गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार के दिन नेटवर्क18 राइजिंग इंडिया सम्मेलन में कहा कि राष्ट्र-निर्माण के लिए मजबूत फैसले तथा ताकतवर कानून बनाने की जरुरत है.
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस देश को साल 2022 तक ‘न्यू इंडिया’, ए सेल्फ रिलायंट इंडिया (आत्म-निर्भर भारत) बनाना चाहते हैं तो राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर मजबूत फैसले लेने की जरुरत है.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती करार दिया था. नक्सलवाद, बगावत और उग्रवाद तकरीबन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चले हैं तो क्या मोदी सरकार इन पर लगाम कसने के लिए कड़े फैसले लेगी ताकि व्यवस्था के धरातल पर प्रक्रियाओं और ढांचे में बदलाव लाया जा सके?
माओवादी हिंसा पर लगाम कसने में हो रही परेशानी
गृहमंत्री ने जोर देकर कहा कि 'नागरिकों में सुरक्षा का भाव पैदा करना बहुत जरुरी है.'
लेकिन सवाल उठता है, कैसे? खासकर, एक ऐसे हालात में जब लगभग हर महीने हम सुनते हैं कि माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों में हमारे सुरक्षाकर्मी मारे जा रहे हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ के सुकमा में सीआरपीएफ के नौ जवान मारे गए और इस खबर से पूरा देश को सदमा लगा. माओवादियों ने 13 मार्च को माइन प्रोटेक्शन ह्वीकल को उड़ाकर इस हादसे को अंजाम दिया.
आंकड़ों के जरिए राजनाथ सिंह ने बताया कि 1980 के दशक के आखिर के सालों में माओवादी हमले की तकरीबन 3000 घटनाएं हुई थीं जो अब घटकर 1000 हो गई हैं. लेकिन हमले की घटनाओं की तादाद अब भी बहुत ज्यादा है.
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माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इससे इलाके के आदिवासियों तथा ग्रामीणों में विरोध का भाव भड़काने और अपनी विचारधारा के लिए समर्थन जुटाने में नक्सलवादियों को मदद मिलती है. लेकिन इस परेशानी से निकलने का रास्ता क्या है?
नक्सलवादी हिंसा से निपटने के लिए राजनाथ सिंह ने कई उपाय सुझाए हैं
राजनाथ सिंह ने कहा- सिर्फ बंदूकों के दम पर समाधान नहीं निकाला जा सकता. पिछड़े और आदिवासी इलाकों में विकास-कार्य भी साथ-साथ होना चाहिए. ऐसी बहुत सी जगहें थीं जहां कोई टेलीफोन- कनेक्शन तक मौजूद नहीं था. लेकिन आज वहां मोबाइल टावर, हास्पिटल तथा स्कूल खड़े हैं. सरकार उन इलाकों तक पहुंच रही है.
हमारे प्रधानमंत्री चाहते हैं कि भारत आर्थिक महाशक्ति बने, कतार में सबसे पीछे खड़ा व्यक्ति—हमारे समाज का वंचित, गरीब और हाशिए का तबका आर्थिक रुप से मजबूत हो सके.
नीतिगत हस्तक्षेप: नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल क्रूग्मेन ने राइजिंग इंडिया सम्मेलन में कहा कि भारत की नीतियों में बहुत बदलाव आया है. गृहमंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ढांचागत और प्रक्रियागत बदलाव के जरिए भ्रष्टाचार को कम करना और बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों तक पहुंचना चाहती है, सरकार सुनिश्चित करना चाहती है कि केंद्रीय सहायता की राशि माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों तक पहुंचे.
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सख्त संदेश देते हुए कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता आंतरिक सुरक्षा है लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हम सीमा पार करने में नहीं हिचकिचाएंगे. यह बात उन्होंने संकेत रुप में पाकिस्तान के लिए कही और जताया कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान से लगती सीमा के आस-पास जमे आतंकवादियों के खात्मे के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया था.
साख का संकट: गृहमंत्री ने कहा कि राजनेताओं के सामने साख का संकट है और यह एक बड़ी चुनौती है. उनका कहना था कि 'दशकों तक राजनेताओं ने लोगों से वादे किए लेकिन वे वादे अगर पूरे हुए होते तो भारत आज विकसित मुल्क बन चुका होता. इस वजह से साख का संकट पैदा हुआ है. यह हमारे आगे एक बड़ी चुनौती है और हम इस संकट से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे हैं.
कानून अपना काम करेगा: जो लोग दूसरी विचारधाराओं को मानते हैं उन्हें विश्वासघाती, राष्ट्रविरोधी तथा देशद्रोही कहने से राजनाथ सिंह ने इनकार किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि 'हमें अलग विचारधाराओं के लोगों को देशद्रोही नहीं कहना चाहिए लेकिन अगर किसी के काम से हमारे देश को नुकसान होता है तो कानून इसकी सजा देगा.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जेनरल (रिटा.) ध्रुव कटोच नक्सलवाद तथा उग्रवाद पर लगाम कसने की सरकार की कोशिशों को लेकर उत्साहित हैं.
इंडिया फाउंडेशन के निदेशक तथा सीएलएडब्ल्यूएस के पूर्व निदेशक मेजर जेनरल (रिटा.) ध्रुव कटोच ने कहा कि 'नरेन्द्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने और इसे देखते हुए हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना है. राष्ट्रीय सुरक्षा का मोर्चा आज 2014 की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित है. नक्सलवाद की समस्या 50 साल पुरानी है और हम यह मानकर नहीं चल सकते कि यह समस्या एक-दो साल में खत्म हो जायेगी. जहां तक उग्रवादी तथा माओवादी गतिविधियों का संबंध है- बीते सालों की तुलना में ऐसी हिंसा में कमी आई है. सरकार ने सीमा पार से होने वाली हिंसा की गतिविधियों तथा पाकिस्तान से निपटने के लिए सेना को खुली छूट दी है. आज देश राजनीतिक तथा आर्थिक रुप से मजबूत है.'
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लेखक तथा वामपंथी अतिवाद से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ प्रकाश सिंह का मानना है कि माओवादियों के खात्मे के अतिरिक्त सरकार को माओवाद प्रभावित इलाकों के लोगों की भलाई का भी ध्यान रखना होगा.
उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी तथा सीमा सुरक्षा बल के पूर्व प्रधान प्रकाश सिंह ने कहा कि 'जबतक सरकार आदिवासियों को पेश आ रही बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं करती, वनाधिकार कानून का ठीक तरीके से क्रियान्वयन नहीं होता और विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं हो जाती—नक्सलवाद की समस्या का समाधान नहीं हो सकता; यह समस्या कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर उभर सकती है. माओवादी मजबूत हो रहे हैं. सफाए के अभियान के जरिए एक बार माओवादी गतिविधियों पर लगाम लग जाए तो प्रशासन को इलाके के लोगों के दिल और दिमाग को जीतने की कोशिश करनी होगी.'
राजनाथ सिंह ने राइजिंग इंडिया सम्मेलन में ज्यादातर ठीक बातें कहीं लेकिन जिन समस्याओं से निबटना अभी बाकी है उनके बारे में क्या? मुमकिन है, उन समस्याओं से निपटने को लेकर उनका मंत्रालय काम कर रहा हो, जैसा कि गृहमंत्री ने वादा किया था.
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