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आरके नगर उपचुनाव: दिनाकरण की जीत ईपीएस-ओपीएस की नाकामी दिखाती है

आरके नगर चुनाव ने दिखाया है कि जनता की भावना के आगे चुनाव चिन्ह खास मतलब नहीं रखता है

Updated On: Dec 25, 2017 11:10 AM IST

T S Sudhir

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आरके नगर उपचुनाव: दिनाकरण की जीत ईपीएस-ओपीएस की नाकामी दिखाती है

जैसे ही ये साफ हुआ कि टीटीवी धिनाकरण (जिसका उच्चारण दिनाकरण भी किया जाता है) आरके नगर सीट पर आसान जीत दर्ज करने जा रहे हैं, दिनाकरण कैंप से नजदीकी के कारण निलंबित किए गए 18 विधायकों में से एक थंगा तमिल सेल्वन से सत्तारूढ़ एआईएडीएमके में विद्रोह की संभावना के बारे में पूछा गया. सेल्वन ने बड़े ही ड्रामाई अंदाज के साथ अलंकारिक भाषा में उन्होंने जवाब दिया, “अगर आप हम 18 विधायकों को भी शामिल कर दें कि हमारे पास कुल 60 स्लीपर सेल्स हैं.”

‘स्लीपर सेल्स’ एआईएडीएमके के उन विधायकों की तरफ इशारा था, जो वास्तव में धिनाकरण के वफादार हैं. इसे एक तरह की सेंधमारी कह सकते हैं.  ई. पलानीसामी और ओ. पन्नीरसेल्वम पर राजनीतिक हमले की भूमिका बांधते सेल्वन ने हंसते हुए अपनी बात पूरी की, “और हम उन्हें जल्द ही सक्रिय कर देंगे.”

धिनाकरण की जीत से जो एक बात पूरी तरह साफ हो गई है, वह यह है कि ईपीएस-ओपीएस सरकार की एक्सपायरी डेट करीब आ गई है. इस साल फरवरी के बाद से, जब ईपीएस ने चेन्नई के बाहरी इलाके में एक रिसॉर्ट में विधायकों को बंधक बनाकर विश्वास मत हासिल कर लिया था, सरकार को किसी चुनावी टेस्ट का सामना नहीं करना पड़ा था.

इस तरह आरके नगर एक छोटे जनमत सर्वेक्षण के रूप में देखा गया कि तमिलनाडु, खासकर प्रदेश की राजधानी, के लोग सरकार के बारे में क्या राय रखते हैं. नतीजे बताते हैं कि ईपीएस और ओपीएस टेस्ट में फेल हो गए हैं. इसका अर्थ यह है कि तमिलनाडु एक बार फिर से राजनीतिक चक्रवात में घिर गया है. इस रस्साकशी का एक जातीय पहलू भी है. चूंकि ईपीएस मुख्यमंत्री बन गए हैं, इसलिए गाउंदर समुदाय गर्वोक्ति से भरा हुआ है. ये बात थेवर समुदाय को नागवार लग रही है, जो एआईएडीएमके को तब नियंत्रित कर रहा था, जब वी.के. शशिकला पर्दे के पीछे से पार्टी को चला रही थीं. अब तक पार्टी के अंदकर थेवर ओपीएस के पीछे खड़े थे, लेकिन आरके नगर ने साबित कर दिया है कि धिनाकरण एआईएडीएमके के अंदर थेवरों के राजनीतिक मुखिया हो सकते हैं.

बढ़ा है धिनाकरण का कद

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चेन्नई में धिनाकरण के घर के बाहर खड़े एक समर्थक ने कहा, “ओपीएस और ईपीएस सिर्फ अभिनेता हैं, टीटीवी असली हीरो हैं.” इस जीत ने शशिकला के भतीजे को जे. जयललिता की विरासत का असली वारिस साबित कर दिया है. स्वर्गीय मुख्यमंत्री की सीट- जहां से वह 2015 और 2016 में जीती थीं, से जीत ने असंदिग्ध रूप से धिनाकरण का राजनीतिक कद बढ़ा दिया है. उन्होंने उस दिन चुनाव जीता है, जिस दिन 30 साल पहले एमजीआर का निधन हुआ था. इस बात ने इस घटना का महत्व बढ़ा दिया है.

