विचारधारा के स्तर पर मतभेद मुमकिन है, मतभेद होने भी चाहिए, अगर ऐसा नहीं होता तो एक स्वस्थ लोकतंत्र की नींव ही कमजोर पड़ने लगेगी. लेकिन, जब विचारधारा का मतभेद, अलग-अलग विचारधारा के टकराव के रूप में सामने आने लगे तो इसका परिणाम वीभत्स हो जाता है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज की हालिया घटना को देखकर तो कम से कम ऐसा ही लगता है. छात्र संगठनों की तरफ से हो-हंगामा और विवाद को अगर यूनिवर्सिटी के स्तर पर ही निपटा लिया गया होता तो शायद रामजस कॉलेज और दिल्ली यूनिवर्सिटी इतनी शर्मसार नहीं होती.
लेकिन, शर्मसार तो होना ही था, जब छात्रों के झगड़े में विचारधारा के नाम पर बड़बोले नेता कूद पड़ें तो फिर क्या होगा. सियासत शुरू होगी, बयानबाजी होगी और गुरमेहर कौर जैसे कॉलेज में पढ़ने वाले नए छात्रों को कॉलेज क्या कुछ वक्त के लिए शहर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा.
कैसे यहां तक पहुंचा विवाद
रामजस कॉलेज विवाद के वक्त भी ऐसा ही हुआ. वामपंथी विचारधारा के छात्र संगठन आईसा की तरफ से सेमिनार को लेकर दक्षिणपंथी छात्र संगठन एबीवीपी के विरोध ने हिंसक रूप अख्तियार किया जिसके बाद तो दोनों छात्र संगठन आमने-सामने आ गए.
दोनों के बीच चल रही लड़ाई सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक शुरू हो गई.
रामजस कॉलेज में 22 फरवरी की घटना के बाद डीयू की छात्रा गुरमेहर कौर ने अपना एक नया प्रोफाइल पिक्चर लगाया. इसमें एबीवीपी के हमले की निंदा की गई. गुरमेहर कौर के हाथ में एक प्लेकार्ड था जिसपर हैशटैग स्टुडेंट अगेन्स्ट एबीवीपी लिखा गया था. इसमें देश भर के छात्रों से एबीवीपी से नहीं डरने की अपील की गई थी.
गुरमेहर ने फेसबुक पर लिखा था कि एबीवीपी का मासूम छात्रों पर हमला बहुत परेशान करने वाला है. इस पर रोक लगनी चाहिए. ये प्रदर्शनकारियों पर नहीं बल्कि लोकतंत्र के हमारे हरदिल –अजीज मान-मूल्यों पर हमला है.
इसके बाद गुरमेहर कौर के उपर सोशल मीडिया पर हमला शुरू कर दिया गया. गुरमेहर कौर को राष्ट्र विरोधी और प्रचार का भूखा तक कहा जाने लगा.
सोशल मीडिया पर फैला विवाद
लेकिन, हद तो तब हो गई जब गुरमेहर कौर के एक पुराने फेसबुक पोस्ट को लेकर भी उसके उपर हमला शुरू हो गया जिसमें गुरमेहर कौर ने लिखा था कि हमारे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा है.
बवाल बढ़ता गया और ट्रोल के लपेटे में आई गुरमेहर कौर को रेप की धमकी तक मिलने लगी. क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने व्यंग्य करते हुए लिखा मैंने नहीं मेरे बल्ले ने पाकिस्तान के खिलाफ तिहरा शतक लगाया है.
वीरेंद्र सहवाग के समर्थन में फिल्म अभिनेता रणदीप हुड्डा भी कूद पड़े. रणदीप हुड्डा ने कहा कि तुम्हारा शांति वाला वीडियो अच्छा था लेकिन अब वो अब मानवतावादी नहीं सियासी बन गया है. बाद में जब हुड्डा पर हमला हुआ तो अपने कदम पीछे खींचते हुए लिखा कि कितनी उदास करने वाली बात है कि इस लड़की का इस्तेमाल सियासी मोहरे के रूप में हो रहा है.
