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जींद से रणदीप सुरेजवाला की दावेदारी: उपचुनाव के जरिए आम चुनाव पर निशाना

हरियाणा के जींद उपचुनाव में कांग्रेस ने चौंकाने वाला फैसला किया है.

Updated On: Jan 10, 2019 10:44 PM IST

Syed Mojiz Imam
स्वतंत्र पत्रकार

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जींद से रणदीप सुरेजवाला की दावेदारी: उपचुनाव के जरिए आम चुनाव पर निशाना

हरियाणा के जींद उपचुनाव में कांग्रेस ने चौंकाने वाला फैसला किया है. कांग्रेस ने अपने मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला को बतौर उम्मीदवार उतारा है. कांग्रेस के इस फैसले से ये उपचुनाव हाई प्रोफाइल चुनाव में तब्दील हो गया है. पार्टी की रणनीति हर हाल में ये चुनाव जीतना है. ताकि तीन राज्यों में मिली जीत का सिलसिला बना रहे. कांग्रेस को लग रहा है कि ये आम चुनाव से पहले आखिरी उपचुनाव है. इसमें मिली जीत की गूंज दूर तक सुनाई देगी.

रणदीप सुरजेवाला का चयन

रणदीप सिंह सुरजेवाला कैथल से विधायक हैं. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार में दस साल मंत्री रहे हैं. हरियाणा के प्रदेश और इंडियन यूथ कांग्रेस के मुखिया थे. जाहिर है कि रणदीप से मजबूत उम्मीदवार कांग्रेस के पास नहीं है. पार्टी की रणनीति पहले से ही मजबूत उम्मीदवार देने की थी. पहले अशोक तंवर के नाम पर बातचीत चली लेकिन सामान्य सीट होने की वजह से अशोक तंवर को लड़ाना उचित नहीं समझा गया है. जींद जाट बहुल्य सीट है. कांग्रेस के पास उस इलाके में जाट के तौर पर रणदीप सुरजेवाला ही हैं.

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प्रधानमंत्री ने अपने हालिया इंटरव्यू में तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत का जवाब हरियाणा में लोकल बॉडी की जीत का जिक्र किया और जवाब दिया कि बीजेपी के विरोध में कोई लहर नहीं है. हरियाणा लोकल बॉडी के चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारे, बल्कि हर नेता ने अपने समर्थकों को चुनाव में उतारा था. इसका खामियाजा भुगतना पड़ा, रोहतक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का गढ़ है. वहां उनके प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा था. कमोवेश यही स्थिति पूरे प्रदेश में थी.

कांग्रेस ने उस गलती से सबक हासिल किया है. इसलिए जींद के उपचुनाव में मजबूती से लड़ने का फैसला किया है. ये सूझबूझ वाला राजनीतिक कदम दिखाई दे रहा है. कांग्रेस के प्रदेश के मुखिया अशोक तंवर का कहना है कि कांग्रेस की इस चुनाव में शानदार जीत होगी हरियाणा में कांग्रेस की लहर है. इस जीत का असर पूरे देश में होने वाला है. कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा प्रचार से भी है. रणदीप सुरजेवाला की उम्मीदवारी की चर्चा पूरे देश की मीडिया करने वाली है. जीत का असर भी दूर तक रहेगा.

गुटबाजी से बचने का जतन

हरियाणा में गुटबाजी से बचने का भी ये तरीका है. जिस तरह से आपस में लड़ाई है, उससे लो प्रोफाइल उम्मीदवार गुटबाजी का शिकार हो जाता, संगठन और बड़े नेता एक साथ नहीं चल पा रहे हैं. इसका नुकसान लगातार कांग्रेस को हो रहा है. कई बड़े नेता संगठन को दरकिनार करके चल रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर के बीच अदावत बढ़ती जा रही है.

इस अदावत की वजह से ही लोकल बॉडी में कांग्रेस नहीं लड़ पाई थी. बड़े नेता नहीं चाहते थे कि जीत का क्रेडिट प्रदेश के मुखिया को मिले, दूसरे ये भी परेशानी थी कि उनके समर्थकों को टिकट मिलेगा या नहीं, इस ऊहापोह का नतीजा ये हुआ कि प्रधानमंत्री ने अपने बचाव में हरियाणा की जीत का जिक्र किया था.

