उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव के तहत चौबीस जिलों में पहले चरण का मतदान बुधवार सुबह शुरू हुआ तो पहला न्यूज फ्लैश गोरखपुर से आया. खबर यह थी कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ मंदिर में पूजा करने के बाद मतदान किया.
वोट डालकर निकले योगी ने मीडिया से कहा कि निकाय चुनावों में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो जाएगा और बीजेपी की जय-जयकार होगी. उसके बाद वे निकाय चुनावों के दूसरे चरण वाले इलाकों में सभाएं करने निकल गए जहां 26 नवंबर को वोट पड़ने हैं. उनकी सरकार के कई मंत्री भी अलग-अलग इलाकों में चुनाव प्रचार में जुटे हैं.
निकाय चुनावों का प्रदर्शन 2019 का ट्रेलर भी
16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद व 438 नगर पंचायत समेत कुल जमा 652 नगर निकायों के इस अपेक्षाकृत छोटे चुनाव में ऐसा क्या है कि सूबे की सियासत में लोकसभा या विधानसभा चुनाव सरीखा माहौल बना है? खास कर सत्तारूढ़ दल बीजेपी बाजी अपने हाथ में रखने की कोई कसर नहीं छोड़ रही.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उनके दोनों डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा समेत दर्जनों मंत्री शहरों, चौराहों में सभाएं कर रहे हैं. इस सक्रियता की एक वजह यह भी कि लोकसभा के अगले चुनाव चूंकि ज्यादा दूर नहीं हैं इसलिए निकाय चुनावों का प्रदर्शन 2019 में बीजेपी समेत बाकी सियासी दलों की ताकत का पैमाना भी माना जाएगा.
दूसरी ओर ज्यादा बड़ी वजह यह कि आठ महीने पहले प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह पहला चुनाव है.
बेहतर नतीजे योगी को करेंगे और मजबूत
पिछली बार बीजेपी ने सूबे की सत्ता में अपेक्षाकृत कमजोर होते हुए भी 12 में 10 नगर निगमों पर कब्जा जमाया था. इस बार चुनाव बीजेपी के सत्ता में रहते हो रहे हैं. केंद्र और यूपी दोनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार है. लिहाजा पिछली बार से बेहतर नतीजे हासिल कर योगी अपनी कमान पार्टी एवं सरकार पर और मजबूत करना चाहते हैं.
चुनावों में विपरीत नतीजों से उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठ सकते हैं. नतीजे पक्ष में आए तो योगी और बीजेपी यह दावा करने की स्थिति में रहेंगे कि विधानसभा के चुनाव में जो जबरदस्त समर्थन मिला था वह बरकरार है.
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इसलिए विपक्ष के बड़े नेताओं के प्रचार के लिए न निकलने के बावजूद सत्ता पक्ष के सारे धुरंधर लगातार सभाएं कर रहे हैं. वैसे बुधवार को पहले चरण के मतदान में बड़े शहरी इलाकों यानी नगम निगम क्षेत्रों में कम वोट प्रतिशत बीजेपी की फिक्र बढ़ा रहा है.
जबकि इन इलाकों में उसका खासा आधार रहा है. बाद के दोनों चरणों में बाकी बचे 11 नगर निगमों में वोट प्रतिशत बढ़े यह बीजेपी के लिए जरूरी होगा.
गुजरात चुनाव पर भी होगा नतीजों का असर
वैसे शहरी सरकार चुनने के लिए हो रहे इन चुनावों को प्रतिष्ठा का इतना बड़ा मुद्दा बना लेने की वजहें सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं. यह किसी भी चुनाव को हल्के में न लेने और जीत के लिए हर जतन करने की लोकसभा चुनावों से बनी बीजेपी की नीति का विस्तार भी है. ऐसी नीति जिसमें पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अपनी चुनावी मशीनरी को हमेशा सक्रिय बनाए रखना चाहता है.
ऐसी नीति जिसमें किसी एक प्रांत के चुनाव नतीजों के संदेश को किसी सुदूर प्रदेश में प्रचार का हथियार बनाया जा सके. यह संदेश दिया जा सके कि बीजेपी अजेय पार्टी है. इसी नीति के तहत यूपी के निकाय चुनावों में पार्टी की अति सक्रियता का एक छोर गुजरात में अगले माह होने वाले विधानसभा के चुनावों से जुड़ता है. जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी के लिए बीते साढ़े तीन साल में सबसे अहम चुनाव साबित हो रहे हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए जब 9 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे तो उससे पहले 1 दिसंबर को यूपी के निकाय चुनावों के नतीजे आ चुके होंगे.
यहां मिली जीत को बीजेपी गुजरात में भी भुनाएगी
जाहिर सी बात है कि जमीन पर और सोशल मीडिया की ताकत के जरिए चलने वाले चुनावी युद्ध के इस दौर में यूपी में यदि बीजेपी को कामयाबी मिली तो गुजरात के चुनाव में इसके खासे मनोवैज्ञानिक मायने होंगे. लिहाजा पार्टी यूपी के इन चुनावों के जरिए मिले अवसर को किसी गफलत में गंवाना नहीं चाहती.
यूपी में अच्छे नतीजे आए तो पार्टी इसे गुजरात में पुरजोर भुनाएगी. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी यूपी में निकाय चुनाव की कामयाबी को गुजरात में पार्टी के प्रति जनता के भरोसे के रूप में प्रचारित करेगी.
गुजरात में युवा तिकड़ी के साथ कांग्रेस की दोस्ती के जरिए उसे मिल रही चुनौती की काट में जो सियासी हथियार पार्टी आजमाएगी उनमें यूपी में कामयाबी को भी पार्टी जरूर शामिल करना चाहेगी.
