसी भी सूरत में संसद में एससी एसटी एक्ट को अपने मूल स्वरूप में लाए जाने का बिल लेकर आए और 9 अगस्त से पहले बिल संसद से पास करवाकर कानून बना दिया जाए.

अब इसमें देखना यह है कि क्या सरकार इतनी तेजी दिखाएगी? दलित संगठनों ने सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है कि अगर 9 अगस्त तक एससी एसटी एक्ट को पुराने स्वरूप में लाने वाला कानून नहीं बना तो वो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. महाराष्ट्र में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय सड़कों पर है. वो अपने लिए सरकारी नौकरियों और स्कूल-कॉलेज में 16 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं. महाराष्ट्र के कई हिस्सों से हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन की खबरें आई हैं.

9 अगस्त के पहले सरकार को झुकना पड़ा

मराठा क्रांति मोर्चा नाम के जिस संगठन की अगुआई में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर छोटे-छोटे संगठन एकजुट हैं, उसने पहले ही ऐलान कर रखा है कि वो  9 अगस्त को बड़ा विरोध प्रदर्शन करने वाले हैं. पिछले दिनों पुणे, औरंगाबाद से लेकर ठाणे तक में जिस तरह के विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें आई हैं. उसके लिहाज से देखें तो 9 अगस्त को हालात हाथ से बाहर भी निकल सकते हैं. 9 अगस्त को एकसाथ दो बड़े विरोध प्रदर्शन की तैयारी थी. एससी एसटी एक्ट को लेकर दलितों का विरोध और मराठा आरक्षण को लेकर मराठाओं का बंद.

केंद्र सरकार ने एससी एसटी एक्ट पर बिल लाने की हामी भरकर एक बड़े विरोध प्रदर्शन की संभावना को खत्म कर दिया है. हालांकि अब भी ये देखना होगा कि सरकार के इस फैसले को दलित संगठन किस तरह से देखते हैं?

नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की मांग को मंगलवार से शुरू हुआ मराठा क्रांति मोर्चा का आंदोलन बुधवार को भी जारी है. इसमें मराठा मोर्चा ने मुंबई बंद का ऐलान किया है

मराठा आरक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन

मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने 20 मार्च के अपने फैसले में एससी एसटी के कुछ कड़े प्रावधानों में छूट दी थी. बेंच ने अपने फैसले में एक्ट में दर्ज हुए मुकदमों में अग्रिम जमानत लेने का प्रावधान कर दिया था. साथ ही एक्ट में मुकदमा दर्ज होने से पहले प्राथमिक जांच किए जाने का प्रावधान भी जोड़ा था.

दो जजों की बेंच ने माना था कि सख्त प्रावधानों की वजह से एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है. लोग व्यक्तिगत और राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए इस एक्ट का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. इस जजमेंट का दलित नेताओं और संगठनों ने विरोध किया. कहा गया कि अग्रिम जमानत और मुकदमा दर्ज करने से पहले जांच का प्रावधान जोड़कर इस एक्ट को कमजोर कर दिया गया है. यह दलित विरोधी फैसला है. इस फैसले का देशभर में विरोध हुआ.

दलित संगठन सड़कों पर उतरे. केंद्र सरकार को विरोध की आंच में झुलसना पड़ा. अप्रैल में देशभर में हुए दलित आंदोलन में कई इलाकों में हिंसा हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हुए दलित समाज केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी जता रहा था. केंद्र सरकार और बीजेपी को दलित विरोधी बताया जा रहा था.

एनडीए के दलित चेहरे मुश्किल में फंसे थे

पिछले दिनों सरकार की सहयोगी दलित पार्टियों और उनके नेतृत्व की तरफ से लगातार मांग उठ रही थी कि सरकार को इस एक्ट को लेकर बिल लाना चाहिए. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और उनकी पार्टी एलजेपी ने ये मांग रखी थी. उसके बाद एनडीए की सहयोगी दल के दलित नेता रामदास अठावले की तरफ से भी यही मांग उठी. बीजेपी के दलित सांसद उदित राज ने भी इसी मांग को सामने रखकर अपनी ही सरकार से सवाल पूछे थे.