पुलिस विभाग भी जानता है कि हवा किस तरफ बह रही है. चेन्नई बेस्ड टेलीविजन कमेंटेटर रंगाराज पांडे बताते हैं कि किस तरह 5 दिसंबर को जयललिता के पहली पुण्यतिथि पर जब धिनाकरण उनकी समाधि पर गए थे तो उनके साथ सिर्फ एक कांस्टेबल था. रविवार को पुलिस वालों का एक पूरा दस्ता उनकी सुरक्षा में तैनात था.

रविवार को सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले शख्स हैं ओपीएस. दस महीने पहले, एक दिन देर शाम को शशिकला के खिलाफ एक ड्रामाई विद्रोह के साथ अचानक उनका महत्व बढ़ गया था. लेकिन जिस तरह उन्होंने सत्ता के मामूली से टुकड़े के लिए अपने धड़े का विलय कर दिया, उससे साबित हो गया कि वह अंदर से कितने खोखले हैं. ई.मधुसूधनन जो उनके धड़े के उम्मीदवार थे, उन्हें पार्टी के अंदर ही लड़ाइयां लड़नी पड़ीं. ओपीएस ने आरके नगर में आक्रामक चुनाव प्रचार किया था. मधुसूदनन की हार पन्नीरसेल्वम पर भी धब्बा है.

महत्वहीन है पार्टी सिंबल

एआईएडीएम की हार ये भी साबित करती है कि पार्टी का चुनाव निशान अपने आप में कुछ नहीं है. एआईएडीएमके समर्पित मतदाताओं के दो पत्तियों वाले सिंबल से जुड़ाव की बातें अपनी जगह, लेकिन फैसले के दिन उन्होंने इसके बजाय नए-नवेले प्रेशर कुकर को वोट देने का फैसला किया. इस विजय ने ओपीएस के नेतृत्व वाले एआईएडीएमके को एक ताश के महल में तब्दील कर दिया है, जो अगर धिनाकरण जरा भी जोर लगाएं तो बिखर जाएगा. डीएमके एआईएडीएम के वोटों के बंटवारे से फायदे की उम्मीद लगाए बैठी थी, लेकिन आखिर में धिनाकरण की मतदाताओं के साथ केमेस्ट्री डीएमके के अर्थमेटिक से बेहतर साबित हुई. इन गर्मागर्म अफवाहों के बीच कि एआईएडीएमके कैंप में विद्रोह को हवा देने के लिए डीएमके जानबूझकर हारी है, उसे घसीटू थर्ड डिवीजन मिली है. अगर यह सच है तो कोई भी सवाल उठाएगा कि भला इसमें क्या समझदारी है कि ऐसी स्थिति बनाई जाए जिसमें दुर्जेय राजनीतिक बुद्धि वाले धिनाकरण एक मजबूत राजनेता बन जाएं और निकट भविष्य में डीएमके के दमदार प्रतिद्वंद्वी बनें.

बीजेपी जो 2017 में पूरे साल सरकार और एआईएडीएमके के मामलों में निष्क्रिय बनी रही, अंत में मुंह पर स्याही पुतवा बैठी है. इसे नोटा (नन ऑफ द एबोव) से कम वोट मिले हैं. यह सच है कि चेन्नई में बीजेपी को मजबूत पार्टी नहीं माना जाता, लेकिन नतीजों ने साबित कर दिया है कि यह तो सिर्फ टीवी स्टूडियोज में दिखने वाली पार्टी है. इसने अपने खराब प्रदर्शन के लिए धनबल को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन यह भूल जाती है कि कोई वोटरों को ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर नोटा का बटन दबाने के लिए तो पैसे नहीं देता.

अंत में फ्री और फेयर चुनाव पर भी दो शब्द कह दूं. यह कतई फ्री चुनाव नहीं था. वोटरों को हर पार्टी की तरफ से 6,000 से 8,000 रुपये के बीच घूस दी गई थी. नोटा से भी कम वोट पाने वाली बीजेपी के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन अगर देश के किसी हिस्से के लोग कह सकते हैं कि अच्छे दिन आ गए तो वो आरके नगर के लोग हैं. कुल मिलाकर संक्षेप में इस चुनाव की यही दास्तान है.

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