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पुण्यतिथि विशेष: क्या इमरजेंसी से पहले सेना-पुलिस को भड़का रहे थे जेपी

खुद जेपी तथा कई अन्य लोग सेना-पुलिस को भड़काने के आरोप को लगातार गलत बताते रहे

Updated On: Oct 09, 2017 12:00 PM IST

Surendra Kishore Surendra Kishore
वरिष्ठ पत्रकार

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पुण्यतिथि विशेष: क्या इमरजेंसी से पहले सेना-पुलिस को भड़का रहे थे जेपी

क्या इस देश की सेना और पुलिस को भड़काने का सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण पर 1975 में लगा आरोप सही था? तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस आरोप को सही बताया था. उन्होंने इस आरोप को देश में इमरजेंसी लगाने का एक मुख्य कारण भी बताया था. 25 जून 1975 की रात में आपातकाल लागू किया गया.

जेपी सहित देश के करीब सवा लाख प्रतिपक्ष के नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. कई पत्रकार भी गिरफ्तार किए गए थे. सरकार ने प्रेस पर कठोर सेंसरशिप लगा दी थी. पर 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में वही जनता पार्टी सत्ता में आ गई जिसको जेपी की प्रेरणा से हाल ही में बनाया गया था.

खुद जेपी तथा अन्य कई लोग सेना-पुलिस को भड़काने के आरोप को लगातार गलत बताते रहे. इंदिरा गांधी ने जेपी आंदोलन में शामिल दलों पर तो यह भी आरोप लगाया था कि ये सांप्रदायिक भावना उभारने वाले और देश की एकता भंग करने वाले लोग हैं.

सिर्फ उन्नीस महीने बाद वही लोग यानी जनता पार्टी के नेतागण जब सत्ता में आ गए तो पता चला कि न तो वे सांप्रदायिक भावना उभारने वाले लोग थे और न देश की एकता भंग करने वालों में शामिल थे. मगर अपनी तानाशाही का बचाव करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लगातार ऐसे आरोप लगाती रहीं.

इंदिरा जी ने खुफियागिरी की जिम्मेदारी आर.एन. काव को सौंपी थी

IndiraGandhi

जहां तक सैनिकों को भड़काने का आरोप है, उसके बारे में समकालीन पत्रकार प्रभाष जोशी ने लिखा है, ‘सेना और पुलिस के लिए जेपी को चेतावनी इसीलिए जारी करनी पड़ी थी क्योंकि इंदिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी पसंद के मुख्य न्यायाधीश ए.एन.राय को बैठाने के बाद जनरल टी.एन.रैना को सेनापति बनाया था जो कश्मीरी थे और उनके नजदीकी माने जाते थे.

इंदिरा जी ने खुफियागिरी की जिम्मेदारी आर.एन. काव को सौंपी थी जो कश्मीरी तो थे ही इंदिरा जी के वफादार भी थे. बीएसएफ उन्होंने अश्विनी कुमार को सौंपी थी जिन पर उनका विश्वास था. इन नियुक्तियों के साथ ही दिल्ली के सरकारी और राजनीतिक हलकों में उन उपायों की भी बात होती रहती थी जो बिहार आंदोलन से निपटने के लिए इंदिरा गांधी अपना सकती थी.

इनमें एक उपाय जिस पर सरकारी मशीनरी में काम हो रहा था, सेना के इस्तेमाल का भी था. इस आशंका का सामना करने के लिए लोगों को सावधान करने और पुलिस और सेना को अपने कर्तव्य की याद दिलाने लिए जेपी खुले तौर पर सार्वजनिक सभाओं में ऐसा कहते थे. वे कोई षड्यंत्र नहीं रच रहे थे न ही सेना और पुलिस को बगावत के लिए भड़का रहे थे. वे एक आशंका से लोगों को खबरदार कर रहे थे.’

