कभी लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि मर जाएंगे लेकिन सीपीआई (एमएल) को आगे नहीं बढ़ने देंगे. बिहार में आरजेडी बढ़ता गया, सीपीआई (एमएल) सिमटता गया. समय का पहिया घूम चुका है. अब वही लालू यादव इस पार्टी के साथ गठबंधन करने जा रहे हैं.
आरजेडी के अंदरखाने में सीवान और आरा सीट सीपीआई (एमएल) को देने की सहमति बन चुकी है. इसका प्रस्ताव भेजा जा चुका है. जल्द ही इसपर कोई बड़ी घोषणा हो सकती है.
न्यूज 18 पर छपी खबर के मुताबिक लालू यादव नीतीश का मुकाबला करने के लिए अपनी राजनीति को नए सिरे से तैयार कर रहे हैं. इसमें उनके पुत्र और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. कोशिश ये है कि सभी विपक्षियों को एक साथ लाया जाए. इसके लिए कुछ सीटों की कुर्बानी देनी पड़ी तो दे दी जाए.
जेल में बंद शहाबुद्दीन को किया साइड लाइन
इस कुर्बानी का पहला शिकार बने हैं लंबे समय से जेल में बंद आरजेडी सांसद शहाबुद्दीन. ये वही शहाबुद्दीन हैं जिन्होंने राजनीतिक रंजिश में लेफ्ट पार्टी के कई नेताओं-कार्यकर्ताओं की हत्या की है. इस वक्त भी वो लेफ्ट के बड़े नेता और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या के जुर्म में जेल में बंद हैं.
साल 2009 में जेल जाने से पहले शहाबुद्दीन सीवान से आरजेडी की टिकट पर चार बार सांसद रह चुके हैं. लालू यादव ने भी हमेशा उन्हें पार्टी के मुस्लिम चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया.
आरजेडी नेताओं के बयान इस राजनीतिक शिगुफे को सच्चाई का पुट दे रही है. पार्टी प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि शहाबुद्दीन अब क्लोज चैप्टर हो चुके हैं. वो जेल में बंद हैं, चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.
उनका कहना है कि इस पहल को शहाबुद्दीन से ऊपर उठकर देखने की जरूरत है. बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन का मुकाबला करने के लिए विपक्षी पार्टियों को एक होना पड़ेगा. सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए ऐसे गठबंधन की जरूरत है.
सीपीआई (एमएल) की तरफ से मिलीजुली प्रतिक्रिया
जानकारी के मुताबिक शहाबुद्दीन के जेल में रहने के दौरान पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आरजेडी ने उनकी पत्नी रूबीना को सीवान से टिकट दिया था. लेकिन वो बड़े अंतराल से हार गई. वहीं विगत कई चुनावों में सीपीआई (एमएल) की स्थिति इन सीटों पर दूसरे और तीसरे नंबर की रही है.
वहीं सीपीआई (एमएल) के राज्य सचिव कुणाल का कहना है कि ऐसी कोई पहल आरजेडी की तरफ से उनकी पार्टी के पास नहीं हुई है. हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा कि अगर ऐसा होता है तो इसपर विचार किया जा सकता है. ये समय की मांग है.
इस साल अगस्त में लालू प्रसाद यादव ने पटना में बीजेपी भगाओ, देश बचाओ रैली का आयोजन किया था. इसमें सभी विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा लिया था. सीपीआई (एमल) के तरफ से दीपांकर भट्टाचार्य शामिल तो नहीं हुए थे, लेकिन उन्होंने शुभकामना संदेश जरूर भेजा था.
लालू यादव यहीं नहीं रूक रहे हैं. फिलहाल वो पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा सहित जेडीयू के कई दलित नेताओं के संपर्क में भी हैं.
ध्यान देनेवाली बात ये है कि एनडीए गठबंधन में रहने के बावजूद हाल के दिनों में इन दोनों नेताओं ने नीतीश सरकार के खिलाफ खूब बयान दिए हैं.
(न्यूज 18 के लिए आलोक कुमार की रिपोर्ट)
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