अब जबकि संसद में बिल लाए जाने का फैसला हो चुका है इसे किस नजर से देखा जाए. दलित चिंतक प्रोफेसर बद्रीनारायण कहते हैं कि ‘ये जन दवाब की वजह से हुआ है. अगर सरकार संसद में बिल लेकर आ जाती है तो बिल पास होकर रहेगा. कोई इसका विरोध करने वाला नहीं है. फिर ये अपने मूलस्वरुप में आ जाएगा. कोर्ट के फेरबदल का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.’

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एससी एसटी एक्ट में फेरबदल को लेकर विरोध प्रदर्शन

दलित मुद्दों पर सरकार को विपक्ष के साथ अपने ही सहयोगी दलों से विरोध का सामना करना पड़ रहा था. अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के साथ मजबूती से खड़े रहने वाले एलजेपी के रामविलास पासवान बहुमत साबित करने के दो दिन बाद ही सरकार से नाराज हो गए थे. रामविलास पासवान के बेटे और एलजेपी सांसद चिराग पासवान ने पीएम मोदी को बाकायदा चिट्ठी लिखी.

उन्होंने सरकार से एससी एसटी एक्ट में बदलाव वाला बिल लाने की मांग की थी. साथ ही एक्ट में छूट देने का फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके गोयल की एनजीटी चेयरमैन के बतौर नियुक्ति पर विरोध जताया था. रामविलास पासवान ने भी मीडिया से मुलाकात कर कहा था कि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को एनजीटी का चेयरमैन बनाए जाने से गलत संदेश गया है. इस बारे में एनडीए के कई दलित सांसदों ने चिंता जताई है.

जस्टिस एके गोयल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के उस बेंच में शामिल थे, जिसने एससी एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर फैसला दिया था. जस्टिस एके गोयल के साथ इस बेंच में जस्टिस यूयू ललित शामिल थे. एससी-एसटी एक्ट में फेरबदल का फैसला सुनाने वाले जस्टिस एके गोयल 6 जुलाई को रिटायर हो गए. ठीक रिटायरमेंट के दिन सरकार ने उन्हें एनजीटी का चेयरमैन नियुक्त कर दिया.

एनडीए की सहयोगी पार्टी एलजेपी अब तक केंद्र सरकार की इस नियुक्ति का विरोध कर रही है. अब मंत्रिमंडल के एससी एसटी एक्ट को उसके मूलस्वरूप में लाने वाले बिल को लाए जाने के फैसले से एलजेपी जैसी पार्टियों की नाराजगी थोड़ी तो दूर होगी.

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दलित के घर भोजन करते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह

क्या बीजेपी के लिए दलितों की नाराजगी दूर होगी?

इसके साथ ही एक सवाल ये भी है कि क्या इस फैसले के बाद अब बीजेपी के ऊपर दलित विरोधी होने का आरोप लगता है, तो क्या लोगों की सोच में भी बदलाव आएगा. दलित चिंतक बद्री नारायण कहते हैं कि ये कहा जा सकता है कि मंत्रिमंडल के इस फैसले के बाद बीजेपी का दलित विरोधी रवैया थोड़ा डायलूट होगा. दाग का पूरा खत्म होना तो मुश्किल है. क्योंकि लोग कहेंगे कि आपके ऊपर प्रेशर था, इसलिए आपलोग बिल लेकर आए. जन दवाब में आकर आपने ये फैसला लिया है. लेकिन इतना जरूर है कि दलितों की नाराजगी थोड़ी तो कम होगी.

एनडीए की सहयोगी दलित पार्टियों को भी जनता के सामने आने में आसानी होगी. एससी एसटी एक्ट में बदलाव के बाद भी सत्ता में भागीदार रहने को लेकर उनकी नीयत पर सवाल उठाए जा रहे थे. रामविलास पासवान, रामदास अठावले और उदित राज जैसे दलित नेतृत्व को अपनी ही सरकार के दलित मुद्दों पर बचाव करना मुश्किल पड़ रहा था. अब वो खुलकर दलित समुदाय के भीतर सरकार का पक्ष रख सकते हैं. एससी एसटी एक्ट को लेकर बिल लाना सरकार की मजबूरी है. 2019 के पहले दलितों की नाराजगी दूर करना बीजेपी के लिए जरूरी है.

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