जेपी ने कहा था सेना को आर्मी एक्ट के अनुसार ही काम करना चाहिए

जेपी ने मुख्यतः यही कहा था कि सेना को आर्मी एक्ट के अनुसार ही काम करना चाहिए. क्या कानून के अनुसार काम करने के लिए किसी से कहना, उसे भड़काना हुआ? पर इतने बडे़ आरोप के बिना इंदिरा जी के लिए शायद इमरजेंसी लगाना शायद संभव नहीं था.

इमरजेंसी लागू होने से कुछ ही घंटे पहले 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान की सभा में जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि ‘जब ये लोग देशभक्ति के नाम पर, लोकतंत्र के नाम पर, कानून के नाम पर जो भी हुक्म दें, और उसका आप पालन करें तो यह पालन है या उसका अपमान है? यह सोचने के लिए मैं बार-बार चेतावनी देता रहा हूं. सेना को यह सोचना है कि जो आदेश मिलते हैं, उनका पालन करना चाहिए कि नहीं?

देश की सेना के लिए आर्मी एक्ट है. उसमें लिखा हुआ है कि भारत के लोकतंत्र की रक्षा करना उसका कर्त्तव्य है. लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करने का उसका कर्त्तव्य है. हमारा कांस्टीट्यूशन डेमोक्रेटिक है और इसलिए कह रहा हूं कि लोकतंत्र की रक्षा उसका कर्त्तव्य है. और यह प्रधानमंत्री उसे आदेश दे तो उसके पीछे कौन सी ताकत होगी? जिस प्रधानमंत्री के हाथ-पैर इतने बंधे हों जो पार्लियामेंट में तो बैठ सकती हों, पर वोट नहीं दे सकती हों, उनके आदेश?’

उससे पहले ‘एवरीमेंस’ नामक साप्ताहिक पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में जेपी ने कहा था कि ‘पुलिस को यह बताना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूं कि मैं उसे बगावत करने को नहीं कह रहा हूं. उन्हें अपना कर्त्तव्य करना चाहिए. लेकिन उन्हें ऐसे आदेशों का पालन नहीं करना चाहिए जो गैर कानूनी हों और जिन्हें उनकी आत्मा न मानती हों.’

इंमरजेंसी के लिए इंदिरा गांधी ने तरह-तरह के बहाने निकाले

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याद रहे कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रायबरेली से इंदिरा गांधी का लोकसभा चुनाव रद्द कर दिया था. उन पर चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाने के आरोप अदालत में साबित हो गए थे. सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई तत्काल राहत नहीं मिली थी. यदि आपातकाल लगाकर चुनाव कानून नहीं बदला जाता तो इंदिरा गांधी को अंततः पद छोड़ना ही पड़ता.

इसलिए उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया. करीब सवा लाख राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया. पूरे देश को एक खुला कारागार बना दिया गया था. वह अपनी पार्टी के किसी अन्य नेता को प्रधानमंत्री बना कर अपनी कानूनी समस्या के निपटारे में लग सकती थीं. पर उन्हें किसी अन्य नेता पर भरोसा नहीं था.

इसलिए इमरजेंसी के लिए उन्होंने तरह-तरह के बहाने ढूंढे. 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह पराजित करके आम लोगों ने यह बता दिया कि इमरजेंसी लगाने का आधार गलत था.

पर याद रहे कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाने के बाद देश को यह संदेश दिया कि ‘मुझे विश्वास है कि आप सभी गहरे और व्यापक षड्यंत्र से अवगत होंगे जो उस समय से रचा जा रहा है जब मैंने भारत के जन साधारण के लाभ के लिए कुछ प्रगतिशील उपाय करने शुरू किए.

विघटनकारी तत्व पूर्ण रुप से सक्रिय हैं और सांप्रदायिक भावना उभारी जा रही है जिससे हमारी एकता को खतरा है. कुछ लोग सैनिकों और पुलिस को विद्रोह करने के लिए उकसाने लगे हैं.’

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