योगी आदित्यनाथ गुजरात में बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में शुमार हैं. यूपी में निकाय चुनावों में कामयाबी मिल गई तो योगी नई सियासी उपलब्धि के साथ गुजरात के चुनाव अभियान में उतारे जाएंगे. 28 नवबंर से गुजरात में चुनावी सभाएं करने का उनका कार्यक्रम भी लगभग तय हो चुका है.
गोरखपुर और वाराणसी का संबंध पीएम-सीएम से
गुजरात कनेक्शन के अलावा यूपी के इन छोटे चुनावों में कामयाबी हासिल करने के बीजेपी के लिए कई प्रतीकात्मक मायने भी होंगे. मसलन जिन 16 नगर निगमों में चुनाव हो रहे हैं उनमें गोरखपुर और वाराणसी भी शामिल हैं. बुधवार को जिन पांच नगर निगम इलाकों में वोट पड़े उनमें गोरखपुर में भी मतदान हुआ जो योगी आदित्यनाथ का गृह क्षेत्र है. वे वहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं.
उनके इस्तीफे के कारण जल्द वहां लोकसभा के उपचुनाव होंगे. लिहाजा गोरखपुर के निकाय चुनाव नतीजे योगी की निजी सियासी प्रतिष्ठा से भी जुड़े हैं.
वाराणसी, जहां 26 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान होना है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. वहां चुनाव नतीजों में किसी भी तरह की ऊंच-नीच प्रधानमंत्री की छवि को प्रभावित करेगी. लिहाजा बीजेपी नेतृत्व वाराणसी के चुनाव को लेकर अति सतर्क है. टिकट बंटवारे के बाद पार्टी में गुटबाजी और विरोध की आवाजें उठीं, तो उन्हें मनाने के लिए कई नेताओं की वहां अलग से ड्यूटी लगाई गई है.
ऐसी ही निजी प्रतिष्ठा लखनऊ नगर निगम के चुनाव में गृह मंत्री राजनाथ सिंह की दांव पर लगी है जो यहां के सांसद हैं. इतना ही नहीं योगी सरकार में डिप्टी मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा लखनऊ से ही ताल्लुक रखते हैं जो सरकार में शामिल होने से पहले लखनऊ के मेयर ही थे. लखनऊ में भी 26 नवंबर को वोट पड़ेंगे.
अयोध्या और मथुरा के नतीजों का होगा प्रतीकात्मक असर
बीजेपी के बड़े नेताओं की निजी प्रतिष्ठा से जुड़े इन पहलुओं के अलावा दो नगर निगम ऐसे हैं जो पार्टी के सियासी एजेंडे का अहम प्रतीक हैं. पहला, अयोध्या और दूसरा मथुरा. इन दोनों को नगर निगम का दर्जा योगी सरकार ने ही दिया है. ये दोनों स्थान बीजेपी के हिंदूत्व छाप राजनीतिक एजेंडे का अहम हिस्सा है. अयोध्या में पहले चरण के तहत बुधवार को वोट पड़ गए जबकि मथुरा में 26 नवंबर को वोट पड़ेंगे.
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अयोध्या में जीत हासिल करने की विशेष ललक ही है कि योगी ने निकाय चुनावों का प्रचार वहीं से शुरू किया. अयोध्या में हार का सियासी संदेश नकारात्मक होगा यह पूरी बीजेपी जानती है. जिसकी धमक गुजरात के चुनावों तक जाएगी.
दीपावली पर अयोध्या में भव्य आयोजन, निकाय चुनाव में बीजेपी नेताओं के प्रचार भाषणों में भगवान राम का नियमित उल्लेख और इसी दौर में अयोध्या विवाद को सुलह से निपटाने के प्रयासों में आई तेजी भी बीजेपी की राजनीति के इस अहम प्रतीक स्थल को सुर्खियों में रखे हुए है.
अलबत्ता समाजवादी पार्टी ने एक किन्नर को अपना प्रत्याशी बनाकर अयोध्या नगर निगम का चुनाव जरूर दिलचस्प बना दिया है. यहां यह उल्लेखनीय है कि करीब डेढ़ दशक पहले निकाय चुनावों के दौरान गोरखपुर की जनता ने वहां एक किन्नर को मेयर चुन कर सियासी हलकों में सनसनी फैला दी थी. योगी तब वहां के सांसद थे और वहां की सियासत में उनका खासा बोलबाला भी था.
एसपी और बीएसपी के लिए ताकत आजमाने का मौका
यह चुनाव यदि बीजेपी के लिए कड़ी परीक्षा, है तो विपक्षी दलों के लिए भी कोई कमतर चुनौती नहीं. गुजरात में बीजेपी को मात देने के सपने संजो रही कांग्रेस के लिए यूपी में निकाय चुनावों का प्रदर्शन विशेष मायने रखेगा.
वहीं यूपी की दो बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पहली बार निकाय चुनाव अपने सिम्बल यानी साइकिल व हाथी पर लड़ रहे हैं. विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद इन दोनों दलों का सिम्बल पर लड़ना उन्हें भी बताएगा कि उनमें बीजेपी को चुनौती देने का कितना दमखम है.
अखिलेश यादव और मायावती दोनों का सियासी कद भी निकाय चुनावों के नतीजों से घटे-बढ़ेगा. शहरी वोटरों के इस चुनाव में विपक्षी दलों ने जीएसटी को बड़ा मुद्दा बना रखा है. शहरों व कस्बों में व्यापारियों का बड़ा वर्ग है. विपक्षी दलों का दावा है कि जीएसटी लागू होने से यूपी का कारोबारी वर्ग खासा खफा है. वह वाकई खफा है भी या नहीं उसका जवाब भी यूपी के इन छोटे चुनाव के नतीजों से सामने आ जाएगा.
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