पलटवार आरजेडी की राज्यसभा सांसद और लालू यादव की बेटी मीसा भारती की तरफ से हुआ. मीसा भारती ने पाकिस्तानी क्रिकेट शोएब अख्तर के साथ वीरेंद्र सहवाग की एक दोस्ताना तस्वीर पोस्ट कर सवाल किया कि अगर किसी को पाकिस्तानियों से इतनी नफरत है तो उनके साथ कॉमेंट्री बॉक्स शेयर नहीं करनी चाहिए.
विवाद आगे बढ़ा तो पहलवान बबीता फोगाट भी बीच में कूद पड़ी. बबीता ने ट्वीट किया जो देश के हक में बात नहीं करता, उसके हक में बात करना सही है क्या. बबीता ने कहा कि इस तरह किसी को रेप की धमकी देना गलत है लेकिन, मैं अपने देश के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती.
एबीवीपी के खिलाफ कैंपेन में बढ़-चढ़कर शामिल होने के बाद गुरमेहर कौर को जान से मारने और रेप की धमकी तक मिली. उसने दिल्ली महिला आयोग में इसके खिलाफ शिकायत तो दर्ज कराई लेकिन अपने-आप को इस पूरे कैंपेन से अलग कर लिया. गुरमेहर ने इस कॉलेज कैंपस औऱ पूरे शहर को ही कुछ वक्त के लिए छोड़ दिया.
सियासी बयानों से भी लगा तड़का
सोशल मीडिया पर चल रही ये बहस महज सेलेब्रिटिज तक नहीं रही, बल्कि सियासी गलियारों तक पहुंचती गई.
सियासतदानों ने इस बहस और आग को और हवा दी. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि आखिरकार इस नौजवान लड़की का दिमाग कौन खराब कर रहा है, इसके बाद बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा ने तो गुरमेहर की तुलना दाऊद इब्राहिम से कर दी.
रिजिजू की तरफ से हो रहे हमले के बाद सियासत की रफ्तार थमने वाली कहां थी. वामपंथी संगठनों की तरफ से हंगामा शुरू हुआ. छात्र संगठनों ने रामजस कॉलेज विवाद पर विरोध में मार्च निकाला. तो उसमें सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से लेकर सीपीआई के नेता डी राजा तक पहुंच गए.
सबकी तरफ से हमला शुरू हुआ. आरएसएस और बीजेपी के उपर. भगवा ब्रिगेड निशाने पर रहा. जेडीयू के नेता के सी त्यागी से लेकर कांग्रेस नेताओं तक सबने एक सुर में बीजेपी और आरएसएस को निशाने पर लिया.
वामपंथी दलों की तरफ से कहा गया कि अपनी विचारधारा को दूसरों पर थोपने वाले लोग देश की विविधता, अनेकता में एकता के विचार को समझ नहीं पा रहे हैं. उन्हें ये बात समझनी होगी कि इस देश में उनकी सोंच नहीं चलेगी. सबको साथ लेकर चलना होगा.
लेकिन, पलटवार किरेन रिजिजू की तरफ से हुआ. रिजिजू ने कहा कि वामपंथी ही छात्रों की मानसिकता को प्रदूषित कर रहे हैं. 1962 की लड़ाई में भी वामपंथी भूमिका पर सवाल खड़ा कर रिजिजू ने और विवाद बढ़ा दिया.
आरएसएस नेता भैयाजी जोशी ने भी एबीवीपी के समर्थन में ही बात कहते हुए कहा कि ये यूनिवर्सिटी प्रशासन की जिम्मेदारी है कि इस बात की जांच करें कि कैंपस का माहौल कौन सी ताकतें खराब कर रही हैं. उन्होंने ऐसी ताकतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
हालाकि, अब नसीहत राष्ट्रपति की तरफ से भी आई है. लेकिन, इन नसीहतों का असर अपनी सियासत चमकाने में लगे दलों के उपर कितना होगा, ये कहना मुश्किल है. क्योंकि जेएनयू विवाद से लेकर हैदराबाद यूनिवर्सिटी विवाद तक कहीं भी न नसीहत का असर दिखा और न ही किसी को विवाद खत्म करने की चिंता दिखी.
अब दिल्ली यूनिवर्सिटी के भीतर चल रहे घमासान पर भी हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं. सियासत की चिंता सबको है लेकिन, गुरमेहर जैसे कई छात्र छात्राओं के भविष्य की चिंता शायद किसी को नहीं.
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