एक आरटीआई के जरिए खुलासा हुआ है कि सपा शासन के दौरान यूपी में कुल गौशाला ग्रांट का 86.4 फीसद हिस्सा मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव के एनजीओ को दे दिया गया.
इस खबर के मीडिया में आते ही अपर्णा यादव ने जवाब दिया कि इसमें गलत क्या है? जो संस्था जानवरों के लिए काम कर रही है उसे आखिर ज्यादा अनुदान क्यों नहीं मिलना चाहिए? अपर्णा यादव का ये भी मानना था कि 86 प्रतिशत ही क्यों, काम करने वाली संस्था को तो सौ प्रतिशत अनुदान मिलना चाहिए.
So what is wrong in it? If some org is doing good work for welfare of animals then why should it not be held financially?: Aparna Yadav pic.twitter.com/HSNn5Qmrnl
— ANI UP (@ANINewsUP) 3 July 2017
अपर्णा यादव की बातों को सुनकर किसी भी आम नागरिक को आश्चर्य हो सकता है लेकिन समाजवादी पार्टी के किसी कर्मठ कार्यकर्ता को ये बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा.
इसके दो कारण हैं. पहला ये कि आम नागरिक किसी पार्टी से जुड़ा नहीं है तो ये बात न्यायसंगत नहीं लगेगी कि आखिर राज्य के संसाधनों पर किसी एक ही व्यक्ति का अधिकार क्यों होना चाहिए?
दूसरा, समाजवादी पार्टी का कोई कार्यकर्ता इसे बुरी निगाह से इसलिए नहीं देखेगा क्योंकि उसके लिए तो ये उनकी फर्स्ट फैमिली से जुड़ा हुआ मसला है.
किसी भी कार्यकर्ता के मन में नेता जी (मुलायम सिंह यादव) के लिए बेहद सम्मान होता है. तो अपर्णा तो उनकी बहू हैं. 86 प्रतिशत तो छोड़िए अगर वो पूरे सौ प्रतिशत भी फंड ले लेतीं तो कोई दिक्कत की बात नहीं थी. क्योंकि पैसा तो फर्स्ट फैमिली के पास जा रहा है. खुद अपर्णा भी इस बात की तस्दीक कर रही हैं कि पूरा पैसा भी उनकी संस्था को मिल गया होता तो कोई दिक्कत की बात नहीं होनी चाहिए.
राजतंत्र की तरह व्यवहार कर रहीं अपर्णा
अगर एक आम यूपी वाले की निगाह से देखा जाए तो अपर्णा यादव की बातों में आपको देश में राजतंत्र के दिनों की बातें याद आने लगेंगी. जब राजा के परिवार के लोगों को लगता था कि राज्य के सारे संसाधनों पर उनका अधिकार है. अच्छा, राजपरिवार से होते हैं तो आपको कभी इस बात का भी एहसास नहीं होता कि जो काम आप कर रहे हैं, उसी काम को कोई आप से बेहतर भी कर सकता है.
अपर्णा के बयान को देखकर भी कुछ ऐसा ही लगता है. 2011 में प्रतीक और अपर्णा की शादी हुई थी और साल 2012 में ही प्रचंड बहुमत से समाजवादी पार्टी की सरकार यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई.
परिवार के सारे लोगों को उनके हिसाब से सरकार में काम बांट दिया गया. अपर्णा यादव को उसके बाद से एक राजसी परिवार की ही छवि अपने परिवार में आती रही होगी शायद यही वजह है कि जब फंड की बात आई तो उन्होंने 86 प्रतिशत फंड अपनी संस्था को मिलने की बात को पूरी शिद्दत के साथ डिफेंड किया.
दरअसल पूरे प्रदेश के फंड को हथिया लेने के बाद भी अपर्णा के ऐसे बयान के पीछे सिर्फ उनकी ही गलती नहीं है. वास्तविकता ये है कि यादव परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने परिवार के पैसे और ताकत के ऐसे प्रदर्शनों को रोकने की जहमत नहीं उठाते हैं. आपको न जाने कितने प्रकरण मिल जाएंगे जब यादव परिवार के किसी व्यक्ति ने खुद को सामान्य व्यक्ति मानने से इंकार कर दिया होगा. चाहे वो सत्ता में हो या न हो.
अपर्णा यादव के पति प्रतीक यादव का करोड़ों की कार का मामला उठा. फिर गाड़ी चलाते हुए फेसबुक लाइव करते हुए उन्होंने नियम कानून ताक पर रख दिए. यादव परिवार के ही एक और नेता अक्षय यादव ने पुलिस वालों के साथ आगरा में मारपीट की लेकिन शायद ही कभी मुलायम सिंह यादव की तरफ किसी को रोकने की कोई जरूरत समझी गई हो. हालांकि यूपी चुनाव के पहले हुई पारिवारिक कलह ने मुलायम सिंह की भी परिवार में वकत को काफी हद तक उजागर किया. लेकिन उनकी ये दशा हमेशा से नहीं थी
अब हमारे सामने अपर्णा यादव हैं. दरअसल उनकी सौ प्रतिशत के अनुदान की बात से भी किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी बशर्ते आप एक बार यूपी की फर्स्ट फैमिली के सदस्य बन कर सोचिए.
ये है पूरा मामला
गोसेवा आयोग के पीआईओ संजय यादव की एक आरटीआई के जवाब से ये सूचना सामने आई है. इसके अनुसार 2012 से 2017 तक के पांच साल के दौरान आयोग ने 9 करोड़ 66 लाख रुपए का कुल अनुदान जारी किया, जिसमें से 8 करोड़ 35 लाख रुपए तो केवल अपर्णा यादव के जीव आश्रय एनजीओ को ही दिया गया.
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