रणदीप का बढ़ेगा कद

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2014 के लोकसभा चुनाव में कई बड़े नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे थे. रणदीप सुरजेवाला कायदे से इनकार भी कर सकते थे. कैथल से विधायक हैं. लोकसभा चुनाव से पहले मीडिया के तमाम काम भी देख रहे हैं. लेकिन बिना बहानेबाजी के चुनावी समर में उतर गए हैं. इससे आलाकमान की नजर में रणदीप सुरजेवाला का कद बढ़ेगा. उन्हें हरियाणा की जाट राजनीति में स्थापित होने का मौका मिल गया है.

फिलहाल हरियाणा कांग्रेस की जाट राजनीति में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का दबदबा है. हालांकि प्रदेश की राजनीति में जाट बिरादरी में ओमप्रकाश चौटाला को ही ज्यादा समर्थन है. जाहिर है कांग्रेस में तीन बड़े जाट नेता हैं. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी. सभी के बीच प्रतिस्पर्धा है कि कौन जाट का बड़ा नेता है. जाहिर है कि राज्य की राजनीति में जाट एक अहम फैक्टर है.

हालांकि कांग्रेस के दस साल के शासन में जाट मुख्यमंत्री होने के बावजूद पूरा समर्थन नहीं मिला है. बल्कि कांग्रेस की पुरानी गैर जाट की राजनीति की रणनीति बीजेपी ने अपनाई है. प्रदेश में पहली बार बीजेपी की बहुमत की सरकार है. नॉन जाट सीएम हैं.

हरियाणा में नेता मजबूत पार्टी कमजोर

हरियाणा में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता हैं. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेन्द्र सिंह हुड्डा हैं. चौधरी बंसीलाल के परिवार की किरण चौधरी और उनकी पुत्री सांसद रह चुकी हैं. रणदीप सिंह सुरजेवाला हैं. इनके पिता भी बड़े नेता थे. ये सभी जाट हैं. इसके अलावा शादीलाल बत्रा, अजय यादव, कुलदीप शर्मा और कुलदीप बिश्नोई बड़े नेता हैं. वहीं कांग्रेस की कमान अशोक तंवर के पास है.

ये सभी नेता हर लिहाज से मजबूत हैं लेकिन पार्टी कमजोर है. सब अपना मठ चला रहे हैं. हालांकि अशोक तंवर पार्टी को मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दोहरी मार का शिकार हैं. बीजेपी की चुनौती तो है ही पर पार्टी के भीतर भी विरोध झेलना पड़ रहा है.

जबकि हरियाणा में चौटाला परिवार में टूट के बाद कांग्रेस के पास मौका है. कांग्रेस को हर वर्ग का समर्थन मिल सकता है. जबकि राजनीति जाट और गैर जाट के बीच सिमटी है. कांग्रेस के पास हर वर्ग का नेता है. हालांकि कांग्रेस की मजबूती का इम्तिहान अब जींद में होने वाला है. इसमें संगठन का भी टेस्ट हो जाएगा.

संगठन का विस्तार

कमलनाथ के मध्य प्रदेश जाने से प्रभारी का पद खाली है. जिलेवार संगठन का काम नहीं हो पाया है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा संगठन का विस्तार ना होने को बड़ी कमी बता चुके हैं. इस बहाने हुड्डा अशोक तंवर पर निशाना साधते रहे हैं. हालांकि कमी एआईसीसी स्तर पर है.

प्रभारी ना होने की वजह से संगठन का विस्तार नहीं हो पा रहा है. हरियाणा के नेता एकराय नहीं हो पा रहे हैं. जिसकी वजह से संगठन का विस्तार नहीं हो पा रहा है. लेकिन इस विस्तार में अड़चन भी बड़े नेता बने हैं. जो सिर्फ अपने समर्थकों को ही कुर्सी देना चाहते हैं.

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